धन का नशा सबसे घातक, अहंकार भगवान की खुराक – ब्रह्मपुरपीठाधीश्वर

कहा कि माखन चोरी लीला इस बात का प्रतीक है कि भगवान को निर्मलता, स्वच्छता और कोमलता प्रिय है. वहीं मृदा भक्षण की लीला में भगवान यह बता रहे हैं कि क्षमा पृथ्वी का गुण है, और यह गुण ईश्वर स्वयं धारण कर रहे हैं ताकि आगामी लीलाओं में होने वाली त्रुटियों को क्षमा से सम्हाला जा सके.










                                           




● श्रीकृष्ण की लीलाओं में छिपा है प्रकृति, क्षमा और संस्कृति का संदेश
● लालबाबा आश्रम में श्रीमद्भागवत कथा के दौरान हुआ आध्यात्मिक ज्ञानवर्षा

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : लालबाबा आश्रम में आयोजित श्रीमद्भागवत सप्ताह यज्ञ के अंतर्गत मंगलवार को दशम स्कंध की रसमयी कथा में ब्रह्मपुरपीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानुजाचार्य धर्मेन्द्र जी महाराज ने श्रीकृष्ण की लीलाओं का उपनिषद शैली में गूढ़ आध्यात्मिक विश्लेषण प्रस्तुत किया. उन्होंने प्रवचन में कहा कि अहंकार किसी का नहीं चलता, यह भगवान की खुराक है.


आचार्य धर्मेन्द्र ने कहा कि माखन चोरी लीला इस बात का प्रतीक है कि भगवान को निर्मलता, स्वच्छता और कोमलता प्रिय है. वहीं मृदा भक्षण की लीला में भगवान यह बता रहे हैं कि क्षमा पृथ्वी का गुण है, और यह गुण ईश्वर स्वयं धारण कर रहे हैं ताकि आगामी लीलाओं में होने वाली त्रुटियों को क्षमा से सम्हाला जा सके.

नलकूबर और मणिग्रीव के उद्धार की कथा का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि बच्चों की परवरिश यदि ठीक से न हो तो वे संस्कारहीन हो जाते हैं. जरूरत से ज्यादा धन भी दुख का कारण बनता है. उन्होंने कहा, "धन का अहंकार सबसे नशीला होता है. भांग और धतूरा खाकर भी इंसान इतना मदमस्त नहीं होता, जितना धन के नशे से होता है."

कालिय नाग दमन की लीला के पीछे का संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि यमुना जी को विषमुक्त कर श्रीकृष्ण ने संसार को बताया कि जलाशयों को प्रदूषण से बचाना हमारी जिम्मेदारी है. जल ही जीवन है और इसका संरक्षण ही धर्म है.

श्रीकृष्ण द्वारा गाय-बछड़ों की चरवाही का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि भारत कृषि प्रधान देश है, और कृषि का आधार गौ माता है. जब तक गाय बचेगी, तब तक मानवता और भारतीयता सुरक्षित रहेगी.

गोवर्धन पूजा की व्याख्या में उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण का संदेश है कि पर्वत, जंगल और प्रकृति की रक्षा ही जीवों की रक्षा है. यदि हमने प्रकृति से छेड़छाड़ की, तो वह किसी को नहीं बक्शेगी.

कार्यक्रम के अंत में महंत सुरेन्द्र बाबी और आचार्य धर्मेन्द्र जी महाराज की उपस्थिति में आश्रम परिसर में पल्लास का वृक्ष लगाया गया. वृक्षारोपण का यह कार्य रमेश पांडेय और नित्यानंद ओझा ने सम्पन्न किया.









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