आइसोलेट हुआ तंत्र, जनता ने छोड़ी मदद की उम्मीद ..

कहने तो सदर अस्पताल, अनुमंडलीय अस्पताल सहित तेरह स्वास्थ्य केन्द्र हैं और वेलनेस सेन्टर भी है लेकिन, वहीं नहीं है जिसकी वहाँ दरकार है. ज़िले के सांसद तो देश के ही स्वास्थ्य राज्य मंत्री हैं लेकिन, दिल्ली में अमरबेल की तरह पसरे है, वहीं, सदर विधायक अपने बेल के लिए भूमिगत है. 


- अस्त-व्यस्त व्यवस्था से त्रस्त हैं जिले के नागरिक
- बदले जमाने में नहीं बदल सकी व्यवस्थाएं 

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्व संतु निरामयाः यह महज़ पूजा-अर्चना करने का मंत्र जप हो गया है लेकिन, बीस लाख लोगों के आबादी वाले इस ज़िले में कोरोना संक्रमण के दहलीज़ पर खड़ी है एवं स्वास्थ्य सुविधाएं मुंह चिढ़ा रही हैं. कहने तो सदर अस्पताल, अनुमंडलीय अस्पताल सहित तेरह स्वास्थ्य केन्द्र हैं और वेलनेस सेन्टर भी है लेकिन, वहीं नहीं है जिसकी वहाँ दरकार है. ज़िले के सांसद तो देश के ही स्वास्थ्य राज्य मंत्री हैं लेकिन, दिल्ली में अमरबेल की तरह पसरे है, वहीं, सदर विधायक अपने बेल के लिए भूमिगत है. 

सदर अस्पताल में कोरोना से लड़ने के लिए वेंटिलेटर और ऑक्सीजन सिलेंडर सब हैं लेकिन, किसी मरीज को यह सुविधा अभी तक मयस्सर नहीं हो पाई है. सदर अस्पताल सहित सभी स्वास्थ्य केंद्रों पर केवल पुर्जा मिलता है, पुर्जे पर कुछ दवा या सीरियस रोगी को रेफर करने का निर्देश मिलता है. जिन्हें रुई और सुई लग गई वो यहाँ भाग्यशाली मरीज़ माने जाते है. किसी को गोली या चाकू का जख्म है तो बस रेफ़र के लिए अस्पताल है, मर गए तो बस पोस्टमार्टम भर का ही इलाज़ है.

ज़िले में प्लाज्मा दान करने वालों कोरोना योद्धाओं को सम्मानित किया जा रहा है लेकिन, उसी प्लाज्मा या खून की उनके रिश्तेदार को दरकार हो तो वह उसे नहीं मिल सकता. जहाँ प्लाज्मा दान किये वहाँ भर्ती भर होने का नसीब नहीं होने वाला है. यह सरकार की विभेदकारी नीति ही है कि कोरोना योद्धाओं के परिवार को यदि कोरोना संक्रमण हुआ तो उन्हें भी वह प्लाज्मा और अस्पताल नसीब नहीं है. ज़िले में मंत्री और विधायक के बाद सामाजिक संगठनों और कार्यकर्ताओं की बेरुखी भी कम त्रासदायक नहीं हैं. सफ़ेद क्रॉस सोसायटी के लोग भूमिगत हैं और कोरोना संक्रमित घरों को सिर्फ बांस-बल्ली व लाल झंडे से इलाज किया जा रहा है. शहर में नलियों की उड़ाही साल में एक बार भी होना मुश्किल है वहां सेनिटाइज करना कचड़े पर इत्र छिड़काव जैसा ही है. 

सनातन संस्कृति में नया वर्ष आरम्भ होते ही शहर के घरों पर भगवा झंडा टांगने वाले दूर हो गये कि सरकार ही अब घरों पर लाल झंडा गाड़ कर कोरोना से बचने की नसीहत दे रही हैं. लेकिन, अब ज़िला में कोरोना संक्रमित मरीज को अब किसी सफेद क्रॉस सोसायटी या किसी श्याम सिंह का फ्री एम्बुलेंस नहीं मिल पा रहा है. राम जायसवालों का भी समाजसेवा बस पांच टकिया मास्क बांटकर फोटो खिंचवाना ही रह गया है. ज़िले में एक राष्ट्रीय गुरु हर साल कइयों को जगद्गुरु का दर्जा देते है लेकिन खुद का इलाज बाहर कराना पड़ता है.

विश्व गुरु के आउटर पर खड़े देश को कलतक जो विश्वगुरू मानने वाले दल के कार्यकर्ता 6 साल के " रंगीन बेमिसाल विकास " का जो रंगीन ग्लेज्ड पेपर पर जो विकास पत्रक बांट रहे थे, आज एकाएक आइसोलेट हो गए हैं और गिलोय का काढ़ा पीने लगे हैं. किसी गौरव तिवारी, श्रीराम शुक्ला और पतंजलि सिंह आदि का कोरोना में कोई सहयोग नहीं दिख रहा है. अब तो प्रशासन भी कोरोना पॉजिटिव को उनके घरों में ही आइसोलेट कर रहा है. 

नगर के एक युवा वकील अपने घर मे ही आइसोलेट होकर काल कलवित हो गए है एवं शहर में रहकर भी  इलाज़ के मोहताज हो गए थे. ऑक्सीजन और वेंटिलेटर के दावा करने वाले अस्पताल में कोरोना मरीज को यह सुविधा नहीं हो पाई है. मरीज भगवान भरोसे एवं सरकार अब कोरोना रिपोर्ट, बाँस-बल्ली और झंडा गाड़ने के सिवा कुछ करने में लाचार है. सामाजिक संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं व राजनीतिक कार्यकर्ताओं का कोरोना में कुछ भी योगदान नहीं दिख रहा है. लोग कोरोना से हताश और निराश हैं तो प्रशासन के लोगों को भी कोविड-19 के निर्देश ही लागू कराने में परेशान हो जा रहे है. इलाज के नाम पर उनका भी हाथ पांव फूलने लगता हैं.

- एक सुधी पाठक की कलम से

इस लेख का उद्देश्य किसी को ठेस पहुंचाना नहीं है. फिर भी किसी को नागवार गुज़रे तो खेद है. यहाँ वर्णित नामों की समानता किसी भी व्यक्ति अथवा संस्था से हो तो इसे महज़ संयोग समझा जाए.











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