भगवान रामेश्वर नाथ मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद यात्रा अहिरौली पहुंची थी, जहां पहले पड़ाव पर महर्षि गौतम के आश्रम और माता अहिल्या मंदिर में श्रद्धालुओं ने दीप प्रज्ज्वलित कर सुख-शांति की कामना की. सोमवार को अहिरौली से प्रस्थान कर यात्रा नदांव पहुंची, जहां भक्तों ने नारद ऋषि की वंदना की.

- भक्तिरस में डूबा बक्सर, डॉ. राम नाथ ओझा बोले – पंचकोशी परिक्रमा आत्मशुद्धि और लोककल्याण का प्रतीक
- संतों के मंत्रोच्चार से हुई शुरुआत, हजारों श्रद्धालु पहुंचे नदांव आश्रम
बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : त्रेता युग से चली आ रही प्राचीन परंपरा के तहत शुरू हुई विश्वप्रसिद्ध पंचकोशी परिक्रमा सोमवार को अपने दूसरे पड़ाव नदांव पहुंच गई. अहिरौली से आगे बढ़ी यह यात्रा संत समाज के वैदिक मंत्रोच्चार के बीच जयघोषों के साथ नदांव पहुंची, जहां नारद ऋषि के आश्रम में श्रद्धालुओं ने पूजा-अर्चना कर प्रसाद ग्रहण किया. पांच दिवसीय यह पावन परिक्रमा 14 नवम्बर तक चलेगी.
पंचकोशी परिक्रमा समिति के तत्वावधान में बसांव पीठाधीश्वर अच्युत्प्रापन्नाचार्य जी महाराज के निर्देशन में यात्रा की शुरुआत रविवार को रामरेखा घाट से हुई थी. भगवान रामेश्वर नाथ मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद यात्रा अहिरौली पहुंची थी, जहां पहले पड़ाव पर महर्षि गौतम के आश्रम और माता अहिल्या मंदिर में श्रद्धालुओं ने दीप प्रज्ज्वलित कर सुख-शांति की कामना की. सोमवार को अहिरौली से प्रस्थान कर यात्रा नदांव पहुंची, जहां भक्तों ने नारद ऋषि की वंदना की. साथ ही साथ नारदेश्वर शिव मंदिर में पूजा अर्चना की.
प्रसिद्ध रामकथा वाचक डॉ. राम नाथ ओझा ने इस अवसर पर कहा कि “पंचकोशी परिक्रमा केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं है, बल्कि यह आत्मशुद्धि और लोककल्याण का प्रतीक है. जिस मार्ग पर भगवान श्रीराम स्वयं चले थे, उस पथ का अनुसरण कर श्रद्धालु भी अपने भीतर की नकारात्मकता को त्यागकर धर्म, सत्य और प्रेम के पथ पर अग्रसर होते हैं.” उन्होंने श्रद्धालुओं से संयम, अनुशासन और स्वच्छता का पालन करने की अपील भी की.
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| दीप दान करती महिलाएं |
भगवान श्रीराम की पौराणिक यात्रा को करता है जीवंत :
मान्यता है कि त्रेता युग में भगवान श्रीराम और लक्ष्मण ने महर्षि विश्वामित्र के आश्रम में शिक्षा प्राप्त की थी. राक्षसों का वध करने के बाद उन्होंने पांच कोस में फैले विभिन्न ऋषि-मुनियों के आश्रमों का भ्रमण कर आशीर्वाद प्राप्त किया था. पहले दिन अहिरौली स्थित गौतम ऋषि के आश्रम में माता अहिल्या को मुक्ति दिलाने के बाद उन्होंने पुआ-पकवान का प्रसाद ग्रहण किया था. दूसरे दिन वे नदांव पहुंचे, जहां नारद ऋषि के द्वारा उन्हें सत्तू और मूली का प्रसाद दिया गया था.
इसी परंपरा का पालन करते हुए श्रद्धालु भी हर वर्ष इन पवित्र स्थलों की परिक्रमा कर वही प्रसाद ग्रहण करते हैं, जो भगवान श्रीराम ने किया था. यही कारण है कि पंचकोशी परिक्रमा आज भी बक्सर की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत प्रतीक बनी हुई है.
व्यवस्था चुस्त, प्रशासन सतर्क :
पंचकोशी परिक्रमा को लेकर जिला प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद है. श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए बिजली, पानी, शौचालय, सफाई और सुरक्षा की समुचित व्यवस्था की गई है. जगह-जगह मजिस्ट्रेटों और महिला-पुरुष पुलिस बल की तैनाती की गई है.
जिलाधिकारी डॉ. विद्यानंद सिंह, आरक्षी अधीक्षक शुभम आर्य, अनुमंडल पदाधिकारी अविनाश कुमार, अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी गौरव पांडेय और नगर परिषद की टीम ने यात्रा मार्ग और प्रमुख पड़ावों का निरीक्षण किया.
नदांव में सोमवार को जहां-जहां यात्रा पहुंची, वहां भक्ति और उल्लास का वातावरण व्याप्त रहा. “जय श्रीराम” और “हर हर महादेव” के जयघोषों से पूरा क्षेत्र गूंज उठा, वहीं श्रद्धालु भगवान के पदचिह्नों पर चलते हुए इस अद्भुत आध्यात्मिक परंपरा का साक्षी बने.
वीडियो :
पंचकोशी है आध्यात्मिक यात्रा :
बक्सर का पौराणिक इतिहास :






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