कहा कि जब तक बक्सर के धार्मिक स्थलों का समुचित विकास नहीं होगा, तब तक यहां पर्यटन को बढ़ावा नहीं मिलेगा और न ही रोजगार के अवसर पैदा होंगे.
- पुजारियों को वेतन, धार्मिक मंत्रालय के गठन और तीर्थस्थलों के विकास पर दिया गया जोर
- पूर्व आइआरएस बिनोद चौबे के द्वारा किया गया आयोजन
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : धर्म, संस्कृति और इतिहास की त्रिवेणी मानी जाने वाली पावन भूमि बक्सर एक बार फिर अपनी पहचान को लेकर जागरूक हुई है. भगवान श्रीराम की शिक्षा स्थली और महर्षि विश्वामित्र की तपोभूमि के रूप में प्रसिद्ध बक्सर को बिहार की धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक राजधानी का दर्जा दिलाने की मांग को लेकर रविवार, 6 जुलाई को नगर भवन में सनातन महासम्मेलन का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में जनसैलाब उमड़ पड़ा और नगर भवन खचाखच भर गया. जिले के कोने-कोने से बड़ी संख्या में महिलाओं और पुरुषों ने इसमें सहभागिता की.
इस आयोजन के संयोजक पूर्व आईआरएस अधिकारी बिनोद चौबे रहे, जो चौबे का परसिया निवासी हैं और वर्षों से बक्सर की खोई हुई धार्मिक-सांस्कृतिक गरिमा को पुनर्स्थापित करने के लिए प्रयासरत हैं. कार्यक्रम का संचालन शिक्षक नेता धनंजय मिश्रा ने किया.
सम्मेलन में विभिन्न वक्ताओं ने बक्सर के ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला. इसी क्रम में प्रसिद्ध कथावाचक एवं संत मामा जी के कृपा पात्र आचार्य रणधीर ओझा ने कहा कि बक्सर वह धरती है जो कभी वेद गर्भा, कभी व्यग्र सर और कभी सिद्धाश्रम के नाम से जानी जाती रही है. इस पावन भूमि पर महर्षि विश्वामित्र सहित कई ऋषि-मुनियों को सिद्धि प्राप्त हुई. भगवान श्रीराम ने भी मर्यादा पुरुषोत्तम बनने की यात्रा की शुरुआत इसी धरती से की थी. उन्होंने कहा कि बिनोद चौबे द्वारा बक्सर के उत्थान के लिए की गई यह पहल अत्यंत सराहनीय है.
बिनोद चौबे ने जानकारी दी कि उन्होंने हाल ही में बिहार के राज्यपाल से मुलाकात कर इस विषय में ज्ञापन सौंपा है. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह कोई राजनीतिक मंच नहीं, बल्कि बक्सर की सांस्कृतिक और धार्मिक प्रतिष्ठा को फिर से स्थापित करने का एक निःस्वार्थ अभियान है.
सम्मेलन में यह मांग भी प्रमुखता से उठी कि मंदिरों, मठों और देवस्थानों के रखरखाव और विकास के लिए सरकार को आर्थिक सहायता प्रदान करनी चाहिए. इसके साथ ही एक धार्मिक मंत्रालय के गठन की मांग की गई, जिससे धार्मिक स्थलों के विकास के लिए एक संगठित योजना बनाई जा सके.
वक्ताओं ने पुजारियों, पुरोहितों और ब्राह्मणों की दयनीय आर्थिक स्थिति पर भी चिंता जताई और सरकार से इन्हें ₹25,000 मासिक वेतन देने की मांग की. उनका कहना था कि यह वर्ग समाज की आध्यात्मिक नींव है और इनका सशक्तिकरण आवश्यक है.
सम्मेलन में वक्ताओं ने यह भी कहा कि जब तक बक्सर के धार्मिक स्थलों का समुचित विकास नहीं होगा, तब तक यहां पर्यटन को बढ़ावा नहीं मिलेगा और न ही रोजगार के अवसर पैदा होंगे. बक्सर को यदि धार्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया जाए, तो इससे क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को नई गति मिल सकती है.
गौरतलब है कि बक्सर वही भूमि है, जहां त्रेतायुग में भगवान राम ने महर्षि विश्वामित्र के आदेश पर राक्षसों का संहार कर पांच कोस की परिक्रमा की थी. यह परंपरा आज भी जीवित है और श्रद्धालुओं द्वारा निभाई जाती है. ऐसी विरासत को संरक्षित करना न केवल जरूरी है, बल्कि यह पूरे राष्ट्र के गौरव से जुड़ा विषय है.
कार्यक्रम के अंत में उपस्थित जनसमुदाय ने एक स्वर में संकल्प लिया कि वे बक्सर को धार्मिक राजधानी का दर्जा दिलाने के इस अभियान को जन-आंदोलन का रूप देंगे और इसमें सक्रिय भागीदारी निभाएंगे.
इस अवसर पर पंडित बद्रीनाथ बक्सरी, विनोदानंद ओझा, संजय ओझा, मनीष चौबे, भाजपा जिलाध्यक्ष ओम प्रकाश भुवन, जदयू नेता रवि राज, लोजपा नेता राहुल चौबे, वामन चेतना मंच के प्रमोद चौबे, भाजपा नेता दीपक पांडेय संजय राय, इंदु देवी, धनजी राय, पटना हाई कोर्ट के अधिवक्ता डॉ सरोज चौबे समेत कई प्रमुख लोग मौजूद रहे, जिन्होंने सम्मेलन को सार्थकता प्रदान की और आंदोलन को समर्थन दिया.
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