धर्मगुरुओं का अपमान बर्दाश्त नहीं : जनसंघ

कहा कि सरसंघचालक गोलवलकर गुरुजी की भावना थी कि विश्व हिन्दू परिषद बृहत्तर हिन्दू परिवार बने न कि संघ परिवार का एक आनुषंगिक संगठन. इसी प्रकार हिन्दुओं का नेतृत्व संत समाज के मार्गदर्शन में चले. किंतु आज प्रामाणिक संतों से मार्गदर्शन प्राप्त करने के बजाय अपने वेषधारी कार्यकर्ताओं को साथ लेकर सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्रों के लोग ही नेतृत्व कर रहे हैं






- आचार्य भारत भूषण पांडे ने कहा शंकराचार्य का अपमान उचित नहीं
- सामाजिक राजनीतिक क्षेत्र के लोग कर रहे हैं आध्यात्मिक धार्मिक विषयों में भी दखलअंदाजी

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : अखिल भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष आचार्य भारतभूषण पाण्डेय ने कहा कि पिछले पांच सौ वर्षों के संघर्ष के बाद अयोध्या में श्रीरामलला अपने नवनिर्मित मंदिर में प्रतिष्ठित हो रहे हैं, जिसका सभी भारतीयों और विश्व के रामभक्तों को अतीव आनंद हो रहा है. लेकिन इस दौरान धर्म गुरुओं और शंकराचार्य का अपमान भी किया जा रहा है जिसे जनसंघ बर्दाश्त नहीं करेगा. उन्होंने कहा कि जनसंघ नेता प्रो बलराज मधोक ने 14 सितंबर 1961 को पहली बार लोकसभा में श्रीरामजन्मभूमि अयोध्या, श्रीकृष्णजन्मस्थान मथुरा और श्रीकाशीविश्वनाथ के भग्नावशेषों के पुनरूद्धार की मांग ऐतिहासिक प्रमाणों के साथ की थी. याद रहे कि विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना इसके बाद 1964 में हुई. उन्होंने कहा कि सरसंघचालक गोलवलकर गुरुजी की भावना थी कि विश्व हिन्दू परिषद बृहत्तर हिन्दू परिवार बने न कि संघ परिवार का एक आनुषंगिक संगठन. इसी प्रकार हिन्दुओं का नेतृत्व संत समाज के मार्गदर्शन में चले. किंतु आज प्रामाणिक संतों से मार्गदर्शन प्राप्त करने के बजाय अपने वेषधारी कार्यकर्ताओं को साथ लेकर सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्रों के लोग ही नेतृत्व कर रहे हैं और आध्यात्मिक-धार्मिक विषयों में भी व्यवस्था दे रहे हैं जो नितांत अनुचित एवं अव्यावहारिक है. 

जनसंघ अध्यक्ष ने विहिप नेता चंपतराय के बयान जिसमें उन्होंने राम मंदिर को रामानंद संप्रदाय का बतलाते हुए शैव, शाक्त आदि को अलग सिद्ध किया है कि कड़ी निंदा करते हुए कहा कि राम जीवमात्र के लिए हैं. राम मंदिर के लिए सभी सनातनी संघर्ष किये हैं. यह अविवेकपूर्ण और समाज को बांटनेवाला वक्तव्य है. कुछ लोगों द्वारा शंकराचार्य के ऊपर टिप्पणी करने की भर्त्सना करते हुए आचार्य भारतभूषण ने कहा कि भगवान शंकराचार्य ने वैदिक धर्म, संस्कृति और परम्पराओं की रक्षा कर इस देश को बचाया है. उनके बिना भारत की कल्पना भी नहीं हो सकती है. उस परंपरा के महापुरुषों के असीम योगदान का उल्लेख करना बहुत कठिन है. आध्यात्मिक-धार्मिक विषयों पर शंकराचार्य ही सर्वोच्च हैं और उनका निर्णय ही सर्वोपरि है. उन्होंने कहा कि कम से कम धार्मिक क्षेत्र में शास्त्र का शासन हो और मठ-मंदिरों को सरकारी नियंत्रण तथा हस्तक्षेप से मुक्त रखा जाय.










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