हिंदी की महिमा पर कवि सम्मेलन का आयोजन

हिंदी को संस्कार और साहस का प्रतीक बताते हुए कहा, "हिंदी दमन के खिलाफ हमेशा निर्भीक खड़ी रही है. यही कारण है कि इसे खड़ी बोली कहा जाता है." उन्होंने अपने वक्तव्य के साथ कविता सुनाकर कवि सम्मेलन का उद्घाटन किया.












                                           

  • विश्व हिंदी दिवस पर साहित्यकारों ने साझा किए विचार
  • गजल और कविताओं ने बांधा समां, हिंदी के विकास का लिया संकल्प

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर 10 जनवरी 2025 को सिद्धाश्रम साहित्य न्यास परिषद, बक्सर के तत्वावधान में हिंदी की दशा और दिशा पर परिचर्चा-सह-भव्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार श्रीनिवास पाठक ने की, जबकि मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ समालोचक और साहित्यकार डॉ. अरुण मोहन भारवि उपस्थित रहे. कार्यक्रम का संचालन वरीय साहित्यकार शिव बहादुर पांडेय प्रीतम ने किया.

कार्यक्रम की शुरुआत सिद्धाश्रम साहित्य परिषद के महासचिव श्रीभगवान पांडेय द्वारा आमंत्रित कवियों और साहित्यकारों का पगड़ी पहनाकर सम्मान करने से हुई. उन्होंने हिंदी को "भारत के माथे की बिंदी" बताते हुए कहा कि आजादी की लड़ाई से लेकर भारतीय संस्कृति के संवाहक के रूप में हिंदी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. मुख्य अतिथि डॉ. अरुण मोहन भारवि ने हिंदी को संस्कार और साहस का प्रतीक बताते हुए कहा, "हिंदी दमन के खिलाफ हमेशा निर्भीक खड़ी रही है. यही कारण है कि इसे खड़ी बोली कहा जाता है." उन्होंने अपने वक्तव्य के साथ कविता सुनाकर कवि सम्मेलन का उद्घाटन किया.

कवि सम्मेलन की शुरुआत कवि वशिष्ठ पांडेय द्वारा सरस्वती वंदना से हुई. महाकवि महेश्वर ओझा 'महेश' और रामेश्वर मिश्र 'विहान' ने अपनी प्रेरणादायक रचनाओं से श्रोताओं में उत्साह का संचार किया. इसके बाद राजा रमण पांडेय, नवोदित कवि प्रीतम चौबे, और शिक्षाविद डॉ. श्रीनिवास चतुर्वेदी ने वर्तमान काल की विसंगतियों पर अपने विचार प्रस्तुत किए. इंजीनियर अरुण कुमार ओझा ने अपनी भावनात्मक रचना "माई" सुनाकर सभी को भावुक कर दिया.

इसके बाद गजल के दौर ने माहौल को और सरस बना दिया. लोकप्रिय गजल गायक नर्वदेश्वर उपाध्याय 'पंडित' ने "अरे बेवफा मेरे दिलरुबा..." सुनाकर समां बांध दिया. फारुख शैफी की गजल "यार जब अश्कबार आता है..." ने श्रोताओं को भावनाओं से जोड़ दिया. चर्चित गीतकार श्रीभगवान पांडेय ने अपने व्यंग्य गीत "साधो कहे पते की बात..." से समसामयिक मुद्दों पर गहरी चोट की.

अंत में, संचालक शिव बहादुर पांडेय प्रीतम ने "हमारी आन है हिंदी..." कविता सुनाकर सभी को हिंदी की महिमा और महत्व पर विचार करने और इसे विकसित करने के लिए प्रेरित किया. कार्यक्रम का समापन दिव्य भारत ट्रस्ट के अध्यक्ष अरुण कुमार ओझा के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ.

यह आयोजन न केवल हिंदी की गरिमा को बढ़ाने वाला था, बल्कि इसे विश्व पटल पर स्थापित करने के लिए प्रेरणादायक भी रहा.












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