अरे ! मौत से बहानेबाजी ..

80 फीसद से ज्यादा लोग सिर में गंभीर चोट की वजह से बचाए नहीं जा पाते.कई बार लोग अगर ठीक भी हो जाएं तो सिर की चोट की वजह से उन्हें कालांतर में ब्रेन हैमरेज हो जाता है.इसके बाद भी यदि लोग बचे रहते हैं तो उन्हें पैरालाइसिस अटैक भी आ सकता है. जिससे उनकी जिंदगी नारकीय हो जाती है.







-  हेलमेट पहनने को लेकर नहीं आ रहा लोगों के व्यवहार में परिवर्तन.
- हेलमेट नहीं पहनने के कारण असमय काल कलवित हो जाते हैं कई लोग

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: "बस बाजार में जाना है", "जल्दीबाजी में घर पर भूल गया", "बाल खराब हो जाएगा", "पेट्रोल लेना है इसलिए पहनना पड़ता है", "गाड़ी में टंगा तो है पर पहनना भूल गया हूं."  


कुछ इसी तरह की बहानेबाजी हेलमेट नहीं पहनने वाले लोग आजकल वाहन जांच में पकड़े जाने पर जांचकर्ताओं से करते हैं. कई बार जांचकर्ता इन बातों को मानकर लोगों को जाने देते हैं लेकिन, कई बार उनसे जुर्माना वसूला जाता है.ऐसी बहानेबाजी करने वाले लोग कई बार मौत के शिकार भी हो जाते हैं क्योंकि, इस तरह की बहानेबाजी मौत से नहीं चलती. मौत से तो "चित्रकार हूं" "कहानीकार हूँ" "व्यंग्यकार हूँ" "पुलिस में हूँ" " "फौज में हूँ", पिता जी अधिकारी हैं" जैसे बहाने भी नहीं चलते.

सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़ों पर गौर करें तो बाइक एक्सीडेंट में मरने वाले लोगों में शामिल 80 फीसद से ज्यादा लोगों की जान केवल इसलिए नहीं बचाई जा पाती क्योंकि, वह हेड इंजरी के शिकार हो जाते हैं. अब शायद यह बताने की जरूरत नहीं है कि हेड इंजरी क्यों होती है?

ले कर घूमते हैं पर पहनते नहीं.

यातायात प्रभारी अंगद सिंह बताते हैं कि, हेलमेट जांच अभियान चलाने के दौरान कई बार वह लोगों से जुर्माना वसूल कर उन्हें जाने देते हैं.कई बार लोग कई तरह के बहाने भी बनाते हैं जिसे कई बार सच भी मानना पड़ता है. उन्होंने बताया कि हेलमेट जाँच का उद्देश्य केवल यह नहीं होता कि लोग केवल जुर्माना भरें बल्कि, वह यह भी चाहते हैं कि लोग अपने व्यवहार में परिवर्तन ला कर हेलमेट पहनने की आदत को अपनाएं. उन्होंने बताया कि जांच अभियान में तीस फीसद से ज्यादा मामले ऐसे होतेहैं जिसमें हेलमेट बाइक में टांग कर घूमने के बावजूद लोग इसे नहीं पहनते. समय-समय पर जागरूकता अभियान भी चलाने के बावजूद भी अधिकांश ऐसे लोग हैं जो हेलमेट पहनना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं.

एक साथ कई जिंदगियां हो सकती हैं तबाह:

जिला परिवहन पदाधिकारी मनोज कुमार रजक का कहना है कि, हेलमेट पहनने वाले केवल एक अपनी नहीं बल्कि, कई जिंदगियों को बचाते हैं जो कि उनके ऊपर आश्रित हैं. हर व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि वाहन चालन के समय हेलमेट पहनकर चलने वाला व्यक्ति यदि दुर्घटनाग्रस्त भी होता है तो उसकी जान बचने की संभावना सबसे ज्यादा होती है. ऐसे में "शान" बचाने से ज्यादा "जान" बचाने के लिए हेलमेट पहनना आवश्यक है. सड़क सुरक्षा माह के दौरान लोगों के व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए "सड़क सुरक्षा जागरूकता क्विज कॉन्टेस्ट" चलाकर सड़क सुरक्षा से संबंधित प्रश्नोत्तरी में सफल लोगों को हेलमेट का पुरस्कार भी दिया जा रहा है. उम्मीद है कि एक ना एक दिन लोगों को अपनी जान तथा अपने परिवार की कीमत अवश्य समझ में आएगी.

बच भी गए तो जीवन होता है नारकीय:

चिकित्सक डॉ. दिलशाद आलम बताते हैं, बाइक दुर्घटना में मरने वाले 80 फीसद से ज्यादा लोग सिर में गंभीर चोट की वजह से बचाए नहीं जा पाते.कई बार लोग अगर ठीक भी हो जाएं तो सिर की चोट की वजह से उन्हें कालांतर में ब्रेन हैमरेज हो जाता है.इसके बाद भी यदि लोग बचे रहते हैं तो उन्हें पैरालाइसिस अटैक भी आ सकता है. जिससे उनकी जिंदगी नारकीय हो जाती है.












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