अदालत ने ब्रह्मपुर थाना कांड में एक और सिमरी थाना क्षेत्र के मामले में चार अभियुक्तों को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई. दोनों मामले जमीन विवाद से जुड़े थे और लंबे समय से न्यायालय में विचाराधीन थे.
- ब्रह्मपुर और सिमरी थाना कांड में कोर्ट ने सुनाया फैसला
- जमीन विवाद में हुई मौतों पर न्याय की बड़ी जीत
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : जिले में तीन दशक पुराने दो अलग-अलग हत्या मामलों में न्यायालय ने सख्त फैसला सुनाया है. अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (एडीजे-5) की अदालत ने ब्रह्मपुर थाना कांड में एक और सिमरी थाना क्षेत्र के मामले में चार अभियुक्तों को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई. दोनों मामले जमीन विवाद से जुड़े थे और लंबे समय से न्यायालय में विचाराधीन थे.
ब्रह्मपुर थाना कांड 8 मई 1999 का है. इस मामले में ब्रहमपुर चौरास्ता निवासी भीम तिवारी (पिता स्वर्गीय कालिका तिवारी) को भारतीय दंड संहिता की धारा 302/149 के तहत दोषी पाते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. इसके साथ ही 10 हजार रुपये का अर्थदंड लगाया गया. अर्थदंड अदा न करने पर तीन माह का अतिरिक्त साधारण कारावास भुगतना होगा. इसके अलावा धारा 307/149 के तहत सात वर्ष का सश्रम कारावास और 10 हजार रुपये का अलग से अर्थदंड भी लगाया गया.
अपर लोक अभियोजक शेषनाथ सिंह ने बताया कि घटना 8 मई 1999 की शाम करीब 3.30 बजे हुई थी. आरोपी सूचक की जमीन पर चहारदीवारी का निर्माण कर रहे थे. विरोध करने पर विवाद बढ़ा और लाठी-डंडों से हमला किया गया. इस हमले में ब्रह्मपुर निवासी रामाशंकर प्रसाद (पिता विश्वनाथ प्रसाद) गंभीर रूप से घायल हो गए थे. उन्हें पीएमसीएच, पटना रेफर किया गया, जहां उपचार के दौरान उनकी मृत्यु हो गई. मृतक के भाई दयाशंकर प्रसाद के बयान पर आठ लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी. मामले में नौ गवाहों की गवाही के आधार पर अदालत ने फैसला सुनाया.
सिमरी थाना क्षेत्र के दुधीपट्टी गांव का मामला 11 अगस्त 1993 का है. आरोपी रामप्रवेश राय और अन्य आरोपियों ने जमीन विवाद को लेकर अशोक कुमार राय पर हमला किया. इस हमले में अशोक राय गंभीर रूप से जख्मी हो गए और 13 अगस्त 1993 को इलाज के दौरान उनकी मृत्यु हो गई. इस मामले में चार अभियुक्तों रामप्रवेश राय, रामाश्रय राय, रामपुकार राय (तीनों पिता केदारनाथ राय) और समरेन्द पांडेय उर्फ सतीश राय (पिता सुभाष राय) दोषी ठहराए गए. अदालत ने उन्हें आजीवन कारावास और 10-10 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई.
इन फैसलों को न्यायिक प्रक्रिया की बड़ी सफलता और पीड़ित परिवारों के लिए लंबे समय बाद मिली न्याय की जीत माना जा रहा है.





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