कर्मियों के अनुसार, बीते करीब दो दशकों से हजारों कर्मचारी बिना किसी प्रोन्नति के एक ही पद पर कार्यरत हैं. हालात यह हैं कि जिस पद पर सेवा की शुरुआत होती है, उसी पद पर सेवानिवृत्ति तक पहुंचना मजबूरी बन चुका है.
- प्रोन्नति, वेतनमान और पद वर्गीकरण की मांग वर्षों से लंबित
- काली पट्टी बांधकर गांधीवादी तरीके से जताएंगे विरोध
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : बिहार की अधीनस्थ अदालतों में कार्यरत न्यायिक कर्मियों ने अपनी वर्षों पुरानी मांगों को लेकर अब मौन विरोध का रास्ता अपनाने का निर्णय लिया है. आगामी 16 और 17 जनवरी 2026 को राज्य की सभी अदालतों में न्यायिक कर्मी काली पट्टी बांधकर और मौन रहकर अपने कार्यों का निष्पादन करेंगे. कर्मचारियों का कहना है कि यह कदम उनकी पीड़ा और उपेक्षा के खिलाफ एक शांत लेकिन सशक्त संदेश होगा.
न्यायिक कर्मियों के अनुसार, बीते करीब दो दशकों से हजारों कर्मचारी बिना किसी प्रोन्नति के एक ही पद पर कार्यरत हैं. हालात यह हैं कि जिस पद पर सेवा की शुरुआत होती है, उसी पद पर सेवानिवृत्ति तक पहुंचना मजबूरी बन चुका है. इसके साथ ही पुनरीक्षित वेतनमान लागू न होना और पदों का वर्गीकरण नहीं किया जाना कर्मचारियों के लिए आर्थिक और मानसिक संकट का कारण बन गया है.
अदालतों में लंबित मुकदमों की बढ़ती संख्या के साथ विशाल अभिलेखों का बोझ भी कर्मचारियों पर लगातार बढ़ता जा रहा है. रिकॉर्ड रूम में जगह, संसाधन और आधुनिक सुविधाओं की कमी के बीच काम करना उनके लिए शारीरिक और मानसिक पीड़ा का सबब बन गया है. कर्मचारियों का यह भी आरोप है कि सेवाकाल के दौरान निधन होने वाले साथियों के परिजन अनुकंपा नियुक्ति के लिए वर्षों से भटक रहे हैं, लेकिन उन्हें केवल आश्वासन ही मिल रहा है.
कर्मचारी संघ के अध्यक्ष राजेश्वर तिवारी और महासचिव सत्यार्थ सिंह का कहना है कि माननीय उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा भरोसा दिलाए जाने और सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट दिशा-निर्देशों के बावजूद प्रशासन ने अब तक उनकी मांगों पर कोई ठोस निर्णय नहीं लिया है. इसी क्रम में आरा न्यायमंडल के वरिष्ठ कर्मचारी सुशील कुमार राय के अंतर-जिला स्थानांतरण को संगठन ने आवाज दबाने की कोशिश बताया है.
संघ ने स्पष्ट किया है कि 16 और 17 जनवरी को किया जाने वाला मौन कार्य केवल चेतावनी है. महासचिव सत्यार्थ सिंह ने कहा कि यदि प्रोन्नति, वेतन विसंगति और अभिलेखों के अत्यधिक बोझ जैसी समस्याओं पर शीघ्र विचार नहीं किया गया, तो आने वाले समय में आंदोलन को और व्यापक किया जाएगा, जिसकी पूरी जिम्मेदारी प्रशासन की होगी.





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