कहा कि यह दिन हमें किताबों की अहमियत और उनके साथ हमारे रिश्ते की याद दिलाने का अवसर है. उन्होंने बताया कि इस दिन को विश्व प्रकाशनाधिकार दिवस के रूप में भी मनाया जाता है और दुनियाभर में पुस्तकों से जुड़ी गतिविधियों का आयोजन होता है.
- विश्व पुस्तक दिवस पर वरिष्ठ साहित्यकार रामेश्वर वर्मा ने जताई चिंता, कहा— तकनीक के इस युग में किताबें हो रहीं हाशिये पर
- बताया किताबों का महत्व, कहा— प्रेयसी जैसा सुख देती हैं एकांत में, लेकिन डिजिटल लहर ने घटाया आकर्षण
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : 23 अप्रैल को मनाए गए विश्व पुस्तक दिवस के मौके पर वरिष्ठ साहित्यकार और वरीय अधिवक्ता रामेश्वर प्रसाद वर्मा ने कहा कि यह दिन हमें किताबों की अहमियत और उनके साथ हमारे रिश्ते की याद दिलाने का अवसर है. उन्होंने बताया कि इस दिन को विश्व प्रकाशनाधिकार दिवस के रूप में भी मनाया जाता है और दुनियाभर में पुस्तकों से जुड़ी गतिविधियों का आयोजन होता है.
साहित्यकार वर्मा ने कहा कि एक सच्चे, ईमानदार और अंतरंग मित्र की भूमिका में किताबें हमेशा हमारे साथ रही हैं. उन्होंने कहा, "पुस्तकें न केवल ज्ञान की वाहक हैं, बल्कि वे कला-संस्कृति, सभ्यता और लोक जीवन को भी समृद्ध करती हैं. एकांत क्षणों में यह प्रेयसी जैसा सुख देती हैं."
हालांकि उन्होंने चिंता भी जताई कि आज की पीढ़ी का रुझान कंप्यूटर और इंटरनेट की ओर अधिक हो गया है. उन्होंने बताया कि अब ई-बुक्स डिजिटल स्वरूप में आम हो गई हैं. छात्र और शोधकर्ता इन्हें टैब और मोबाइल में पढ़ते हैं, जिससे परंपरागत किताबों की उपयोगिता कम होती जा रही है.
वर्मा ने कहा, "पहले जानकारी के लिए लोग पुस्तकालयों और किताबों का सहारा लेते थे, लेकिन अब इंटरनेट पहली पसंद बन चुका है. इस डिजिटल भीड़ में किताबें कहीं पीछे छूटती जा रही हैं."
विश्व पुस्तक दिवस की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि बताते हुए उन्होंने कहा कि सबसे पहले इंग्लैंड में मार्च के पहले गुरुवार को यह दिवस मनाया गया. लेकिन 1923 में स्पेन ने लेखक मिगुएल डी सर्वेंटिस की पुण्यतिथि 23 अप्रैल को यह दिन समर्पित किया. बाद में यह तिथि विलियम शेक्सपियर, जोसेफ प्ला जैसे कई साहित्यकारों के जन्म और निधन से भी जुड़ गई, जिससे यह दिन अंतरराष्ट्रीय पुस्तक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा.
रामेश्वर वर्मा का मानना है कि पाठकीयता को पुनर्जीवित करने के लिए केवल कार्यक्रम नहीं, बल्कि पढ़ने की आदत को बढ़ावा देना होगा, जिससे किताबें फिर से हमारी सच्ची साथी बन सकें.
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