लोक मंगलकारी है श्रीराम और श्रीकृष्ण की भक्ति : आचार्य पीतांबर'प्रेमेश'

कथा में उत्तानपाद के वंश में ध्रुव चरित्र की कथा को सुनाते हुए समझाया कि ध्रुव की सौतेली मां सुरुचि के द्वारा अपमानित होने पर भी उसकी मां सुनीति ने धैर्य नहीं खोया जिससे एक बहुत बड़ा संकट टल गया. परिवार को बचाए रखने के लिए धैर्य संयम की नितांत आवश्यकता रहती है. 








- कथा के तीसरे दिन रामायण के अनछुए प्रसंगों की हुई चर्चा
- आज से बदल गया है कथा का समय

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: विश्वामित्र स्वास्थ्य कल्याण समिति, बक्सर के तत्वावधान में किला मैदान के विशाल रामलीला मंच पर आयोजित सप्तदिवसीय श्रीद्भभागवत कथा एवं श्री रामकथा के क्रम में आज तीसरे दिन प्रथम सत्र के कथा पूर्व श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए अंतर्राष्ट्रीय भागवत प्रवक्ता एवं प्रख्यात कथा वाचक आचार्य पीताम्बर प्रेमेश ने कहा कि भगवान विष्णु का सातवां अवतार माने जाने वाले प्रभु श्रीराम ने हमेशा की अधर्म पर धर्म की विजय हेतु अवतार धारण किया है. टीवी पर तो हम सभी ने रामायण देखी होगी लेकिन फिर भी कई ऐसे प्रसंग रह जाते हैं जिनके बारे में लोगों को जानकारी नहीं होती है. कुछ ऐसी ही है प्रभु श्री राम की जन्म कथा.



इसके पश्चात प्रथम सत्र की कथा प्रारंभ हुई. अपने मुखारविंद से श्रीराम कथा का अमृत वर्षा करते हुए प्रख्यात कथावाचिका प्रिया तिवारी ने समुपस्थित भक्तजनों को कहा कि श्रीराम की जन्म कथा के बारे में बहुत कुछ  अनजान पहलू हैं जो कि रहस्य से भरे पड़े हैं. उन्होंने कहा कि महाराजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ किया. महाराज दशरथ ने श्यामकर्ण घोड़े को चतुरंगिनी सेना के साथ छुड़वाने का आदेश दिया. महाराज ने समस्त मनस्वी, तपस्वी, विद्वान ऋषि-मुनियों तथा वेदविज्ञ प्रकाण्ड पण्डितों को बुलावा भेजा. वह चाहते थे कि सभी यज्ञ में शामिल हों. यज्ञ का समय आने पर महाराज दशरथ सभी अभ्यागतों और अपने गुरु वशिष्ठ जी समेत अपने परम मित्र अंग देश के अधिपति लोभपाद के जामाता ऋंग ऋषि के साथ यज्ञ मण्डल में पधारे. फिर विधिवत यज्ञ शुभारंभ किया गया. यज्ञ की समाप्ति के बाद समस्त पण्डितों, ब्राह्मणों, ऋषियों आदि को यथोचित धन-धान्य, गौ आदि भेंट दी गई हैं और उन्हें सादर विदा किया गया. कथा के अंत में भगवान श्रीराम जन्म की सुंदर झांकी का दर्शनशास्त्र कर भक्तजन आनंदित हो उठे. वहीं दूसरे सत्र में श्रीमद् भागवत कथा के आज तीसरे दिन कथा सुनाते हुए अंतरराष्ट्रीय कथावाचक  श्री पीतांबर 'प्रेमेश' ने बताया कि किसी भी स्थान पर बिना निमंत्रण जाने से पहले इस बात का ध्यान जरूर रखना चाहिए कि जहां आप जा रहे हैं वहां आपका, अपने इष्ट या अपने गुरु का अपमान न हो. यदि ऐसा होने की आशंका हो तो उस स्थान पर जाना नहीं चाहिए, चाहे वह स्थान अपने जन्म दाता पिता का ही घर क्यों ना हो.



कथा के दौरान सती चरित्र के प्रसंग को सुनाते हुए भगवान शिव की बात को नहीं मानने पर सती के पिता के घर जाने से अपमानित होने के कारण स्वयं को अग्नि में स्वाह होना पड़ा. कथा में उत्तानपाद के वंश में ध्रुव चरित्र की कथा को सुनाते हुए समझाया कि ध्रुव की सौतेली मां सुरुचि के द्वारा अपमानित होने पर भी उसकी मां सुनीति ने धैर्य नहीं खोया जिससे एक बहुत बड़ा संकट टल गया. परिवार को बचाए रखने के लिए धैर्य संयम की नितांत आवश्यकता रहती है. भक्त ध्रुव द्वारा तपस्या कर श्रीहरि को प्रसन्न करने की कथा को सुनाते हुए बताया कि भक्ति के लिए कोई उम्र बाधा नहीं है. इसलिए हमें भक्ति को बचपन में ही करने की प्रेरणा देनी चाहिए. बचपन कच्ची मिट्टी की तरह होता है उसे जैसा चाहे वैसा पात्र बनाया जा सकता है. कथा के दौरान उन्होंने बताया कि पाप के बाद कोई व्यक्ति नरकगामी हो, इसके लिए श्रीमद्भागवत में श्रेष्ठ उपाय प्रायश्चित बताया गया है. अजामिल उपाख्यान के माध्यम से उन्होंने इस बात को विस्तार से समझाया. साथ ही प्रह्लाद चरित्र के बारे में विस्तार से सुनाते हुए उन्होंने बताया कि भगवान नृसिंह रुप में लोहे के खंभे को फाड़कर प्रगट होना बताता है कि प्रह्लाद को विश्वास था कि मेरे भगवान इस लोहे के खंभे में भी हैं और उस विश्वास को पूर्ण करने के लिए भगवान उसी में से प्रकट हुए एवं हिरण्यकश्यप का वध कर प्रह्लाद के प्राणों की रक्षा की.



आचार्य ने कथाक्रम में महाभारत रामायण से जुड़े विभिन्न रोचक  प्रसंग सुनाए जिनकी जरूरत आज हम सभी को है. साथ ही उन्होंने कहा कि परम सत्ता में विश्वास रखते हुए हमेशा सद्कर्म करते रहना चाहिए. कथा में सैकड़ों श्रद्धालु उपस्थित होकर कथा लाभ ले रहे हैं. ऐसा लग रहा था कि श्रीराम कथा और श्रीमद्भागवत महापुराण के तीसरे दिन प्रवचन सुनने के लिए पूरा शहर ही उमड़ पड़ा है. कथा के अंत में भक्त ध्रुव के सत्कर्मों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि ध्रुव की साधना, उनके सत्कर्म तथा ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा के परिणाम स्वरूप ही उन्हें वैकुंठ लोक प्राप्त हुआ. इसलिए हमें अपना तन, मन और धन, सबकुछ श्रीहरि के चरणों में समर्पित कर देना चाहिए.

कथा के तृतीय दिवस को दीप प्रज्ज्वलन के साथ मंच का उदघाटन हरिशंकर गुप्ता (संयुक्त सचिव सह मीडिया प्रभारी) श्री रामलीला समिति एवं श्री राघवेंद्र पांडेय, श्री भोला सिंह, श्री झाबर यादव, प्रेम नाथ दूबे आदि के द्वारा संयुक्त रुप से किया गया. कथा के अंत में कार्यक्रम के आयोजक विश्वामित्र स्वास्थ्य कल्याण समिति के सचिव डा० किशोर दूबे ने कथा के समय में हुए बदलाव की जानकारी देते हुए तोगों को बताया कि 16 नवंबर (मंगलवार) से दोपहर 12 से 3 बजे तक श्रीमद् भागवत कथा एवं शायं 4 से 7 बजे तक श्री रामकथा आयोजित होगी. श्री दूबे ने श्रद्धालुओं से ससमय उपस्थित होकर कथा लाभ लेने का आग्रह किया.

भागवत कथा के दौरान समुपस्थित श्रद्धेय जनों में महंत विद्यासागर महाराज, मुख्य यजमान दीनबंधु उपाध्याय, राम उदार  उपाध्याय, आचार्य संजय शास्त्री, आकाश, हरिओम, गंगाधर दूबे, आयोजक किशोर जी दूबे, रामलीला समिति के सचिव बैकुंठ नाथ शर्मा आदि मुख्य रूप से उपस्थित थे.





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