विजयादशमी महोत्सव : वनवास की राह पर श्रीराम को रोकने पहुंचे भरत, चरण पकड़ विलाप करते देख भावुक हुआ जनसमूह ..

वनवास की राह पर श्रीराम को रोकने भरत पहुंचे तो पूरा दृश्य इतना भावपूर्ण बन पड़ा कि मानो स्वयं चित्रकूट का नजारा आंखों के सामने उतर आया हो. 






                                         



  • दशरथ मरण और चित्रकूट में भरत मिलाप का मंचन कर मंच पर जीवंत हुई रामकथा
  • सुदामा चरित्र में मित्रता का अनुपम उदाहरण देख जय श्रीकृष्ण के उद्घोष से गूंजा पंडाल

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : नगर का रामलीला मैदान गुरुवार की रात श्रद्धालुओं से खचाखच भरा था. वातावरण जय श्रीराम और जय श्रीकृष्ण के उद्घोष से गूंज रहा था. मंच पर जब वनवास की राह पर श्रीराम को रोकने भरत पहुंचे तो पूरा दृश्य इतना भावपूर्ण बन पड़ा कि मानो स्वयं चित्रकूट का नजारा आंखों के सामने उतर आया हो. श्री रामलीला समिति बक्सर के तत्वावधान में आयोजित 22 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव के बारहवें दिन वृंदावन से आए श्री राधा माधव रासलीला एवं रामलीला मंडल के स्वामी सुरेश उपाध्याय “व्यास जी” के निर्देशन में लीला का मंचन देर रात तक चला और दर्शक मंत्रमुग्ध होकर उसे देखते रहे.

रामलीला की शुरुआत मंत्री सुमंत के दुखद दृश्य से हुई, जब वे राम-लक्ष्मण-सीता को वन में छोड़कर लौटते हैं. उनकी व्याकुलता और दर्द देखकर दर्शक स्तब्ध हो उठे. इसके बाद महाराज दशरथ का विलाप और उनके जीवन का अंत दिखाया गया. दशरथ के निधन के पश्चात भरत का ननिहाल से लौटना और अयोध्या में माताओं से वार्तालाप का दृश्य इतना सजीव था कि दर्शक भावनाओं में बह गए. फिर आया वह प्रसंग जिसने पूरे पंडाल को भावविभोर कर दिया.

चित्रकूट में भरत, अपने पिता के निधन का समाचार और कैकयी के षड्यंत्र का सच जानकर राम के चरणों में गिर पड़े. उन्होंने बारंबार भाई से अयोध्या लौटने की प्रार्थना की. मंच पर जब भरत रोते हुए बोले – "भैया, अयोध्या आप बिन अधूरी है" – तो दर्शकों की आंखें नम हो उठीं. श्रीराम का धीरज और भरत के आंसुओं का यह मिलन दृश्य इतना हृदयस्पर्शी रहा कि पंडाल में सन्नाटा छा गया. परंतु श्रीराम ने पिता के वचन की मर्यादा का स्मरण कराते हुए भरत को समझाया और अंततः अपनी चरणपादुका सौंप दी. भरत ने पादुका को सिर पर रखकर अयोध्या लौटने का प्रण लिया. जैसे ही सिंहासन पर चरणपादुका स्थापित हुई, पूरा पंडाल जय श्रीराम के उद्घोष से गूंज उठा.

वहीं दिन में मंचित सुदामा चरित्र भाग-2 ने भी श्रद्धालुओं के हृदय को छू लिया. गरीबी से विवश सुदामा का द्वारका की ओर निकलना और वहां पहुंचकर श्रीकृष्ण से मिलन का दृश्य इतना जीवंत था कि दर्शकों की आंखों में आंसू झलक आए. कृष्ण का नंगे पांव दौड़कर द्वार पर मित्र को गले लगाना, उसके पैर धोना और संकोचवश कुछ न मांगने पर भी मुट्ठीभर चावल के बदले अपार संपत्ति देना – यह दृश्य मित्रता का अनुपम उदाहरण बन गया. पंडाल जय श्रीकृष्ण के उद्घोष से गूंज उठा और दर्शक ताली बजाकर भक्ति में डूब गए.

लीला के दौरान समिति के सचिव बैकुंठ नाथ शर्मा, संयुक्त सचिव सह मीडिया प्रभारी हरिशंकर गुप्ता, सुशील मानसिंहका, राजेश चौरसिया, ब्रजमोहन सेठ, पवन चौरसिया, उपेन्द्र पाण्डेय समेत बड़ी संख्या में पदाधिकारी और श्रद्धालु उपस्थित रहे. मंचन की हर झलक ने दर्शकों को भक्तिरस में सराबोर कर दिया और रात भर रामकथा तथा कृष्णलीला की स्मृतियां जनमानस में गूंजती रहीं.










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