कहा कि रासलीला केवल नृत्य या गीत का प्रसंग नहीं है, बल्कि यह आत्मा और परमात्मा के मिलन की कथा है. उन्होंने समझाया कि रास शरीर का नहीं, आत्मा का विषय है. जब कोई भक्त प्रभु को अपना सर्वस्व समर्पित कर देता है, तभी महारास घटित होता है.
- रासलीला को बताया आत्मा और परमात्मा के मिलन का अद्भुत प्रसंग
- कहा - सच्चे मन से याद करने पर चले आते हैं भगवान
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : जिले के इटाढ़ी में चल रहे श्रीमद् भागवत कथा के छठवें दिन संत मामा जी के कृपापात्र आचार्य रणधीर ओझा ने भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला का भावपूर्ण वर्णन किया. उन्होंने कहा कि रासलीला केवल नृत्य या गीत का प्रसंग नहीं है, बल्कि यह आत्मा और परमात्मा के मिलन की कथा है. उन्होंने समझाया कि रास शरीर का नहीं, आत्मा का विषय है. जब कोई भक्त प्रभु को अपना सर्वस्व समर्पित कर देता है, तभी महारास घटित होता है.
भगवान श्रीकृष्ण ने बांसुरी बजाकर गोपियों को बुलाया, लेकिन जब गोपियों के भीतर भक्ति का अहंकार जागृत हुआ, तो श्रीकृष्ण ओझल हो गए. गोपियों ने "गोपी गीत" के माध्यम से अपनी भक्ति और प्रेम व्यक्त किया, जिससे प्रभु प्रकट हुए और महारास का आयोजन हुआ. आचार्य ने कहा कि महारास में गाए जाने वाले पांच गीत भागवत के पंच प्राण हैं. जो भी इन्हें सच्चे भाव से गाता है, वह भवसागर पार कर लेता है और उसे वृंदावन की भक्ति सहज प्राप्त होती है.
रुक्मिणी विवाह: प्रेम, समर्पण और भक्ति की अद्भुत गाथा :
आचार्य श्री ने श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के विवाह का प्रसंग सुनाया. उन्होंने बताया कि नारद जी ने रुक्मिणी के पिता राजा भीष्मक को संदेश दिया कि रुक्मिणी का विवाह त्रिलोकीनाथ श्रीकृष्ण से होना चाहिए. नारद जी की बात सुनकर रुक्मिणी के भाई रुक्मण नाराज हो गए और उन्होंने रुक्मिणी का विवाह अपने मित्र राजा शिशुपाल से तय कर दिया.
उधर, रुक्मिणी ने अपने मन की बात श्रीकृष्ण तक पहुंचाने के लिए एक संदेश भिजवाया. जब रुक्मिणी गौरीशंकर मंदिर में पूजा करने पहुंचीं, तो श्रीकृष्ण वहां आए और उन्हें अपने रथ पर बिठाकर द्वारका ले गए. शिशुपाल और जरासंध ने उनका पीछा किया, लेकिन असफल रहे. अंततः जब रुक्मण को अहसास हुआ कि श्रीकृष्ण स्वयं नारायण हैं और रुक्मिणी लक्ष्मी जी हैं, तो उन्होंने उनका विवाह संपन्न कराया.
भागवत कथा : जीवन को भावपूर्ण बनाने का संदेश :
आचार्य रणधीर ओझा ने कथा में कंस वध, महर्षि संदीपनी के आश्रम में शिक्षा प्राप्ति, कालयवन का वध, द्वारका की स्थापना और अन्य प्रसंगों का संगीतमय वर्णन किया. उन्होंने कहा कि भागवत पुराण में बताया गया है कि जो कोई भी रासलीला का ईमानदारी से श्रवण करता है या उसका वर्णन करता है, वह श्रीकृष्ण की प्रेमपूर्ण भक्ति को प्राप्त करता है.
भक्तों को किया भावविभोर :
कथा के दौरान तबला वादन दीपक तिवारी ने, आर्गन पर अंकित पांडेय ने और झाल पर कृष्णा पांडेय ने संगत की. आचार्य श्री ने कथा के अंत में कहा कि भगवान को केवल संसारिक वस्तुओं के लिए नहीं, बल्कि उनकी भक्ति और कृपा के लिए याद करना चाहिए..यदि सच्चे मन से ईश्वर का स्मरण किया जाए, तो वे अवश्य ही कृपा करते हैं.
आचार्य रणधीर ओझा के साथ आचार्य के रूप में संजीत कुमार चौबे, ब्रह्मा के रूप में पंडित अवनीश उपाध्याय और उप आचार्य पंकज पांडेय ने भी कार्यक्रम को सफल बनाया. इस आयोजन ने भक्तों को भक्ति और समर्पण के महत्व को समझने का अनमोल अवसर प्रदान किया.
0 Comments