चार लाख से दस लाख रुपये हुआ अस्पताल की सफाई का खर्च, बदबू इतनी कि थोड़ी देर खड़ा होना भी मुश्किल

बताया कि एक महिला सफाई कर्मी थोड़ी देर पहले आई थी, थोड़ी बहुत साफ-सफाई की, लेकिन गंदगी अभी पसरी हुई है. दुर्गंध से थोड़ी देर भी खड़ा होना मुश्किल है. लेकिन इलाज कराने पहुंचे तो इलाज होने तक रहना भी मजबूरी है.










                                           



- अस्पताल परिसर में पहली दुर्गंध, आगंतुक और रोगी के स्वजन परिजन परेशान
- जीविका के जिम्मे है सफाई की संपूर्ण व्यवस्था, चादर और पर्दे की धुलाई का भी मिला काम

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : सदर अस्पताल के स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली के साथ-साथ सफाई व्यवस्था भी बेहद बदहाल है. हालात ऐसे बन गए हैं कि यहां इलाज करने पहुंचने वाले मरीज व उनके स्वजन और भी ज्यादा बीमारी की आशंका से भयभीत रह रहे हैं. अस्पताल की साफ-सफाई की कमान जब से जीविका को मिली है तब से हालात और भी खराब हो गए हैं. वर्तमान में इमरजेंसी वार्ड से लेकर जनरल वार्ड तक गंदगी पसरी दिखाई दे रही है. सीढ़ियों से लेकर अधिकारियों के कार्यालय तक धूल और गंदगी देख कर ऐसा प्रतीत ही नहीं होता कि अस्पताल में सफाई भी हुई है. आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि लगभग 57 हजार स्क्वायर फीट के पूरे परिसर की सफाई के लिए पहले जहां लगभग चार लाख रुपए प्रति माह खर्च किए जाते थे वहीं अब यह राशि बढ़कर लगभग 10 लाख रुपये प्रतिमाह हो गई है. लेकिन व्यवस्थाएं पहले से भी खराब हो गई हैं. हाल ही में जिलाधिकारी अंशुल अग्रवाल भी स्वयं अस्पताल पहुंचे थे तो उन्होंने भी सफाई व्यवस्था को लेकर चिंता व्यक्त की थी.

लोगों ने सफाई व्यवस्था को खूब कोसा : 

अपने एक बीमार मित्र को देखने के लिए अस्पताल में पहुंचे सदर प्रखंड के महदह गांव निवासी रोहित सिंह ने बताया कि यहां बहुत ही दुर्गंध है. लगता है कि साफ-सफाई कभी होती ही नहीं. यहां जो लोग बीमारी ठीक करने पहुंच रहे हैं वह और भी बीमार हो जाएंगे. इमरजेंसी वार्ड में लगाए गए बेड पर खून और गंदगी की सफाई नहीं हुई है. सभी मरीज इस पर लाकर लिटाए जाते हैं.

सिंडिकेट के समीप की निवासी राधिका देवी जो अपनी बहू का इलाज करने के लिए अस्पताल पहुंची थी, उन्होंने बताया कि एक महिला सफाई कर्मी थोड़ी देर पहले आई थी थोड़ी बहुत साफ-सफाई की लेकिन गंदगी अभी पसरी हुई है. दुर्गंध से थोड़ी देर भी खड़ा होना मुश्किल है. लेकिन इलाज कराने पहुंचे तो इलाज होने तक रहना भी मजबूरी है.

प्रताप सागर निवासी विजय सेठ ने बताया कि वह एक मरीज को लेकर यहां पहुंचे हुए थे. बेड पर चादर नहीं थी तो उन्हें अपना चादर बिछाना पड़ा. सफाई व्यवस्था बेहद बदहाल है. ऐसा लग रहा है जैसे सफाई काफी दिनों से हुई ही नहीं है.

जिला परिषद अध्यक्ष प्रतिनिधि परमानंद यादव ने बताया कि यहां पहुंचने वाले रोगी स्वस्थ हो जाए इसकी कोई गारंटी दिखाई नहीं देती. अस्पताल में सबसे जरूरी साफ-सफाई होती है, लेकिन वह यहां बिल्कुल नहीं है. बेड गंदे हैं. फर्श पर भी गंदगी पसरी हुई है. रोगी के प्रति यहां के जिम्मेदार लोग कितने सेंसिटिव है, यह सफाई व्यवस्था देखकर समझ जा सकता है. जबकि सरकार के द्वारा इतनी व्यवस्थाएं दी गई हैं और हर माह करोड़ों रुपये खर्च भी किए जा रहे हैं. खास बात यह है कि किसी भी समस्या का समाधान तो दूर उसे सुनने वाला भी कोई अधिकारी नहीं है.

सफाई के साथ चादर और परदे की धुलाई का भी काम जीविका के जिम्मे :

सदर अस्पताल में साफ सफाई के साथ-साथ चादर और परदे की धुलाई भी अब जीविका के द्वारा की जाती है. चादर और पर्दे की धुलाई के लिए जीविका को अतिरिक्त राशि का भुगतान प्रति माह किया जाता है. ऐसे में यदि बेड पर चादर नहीं है तो इसकी जिम्मेदारी भी जीविका की ही मानी जायेगी.

निरीक्षण कर देखेंगे सफाई व्यवस्था का हाल - सीएस :

मामले में सिविल सर्जन डॉ गिरीश कुमार से बात करने पर उन्होंने बताया कि सफाई व्यवस्था जीविका के जिम्मे है. पूरे अस्पताल परिसर की सफाई जीविका कर्मियों के द्वारा की जाती है. हालांकि अभी कुछ दिनों पहले उन्होंने यहां का प्रभार लिया है ऐसे में निरीक्षण आदि के बाद ही वह इस मामले में ज्यादा बता सकते हैं.










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