केवल नाम का मॉडल है यह थाना, काम का नहीं ..

जब मॉडल थाना बना था तो लोगों को यह उम्मीद थी कि यहां उन्हें कारपोरेट कल्चर का एहसास होगा हालांकि, अब भी यहां की व्यवस्था जिले के किसी अन्य साधारण थाने की तरह ही है. वरीय अधिकारियों के द्वारा लगातार पब्लिक-पुलिस रिलेशन को बेहतर किए जाने के लिए उपायों पर चर्चा होती है लेकिन, यहां पहुंचने पर पुलिस के वरीय अधिकारियों का यह सपना पूरा होता नहीं दिखता.

 





- मॉडल थाने की अव्यवस्थाएं उड़ा रही पब्लिक पुलिसिंग का मज़ाक
- लोग झेल रहे परेशानी, पुलिसकर्मी कर रहे मौज


बक्सर टॉप न्यूज़,बक्सर: 

दृश्य एक:

शाम के तकरीबन चार बजे हैं. बाहर अब भी तेज़ धूप है. एक महिला किसी शिकायत को लेकर थाने में पहुंची. उन्होंने बरामदे में बैठे पुलिसकर्मी उसे अपनी व्यथा बताई जिसके बाद उन्हें आवेदन लिखने के लिए कहा गया. मौके पर तीन-चार पुलिसकर्मी भी बैठे हुए हैं. एक महिला पुलिसकर्मी भी हैं. सभी आराम से शीतल पेय का आनंद ले रहे हैं और उक्त महिला वहीं पास में एक टेबल के सहारे खड़े होकर आवेदन लिख रही हैं. यहां किसी को पब्लिक - पुलिसिंग नहीं मालूम.

दृश्य 2: 

नगर के धोबी घाट मोहल्ले के रहने वाले राजू कुमार से बुधवार की शाम घर जाने के क्रम में मोबाइल छीनने की कोशिश हुई. उन्होंने जिले के वरीय पुलिस पदाधिकारियों को इस बात से अवगत कराया अब वह थाने में आवेदन देने पहुंचे हुए हैं हालांकि, वह यह मान रहे हैं कि जो वर्तमान पुलिसिया कार्यशैली है उसमें आवेदन देने से कुछ भी नहीं होगा.
बंद पड़े "मे आई हेल्प यू" काउंटर  के पास खड़े होकर आवेदन लिखती महिला




जिला मुख्यालय में जब मॉडल थाना बना था तो लोगों को यह उम्मीद थी कि यहां उन्हें कारपोरेट कल्चर का एहसास होगा हालांकि, अब भी यहां की व्यवस्था जिले के किसी अन्य साधारण थाने की तरह ही है. वरीय अधिकारियों के द्वारा लगातार पब्लिक-पुलिस रिलेशन को बेहतर किए जाने के लिए उपायों पर चर्चा होती है लेकिन, यहां पहुंचने पर पुलिस के वरीय अधिकारियों का यह सपना पूरा होता नहीं दिखता.

मॉडल थाना में प्रवेश के बाद लोगों को तब तक बरामदे में बैठना पड़ता है जब तक कि थानेदार ना आ जाएं. थानेदार के पहुंचने के बाद भी मामला तथा व्यक्ति की पहुंच के आधार पर यह तय होता है कि, उसे थानेदार के सुसज्जित चैंबर में बैठने की जगह मिलेगी अथवा बरामदे में लगे बेंच पर ही उन्हें बैठना होगा. 



आगंतुक कक्ष की बात बेमानी, नहीं मिलता पीने का पानी:

सरकार के द्वारा थानों में आगंतुक कक्ष बनाए जाने तथा वहां 24 घंटे किसी पुलिसकर्मी के प्रतिनियुक्ति की बात कही गई थी जिससे कि थाना भवन में प्रवेश करते ही वह लोगों को वहां आराम से बैठाए और थाने में उनके आने का कारण पूछे हालांकि, यह व्यवस्था पूरी तरह सील बंद कर दी गई है. यहाँ सील बंद सील बंद इसलिए कहना पड़ रहा है क्योंकि आगंतुक कक्ष तो बन ना सका लेकिन जहां "मे आई हेल्प यू" काउंटर बनाया गया था उसे भी पूरी तरह प्लाईवुड लगा कर पैक कर दिया गया है.

इतना ही नहीं पूरे थाना परिसर में पीने की पानी की व्यवस्था ढूंढने पर भी नहीं मिली. पूछने पर वहां काम कर रहे पुलिसकर्मी ने बताया कि आरओ का पानी मंगवाया जाता है जो कि अंदर रखा हुआ है. अब शायद ही कोई व्यक्ति हो जो अंदर जाकर पुलिसकर्मियों से पानी मांगने की हिम्मत करें.


शराबबंदी के बाद थाना बना है कबाड़खाना:

शराबबंदी के बाद ज्यादा संख्या में दुपहिया व चार पहिया वाहनों के पकड़े जाने तथा उन्हें थाने में ही खड़ा किए जाने से थाना परिसर थाना कम कबाड़खाना ज्यादा नजर आता है. वैसे तो कई बार गाड़ियों की नीलामी तो हुई लेकिन नगर थाने से व्यापक पैमाने पर गाड़ियों की नीलामी नहीं हुई. ऐसे में यहाँ जब्त वाहनों का जमावड़ा लगा हुआ है.



सीसीटीवी कैमरे से रखी जा रही नज़र:

मॉडल थाने में पीने के पानी की व्यवस्था हो ना हो, लोगों से बेहतर व्यवहार हो ना हो लेकिन, थाने में चप्पे-चप्पे पर सीसीटीवी कैमरे लगाया गया है जिसका मॉनिटर थानाध्यक्ष के कमरे में है. जहां से वह बैठे-बैठे पूरी मॉनिटरिंग कर लेते हैं. हालांकि, एक दो कैमरों पर मकड़ी ने जाला भी बना लिया है लेकिन, उसपर शायद उनकी नज़र अब तक नहीं गयी.

कहते हैं एसपी:

अगर आगंतुक कक्ष बंद पड़ा है तो उसे तुरंत खोला जाएगा. इसके अतिरिक्त पीने के पानी की व्यवस्था भी बेहतर करने का निर्देश दिया जा रहा है. पब्लिक-पुलिस रिलेशन बेहतर बनाने के लिए भी प्रयास किए जाते रहे हैं और आगे भी किए जाते रहेंगे.

नीरज कुमार सिंह
एसपी








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