आनन-फानन में 8 लाख 31 हज़ार 958 रुपये के सरकारी राशि का भुगतान किया गया है. इससे यह स्पष्ट होता है कि जिला कार्यक्रम पदाधिकारी स्थापना द्वारा समुचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है. इस प्रकार परिवादी द्वारा लगाया गया आरोप सही प्रतीत होता है.
- जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के द्वारा कार्रवाई अनुशंसा
- त्रिस्तरीय जांच कमेटी ने भी कहा, नियमों की हुई अवहेलना
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : शिक्षा विभाग के जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (स्थापना) मोoशारिक अशरफ पर अब कार्रवाई की तलवार लटक रही है. जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी किशोरी चौधरी ने उनके विरुद्ध सेवा नियमों के तहत अनुशासनिक कार्रवाई की अनुशंसा जिला पदाधिकारी अंशुल अग्रवाल से की है. मामला एक शिक्षक को किए गए गलत भुगतान से जुड़ा हुआ है.
मामले की सुनवाई के पश्चात जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी द्वारा जारी अंतिम विनिश्चय में कहा गया है कि त्रि-सदस्यीय जांच दल द्वारा इस मामले में समर्पित जांच प्रतिवेदन के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि परिवादी द्वारा परिवाद के माध्यम से लगाए गए आरोपों में से अधिकांश बिंदुओं पर परिवादी द्वारा लगाया गया आरोप सही प्रतीत होता है. ऐसी परिस्थिति में जिला कार्यक्रम पदाधिकारी स्थापना, जो मुख्य रूप से दोषी एवं जिम्मेवार प्रतीत होते हैं, उनके विरुद्ध सेवा नियमों के तहत अनुशासनिक कार्रवाई की अनुशंसा जिला पदाधिकारी से की जाती है.
अंतिम विनिश्चय में कहा गया है कि जगनारायण सिंह का नियोजन सक्षम प्राधिकार (पंचायत नियोजन समिति) द्वारा नहीं किया गया है. जहां तक जगनारायण सिंह को वेतन भुगतान करने की बात है तो इस संबंध में डीपीओ स्थापना द्वारा संचिका का अवलोकन किए बगैर तथा वर्तमान जिला शिक्षा पदाधिकारी से आदेश प्राप्त किए बगैर आनन-फानन में 8 लाख 31 हज़ार 958 रुपये के सरकारी राशि का भुगतान किया गया है. इससे यह स्पष्ट होता है कि जिला कार्यक्रम पदाधिकारी स्थापना द्वारा समुचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है. इस प्रकार परिवादी द्वारा लगाया गया आरोप सही प्रतीत होता है.
जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के द्वारा कहा गया है कि त्रि-सदस्यीय जांच दल द्वारा उपलब्ध कराए गए जांच प्रतिवेदन से प्रमाणित होता है कि जिला कार्यक्रम पदाधिकारी स्थापना द्वारा अपने पदीय दायित्वों का सही ढंग से निर्वहन न करते हुए पद का दुरुपयोग किया जा रहा है, जिसके लिए जिला कार्यक्रम पदाधिकारी दोषी प्रतीत होते हैं.
यहां यह भी बता दें कि डीएम अंशुल अग्रवाल के द्वारा गठित त्रि-सदस्यीय जांच टीम, जिसमें उप विकास आयुक्त डॉ महेन्द पाल, अनुमंडल पदाधिकारी धीरेन्द्र मिश्र एवं अनुमंडल लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी शामिल थे. उन्होंने भी अपनी जांच रिपोर्ट में ने कहा है कि उक्त शिक्षक को भुगतान का मामला कई वर्षों से लंबित रहने की स्थिति में यह आवश्यक था कि जिला कार्यक्रम पदाधिकारी स्थापना संचिका में विधिवत आदेश/पृच्छा कर तथ्यों से अवगत होकर इस जिला शिक्षा पदाधिकारी से अनुमदनोपरांत भुगतान की कार्रवाई का निर्णय लेते, परंतु उनके द्वारा समुचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है.
बहरहाल, डीपीओ पर कार्रवाई की अनुशंसा का यह मामला फिलहाल बेहद चर्चा में है. क्योंकि डीपीओ का पदस्थापन जब से यहां हुआ है तब से वह अलग-अलग मामलों को लेकर हमेशा विवादों के घेरे में रहते हैं शिक्षा विभाग के सूत्रों का कहना है कि वह खुलेआम अपने पद का दुरुपयोग करते हैं, जिससे कि शिक्षक सदैव प्रताड़ित महसूस करते हैं.
0 Comments