धर्म के अनुसार जीवन जीने वाले के लिए संसार में कुछ भी असंभव नहीं : पौराणिक जी

ईश्वर का नर रूप में अवतरित होने का कोई एक कारण नहीं हो सकता. उनके अनेक अवतार हैं तथा अवतार के अनेक कारण भी हैं. किंतु श्री राम के अवतार का कारण उन सभी अवतारों से पृथक है. प्रथम नर रूप में आकर संसार को यह बताना कि धर्म अनुसार जीवन जीने वाले मनुष्य के लिए संसार में कुछ भी असंभव नहीं है. 




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- श्रीलक्ष्मी नारायण महायज्ञ तथा राम कथा का हुआ आयोजन
- सर्वजन कल्याण सेवा समिति सिद्धाश्रम धाम के द्वारा आयोजित है कार्यक्रम

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : सर्वजन कल्याण सेवा समिति, सिद्धाश्रम धाम बक्सर द्वारा आयोजित श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ सह नव दिवसीय श्री राम कथा के द्वितीय दिवस आचार्य कृष्णानन्द शास्त्री पौराणिक जी महाराज ने कहा कि "ईश्वर का नर रूप में अवतरित होने का कोई एक कारण नहीं हो सकता. उनके अनेक अवतार हैं तथा अवतार के अनेक कारण भी हैं. किंतु श्री राम के अवतार का कारण उन सभी अवतारों से पृथक है. प्रथम नर रूप में आकर संसार को यह बताना कि धर्म अनुसार जीवन जीने वाले मनुष्य के लिए संसार में कुछ भी असंभव नहीं है." 

श्री राम कथा में नारायण के अवतार का एक कारण नारद के मोह को बताया गया है. शिव जी ने पार्वती जी को बताया कि एक समय की बात है कि नारद जी के श्राप से नारायण को अवतार लेना पड़ा. पार्वती जी के पूछने पर कि इतने बड़े तपस्वी देवर्षि नारद ने श्राप क्यों दिया? भोलेनाथ ने बताया कि ध्यान से सुनो- "मानव के जीवन में जब बड़ी उपलब्धि हो जाती है तब वह अहंकारी हो जाता है. वह सफलता का कारण स्वयं को मान लेता है. वह खुद को ही सर्व समर्थ समझने लगता है और यही नासमझी ही रावण के अवतार का कारण बन जाती है. जब रावण आता है तो राम के बिना उसका अंत संभव नहीं है और रावण के अंत हेतु राम का आना जरूरी हो जाता है. मोहग्रसित मानव इतना भयंकर बन जाता है कि वह रावण, कुंभकरण एवं मेघनाथ का जनक बन जाता है. 

नारद जी हिमालय में तपस्या कर रहे थे. भगवान की कृपा से उनकी बुद्धि निर्मल हो गई. इंद्र द्वारा प्रसिद्ध कामदेव के प्रभाव से  प्रभावित नहीं हुए. कामदेव पराजित होकर स्वर्ग चले गए. इधर नारद जी को अभिमान हो गया. उन पर भगवान की कृपा हुई जिससे वह कामदेव के प्रभाव में नहीं आएं परंतु इसे वह अपनी तप साधना मानने लगे. कहने लगे कि मैंने कामदेव को पराजित कर दिया. जो आज तक किसी ने नहीं किया वह मैंने कर दिखाया. नारद जी का यही अभिमान संसार को रावण और कुंभकरण देने वाला  मोह बन गया. 

विनय पत्रिका में गोस्वामी जी ने कहा है कि काम पर विजय प्राप्त करने वाले नारद जी जब भगवान की कृपा भूल गए तब उनके मन में अहम भाव जगा कि कामदेव को मैंने पराजित किया. पुनः मोह  ग्रसित हो गए कि आज तक किसी ने काम पर विजय प्राप्त नहीं किया मेरे अलावे. तब अहंकार जागा. केवल मैंने ही काम को जीता यह भाव जागा तो नारद जी विश्व मोहिनी के चक्कर में फंसे. 

जब मनुष्य स्वयं को समर्थ मानने लगता है तब सर्वप्रथम मोह का रावण जन्म लेता है. जब  मनुष्य अहंकारी होता है तो अहंकार का कुंभकरण जन्म लेता है. जब काम होता है तो मेघनाद का जन्म होता है. रावण-मोह, कुंभकरण-अहंकार, मेघनाद- काम जब यह तीनों मनुष्य के यहां अवतार ले लेते हैं तब मानव समाज मानव समाज नहीं रह पाता. वह समाज मात्र रावण समाज हो जाता है और रावण के समाज का अंत श्री राम के द्वारा ही संभव है. 

अतः मानव समाज को राम से शिक्षा लेनी चाहिए कि वह स्वयं को करता न समझा करे. अन्यथा नर ना रहकर वह रावण बन जाएगा और रावण की तरह ही दुर्दशा प्राप्त करते हुए समाज में महान अपयश का भाग बनेगा. बिना श्री राम कल्याण नहीं होगा मानव का परम कल्याण श्रीराम में ही निहित है.






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