सुख-संपत्ति की प्राप्ति अपने कर्मों का फल : स्वामी राघवाचार्य

उन्होंने कहा कि बिना गुरु की कृपा के किसी जीव को भगवान की प्राप्ति नहीं हो सकती है. वेदों में भी बताया गया कि आचार्यों के द्वारा दिये गए मंत्र से प्राणीमात्र को भगवान की प्राप्ति होती है. यही कारण है जब गुरु के द्वारा दिये मंत्र को शिष्य के कान में दिया जाता है. शिष्य का भी परम दायित्व है कि गुरु के वैभव के  विषय में सबको बताये और उनके मंत्र के बारे में छिपाए. 



- सिय-पिय मिलन महोत्सव में बह रही श्रीमद् वाल्मीकि रामायण की भक्ति रस धारा
- अवध धाम से पधारे हैं कथा मर्मज्ञ राघवाचार्य जी महाराज

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : नया बाज़ार के सिय-पिय मिलन महोत्सव श्री रामकथा का अमृतपान कराते हुए अवधधाम से पधारे श्रीमदवाल्मीकीय कथा मर्मज्ञ पूज्य श्री राघवाचार्य महाराज ने श्रीरामकथा में बताया कि जीव जब भगवान की कृपा होती है तो वह सत्संग को प्राप्त करता है. सुख-संपत्ति की प्राप्ति तो अपने कर्मों का फल है. सुख-संपत्ति की प्राप्ति भगवान की कृपा नहीं है.

उन्होंने कहा कि बिना गुरु की कृपा के किसी जीव को भगवान की प्राप्ति नहीं हो सकती है. वेदों में भी बताया गया कि आचार्यों के द्वारा दिये गए मंत्र से प्राणीमात्र को भगवान की प्राप्ति होती है. यही कारण है जब गुरु के द्वारा दिये मंत्र को शिष्य के कान में दिया जाता है. शिष्य का भी परम दायित्व है कि गुरु के वैभव के  विषय में सबको बताये और उनके मंत्र के बारे में छिपाए. अगर इसके विपरीत कार्य करने पर शिष्य की आयु और सम्पदा दोनों नष्ट होते है.

पुण्य और पाप भी जीव के बंधन के कारण है, इससे मुक्ति का एक मात्र उपाय ईश्वर की भक्ति ही है. अतः भगवान कहते हैं कि तुम मेरी शरण में आ जाओ मैं तुम्हें इन सब दुःखो से मुक्त कर दूँगा. वेदों को किसी लिखा ही नहीं है. वेदों के दृष्टा होते है, वेदों को ऋषि-मुनियों ने देखा है और बाद में ऋषियों ने इसे इसे लिपिबद्ध किया. उसी प्रकार महर्षि वाल्मीकिय ने रामायण का दर्शन किया है फिर इसे लिपिबद्ध किया है. सिर्फ भगवान ही भगवान के चरित्र को लिख सकते है. भगवान के चरित्र को सिर्फ भगवान ही लिख सकते हैं, सुन सकते हैं, वर्णन करते और लिपिबद्ध कर सकते हैं और वेदों में संसार के हर जीव में ईश्वर का वास होता है ऐसा ही वर्णन है.









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