श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन हुआ श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का अलौकिक आयोजन ..

कहा कि प्रह्लाद की अटूट निष्ठा ने अधर्म के प्रतीक हिरण्यकशिपु के साम्राज्य को हिला दिया. कठिन परिस्थितियों और मृत्यु के भय के बावजूद प्रह्लाद ने कभी भी भगवान नारायण से अपनी श्रद्धा नहीं छोड़ी.




                                         





  • प्रह्लाद और समुद्र मंथन की कथा से भक्त हुए भाव-विभोर
  • शंखध्वनि और भजन-कीर्तन से गूंजा पूरा पंडाल

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : नगर के रामेश्वर मंदिर में सिद्धाश्रम विकास समिति के तत्वाधान में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन का आयोजन पूरी तरह भक्ति और उल्लास से सराबोर रहा. कथा वाचक मामाजी के कृपापात्र आचार्य रणधीर ओझा ने प्रवचन की शुरुआत भक्त प्रह्लाद की अमर कथा से की. उन्होंने कहा कि प्रह्लाद की अटूट निष्ठा ने अधर्म के प्रतीक हिरण्यकशिपु के साम्राज्य को हिला दिया. कठिन परिस्थितियों और मृत्यु के भय के बावजूद प्रह्लाद ने कभी भी भगवान नारायण से अपनी श्रद्धा नहीं छोड़ी.

कथा के अगले प्रसंग में समुद्र मंथन का अध्यात्मिक वर्णन किया गया. आचार्य श्री ने बताया कि देवताओं और दानवों ने मंदराचल पर्वत से समुद्र का मंथन कर चौदह रत्न प्राप्त किए. यह कथा केवल पौराणिक आख्यान नहीं बल्कि जीवन का गूढ़ संदेश है. जीवन में अमृत और विष दोनों मिलते हैं, लेकिन धैर्य, सहयोग और विवेक से ही अमृत की प्राप्ति संभव है.

इसके बाद वामन भगवान की लीला का प्रसंग आया. आचार्य श्री ने बताया कि भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण कर राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी और संपूर्ण ब्रह्मांड को नाप लिया. यह कथा धर्म, दान और विनम्रता की पराकाष्ठा है. धर्म की रक्षा के लिए भगवान किसी भी रूप में अवतरित हो सकते हैं और सच्चा दान वही है, जिसमें अहंकार नहीं बल्कि त्याग हो.

कथा का चरम क्षण रहा श्रीकृष्ण जन्म का उत्सव. जैसे ही आचार्य श्री ने देवकी-वसुदेव की कोठरी में भगवान कृष्ण के प्राकट्य का वर्णन किया, पूरा वातावरण गूंज उठा. "नंद के आनंद भयो, जय कन्हैयालाल की" के उद्घोष के साथ श्रद्धालु झूमने लगे. शंखध्वनि, भजन-कीर्तन और मंगल गीतों से पंडाल गुंजायमान हो गया. बच्चे कृष्ण स्वरूप में सजे थे और महिलाओं ने दीप प्रज्वलित कर आनंदोत्सव मनाया.

कथा के समापन पर आचार्य रणधीर ओझा ने कहा कि भगवत कथा केवल सुनने का विषय नहीं है बल्कि उसे जीवन में आत्मसात करना चाहिए. प्रह्लाद की भक्ति, समुद्र मंथन का धैर्य, वामन की विनम्रता और श्रीकृष्ण का अवतरण — यह सब हमें धर्म, भक्ति और सेवा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं.







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