श्रीमद्भागवत कथा : आचार्य ने किया सृष्टि की उत्पत्ति और भगवान शिव-सती के मिलन का दिव्य वर्णन

उन्होंने सृष्टि की उत्पत्ति, स्वयंभू मनु के चरित्र और भगवान शिव व सती के मिलन की कथा को विशेष रूप से प्रस्तुत किया. इस कथा में ब्रह्मांड के निर्माण से लेकर धर्म के पालन और जीवन के गहरे आध्यात्मिक पक्षों को उजागर किया गया.











                                           


- सृष्टि का आरंभ और धर्म का पालन
- भगवान शिव और सती की कथा का विशेष महत्व

बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर: जिले के इटाढ़ी में श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन मामाजी के कृपापात्र आचार्य रणधीर ओझा ने गहन और प्रेरणादायक व्याख्यान दिया. उन्होंने सृष्टि की उत्पत्ति, स्वयंभू मनु के चरित्र और भगवान शिव व सती के मिलन की कथा को विशेष रूप से प्रस्तुत किया. इस कथा में ब्रह्मांड के निर्माण से लेकर धर्म के पालन और जीवन के गहरे आध्यात्मिक पक्षों को उजागर किया गया.
सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन :

कथा के अनुसार, प्रलय के समय समस्त ब्रह्मांड जल में विलीन हो जाता है. इस समय भगवान विष्णु 'आध्यात्मिक योग' में लीन होते हैं और उनकी नाभि से उत्पन्न कमल पर ब्रह्मा जी विराजमान होते हैं. ब्रह्मा जी को सृष्टि के निर्माण का दायित्व सौंपा गया.

प्रारंभ और विस्तार :

भगवान विष्णु के निर्देश पर ब्रह्मा जी ने 'मनस पुत्रों' और देवताओं की रचना की. प्रकृति, जीव, जल, पृथ्वी, आकाश सहित सभी तत्व ब्रह्मा जी के माध्यम से निर्मित हुए. भागवत कथा में भगवान विष्णु के विराट रूप का भी उल्लेख किया गया, जिसमें उन्होंने ब्रह्मांड के निर्माण, पालन और संहार का कार्य अपनी विराट शक्ति से किया.

मनु और धर्म का पालन :

स्वयंभू मनु, जो पहले मनुष्य थे, को धर्म का पालन करने और सृष्टि को आगे बढ़ाने का कार्य सौंपा गया.  उन्होंने अपनी कन्याओं के विवाह द्वारा जीवन के विकास की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया. कथा के अनुसार, सृष्टि का निर्माण और पुनर्निर्माण निरंतर चक्र में चलता रहता है.

भगवान शिव और सती का दिव्य मिलन :

श्रीमद्भागवत कथा में भगवान शिव और सती के मिलन का वर्णन प्रेम, भक्ति और समर्पण का प्रतीक है. यह कथा जीवन के उद्देश्य और त्याग के महत्व को भी दर्शाती है।

सती का जन्म और तपस्या :

सती, दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं, जो बचपन से भगवान शिव की भक्ति में रमी हुई थीं. भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए उन्होंने कठोर तपस्या की. उनकी साधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया.

दक्ष यज्ञ और सती का आत्मदाह :

सती के पिता दक्ष ने भगवान शिव को यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया. इस अपमान से आहत होकर सती ने यज्ञ की अग्नि में आत्मदाह कर लिया. सती के निधन से भगवान शिव अत्यंत शोकाकुल हुए और उनके शोक के कारण ब्रह्मांड में विषाद छा गया.

शक्ति पीठों की स्थापना :

भगवान विष्णु ने सती के शरीर को विभिन्न स्थानों पर गिराकर शक्ति पीठों की स्थापना की. यह स्थान आज भी भक्ति और आस्था के केंद्र हैं.

कथा का आध्यात्मिक महत्व :

श्रीमद्भागवत कथा सृष्टि के भौतिक निर्माण के साथ-साथ जीवन के गहरे आध्यात्मिक पहलुओं को भी उजागर करती है. यह कथा बताती है कि हर जीव और कण भगवान की विराट शक्ति से जुड़ा है.

श्रद्धालुओं की उपस्थिति :

इस अवसर पर श्याम बिहारी पाठक, रामनारायण पाठक, पारस पाठक, राजेन्द्र पाठक, रमेश पाठक, राम व्यास ओझा, सौरभ पाठक, रामाशंकर पाठक, इंद्रलेश पाठक, मन भरन पाठक, राम मूरत पाठक, सत्यपाल पाठक, सोनू पाठक, किट्टू पाठक, जितेंद्र पाठक सहित बड़ी संख्या में महिला श्रद्धालु उपस्थित थीं.

इस कथा ने भक्तों को धर्म और आध्यात्मिकता के गहरे अर्थ को समझने का अवसर प्रदान किया.








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