पिता की आज्ञा का पालन सर्वश्रेष्ठ धर्म : रामकिंकर जी महाराज ..

कहा कि प्रभु श्रीराम ने अपने जीवन में हर परिस्थिति को सहर्ष स्वीकार किया और कभी शोक नहीं किया. उन्होंने कहा कि मनुष्य को कभी भी शोक नहीं करना चाहिए. शोक मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है. शोक से मुक्ति के लिए भगवान का स्मरण करना चाहिए.  

 





- 51 वें सिय- पिय मिलन महोत्सव के चौथे दिन हुई वन गमन प्रसंग की कथा
- कहा, गुरु की सेवा करने से ईश्वर की सेवा करने का मिलता है फल            

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: सीताराम विवाह महोत्सव आश्रम नया बाजार में चल रहे के 51 वें श्री सिय-पिय मिलन महोत्सव के चौथे दिन भक्त भक्ति रस से ओतप्रोत हुए. श्रीरामचरितमानस के नवाह्न पारायण पाठ से कार्यक्रम का प्रारंभ हुआ. तत्पश्चात आश्रम के परिकरो के द्वारा भजन कीर्तन किया गया.
                     

 
श्रीमद वाल्मीकि रामायण कथा के चौथे दिन अयोध्या के स्वामी जयकांत शास्त्री उपाख्य रामकिंकर जी महाराज ने प्रभु श्रीराम के वन गमन की कथा से उपस्थित श्रद्धालुओं को भाव विह्वल कर दिया. उन्होंने कहा कि पिता की आज्ञा का मान रखते हुए प्रभु श्रीराम ने अयोध्या के राज सिंहासन को त्याग कर वन जाने का निश्चय किया. यह हमें बताता है कि पिता की आज्ञा पालन सर्वश्रेष्ठ धर्म है. उन्होंने कहा कि प्रभु श्री राम का चरित्र पग-पग शिक्षा देता है. प्रभु श्रीराम का जीवन त्याग और मर्यादा पालन का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है. 





श्री महाराज कहा कि प्रभु श्रीराम ने अपने जीवन में हर परिस्थिति को सहर्ष स्वीकार किया और कभी शोक नहीं किया. उन्होंने कहा कि मनुष्य को कभी भी शोक नहीं करना चाहिए. शोक मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है. शोक से मुक्ति के लिए भगवान का स्मरण करना चाहिए.  राम नाम दुनिया के समस्त शोकों, कष्टों का नाश करती है और परमानंद की प्राप्ति कराती है. ऐसे में हम सबों को नित्य प्रभु श्रीराम का नाम स्मरण करना चाहिए.


रामकिंकर महाराज ने प्रभु श्रीराम के चित्रकूट निवास की प्रसंग का सुन्दर विवेचन करते हुए कहा कि चित्रकूट अत्यंत ही पवित्र स्थल है. चित्रकूट पर्वत के दर्शन मात्र से मनुष्य के अंदर पाप का प्रवेश निषिद्ध हो जाता है. रामकिंकर जी महाराज ने यह भी कहा कि हमें नित्य प्रभु की सेवा करनी चाहिए. प्रभु की सेवा का अवसर नहीं मिले तो गुरू की सेवा करनी चाहिए. क्योंकि प्रभु की सेवा के अलावे गुरू की सेवा दुनिया में सर्वश्रेष्ठ कार्य है. गुरु की सेवा भी भगवान की सेवा के बराबर है.











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