कानून की चौखट पर बेजुबानों को मिला इंसाफ ..

इस मानवीय पहल की शुरुआत न्यायालय के चतुर्थवर्गीय कर्मचारी एवं रात्रि प्रहरी सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा उर्फ पालजी ने की. दिन हो या रात, वे रोज इन बेजुबान जानवरों और उनके शावकों को भोजन कराते हैं.




                                         



  • बक्सर व्यवहार न्यायालय परिसर में बेजुबानों के लिए उम्मीद की गर्माहट
  • कर्मचारी और अधिवक्ता की पहल से ठंड में सुरक्षित हुए निरीह प्राणी

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : जहां न्याय की दलीलें गूंजती हैं, दस्तावेजों के पुलिंदे खुलते हैं और फैसलों से जीवन की दिशा तय होती है, उसी व्यवहार न्यायालय, बक्सर के परिसर में इन दिनों एक और मौन कहानी लिखी जा रही है. यह कहानी है उन निरीह बेजुबान जानवरों और उनके शावकों की, जिन्हें इंसानी करुणा ने ठंड की रातों में सहारा दिया है.

न्यायालय के विशाल प्रांगण में वर्षों से रहने वाले दर्जनों आवारा बेजुबान जानवर अब सिर्फ राहगीर नहीं रहे. वे यहां के रक्षक भी हैं, साथी भी और अब संवेदना के पात्र भी. इस मानवीय पहल की शुरुआत न्यायालय के चतुर्थवर्गीय कर्मचारी एवं रात्रि प्रहरी सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा उर्फ पालजी ने की. दिन हो या रात, वे रोज इन बेजुबान जानवरों और उनके शावकों को भोजन कराते हैं. रात की ड्यूटी के दौरान जब पूरा परिसर शांत हो जाता है, तब यही निरीह प्राणी उनके सबसे भरोसेमंद साथी बन जाते हैं.

ठंड बढ़ने पर पालजी ने पेड़ के नीचे प्लास्टिक की झोपड़ी बनाकर इन बेजुबान जानवरों के लिए अस्थायी आश्रय तैयार किया. यह झोपड़ी सिर्फ एक ढांचा नहीं, बल्कि इंसानियत की छत थी, जिसके नीचे निरीह जानवर और उनके शावक सर्द रातों में सुकून की नींद ले सकें.

इसी मानवीय श्रृंखला में अब एक नया नाम जुड़ा है, न्यायालय की अधिवक्ता संध्या जायसवाल. बढ़ती ठंड और ठिठुरते बेजुबान शावकों को देखकर उनका मन द्रवित हो उठा. उन्होंने न सिर्फ अस्थायी आश्रय स्थल पर दो कंबल दान किए, बल्कि स्वयं उन्हें बिछाकर और ढककर यह सुनिश्चित किया कि बेजुबान जीव सुरक्षित रहें.

एक कंबल शावकों के लिए जमीन पर बिछाया गया, जबकि दूसरा प्लास्टिक की छत पर डालकर झोपड़ी को ठंड से और मजबूत बनाया गया. यह दृश्य देखने वालों के लिए साधारण नहीं था, क्योंकि यहां कानून की किताबें पढ़ने वाली एक अधिवक्ता करुणा की भाषा बोल रही थीं.

डुमरांव स्टेशन रोड निवासी स्वर्गीय ऋषि जायसवाल की पुत्री संध्या जायसवाल ने कहा कि कड़ाके की ठंड में ये बेजुबान जानवर सबसे ज्यादा पीड़ित होते हैं. वे न बोल सकते हैं और न ही अपनी पीड़ा व्यक्त कर पाते हैं. इसी कारण उन्होंने तय किया है कि न्यायालय परिसर में रहने वाले बेजुबान जानवरों और उनके शावकों की सेवा वे नियमित रूप से करेंगी.

दिन के समय ये बेजुबान जानवर न्यायालय परिसर को बंदरों से भी सुरक्षित रखते हैं, लेकिन इससे बढ़कर वे यह संदेश देते हैं कि सुरक्षा और सेवा का रिश्ता केवल इंसानों के बीच नहीं, बल्कि इंसान और प्रकृति के बीच भी होता है.

न्यायालय परिसर में यह पहल बताती है कि न्याय केवल फाइलों और फैसलों तक सीमित नहीं है. जब समाज बेजुबान जीवों की पीड़ा को समझने लगता है, तभी वह वास्तव में न्यायपूर्ण बनता है. बक्सर व्यवहार न्यायालय में कंबलों की यह छोटी-सी पहल दरअसल इंसानियत की बड़ी जीत है, जो यह सिखाती है कि करुणा ही सबसे बड़ा कानून है.











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