भगवान भोले को भक्त भी पसंद हैं भोले : आचार्य रणधीर ओझा

बताया कि शिव महापुराण कथा श्रवण व शिव भक्ति के लिए पहले अहंकार दूर करना होगा. क्योंकि जब तक अहंकार होता है तक भोलनाथ प्रसन्न नहीं होते हैं. जिस प्रकार आदि देव महादेव को भोलेनाथ कहा जाता है उसी उनको भक्त भी भोले पसंद हैं. जब तक अहंकार दूर नही होगा तब तक शिव की भक्ति प्राप्त होना कठिन है. 




- चरित्रवन के पंचमुखी शिव मंदिर में आयोजित शिव महापुराण कथा
- भगवान कार्तिकेय तथा श्रीगणेश की कथा का भी श्रद्धालुओं ने किया श्रवण

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : नगर के पंचमुखी शिव मंदिर में आयोजित श्री शिव महापुराण के पांचवे दिन मामा जी के कृपा पात्र आचार्य श्री रणधीर ओझा ने बताया कि शिव महापुराण कथा श्रवण व शिव भक्ति के लिए पहले अहंकार दूर करना होगा. क्योंकि जब तक अहंकार होता है तक भोलनाथ प्रसन्न नहीं होते हैं. जिस प्रकार आदि देव महादेव को भोलेनाथ कहा जाता है उसी उनको भक्त भी भोले पसंद हैं. जब तक अहंकार दूर नही होगा तब तक शिव की भक्ति प्राप्त होना कठिन है. 



शिव कथा सुनाते हुए आचार्य श्री ने कहा कि शिव और पार्वती के दो पुत्र हुए एक का नाम कार्तिकेय और दूसरे का नाम गणेश है. कार्तिकेय को पुरुषार्थ का प्रतीक माना गया है. पुराणों में श्री गणेश की अनेक कथाएं प्राप्त होती हैं. एक कल्प में साक्षात श्रीकृष्ण उनके पुत्र बनते हैं दूसरे कल्प में पार्वती के उद्घटन से उनकी उत्पत्ति होती है. एक कल्प में शनि की दृष्टि से सिर कटता है और दूसरे में स्वयं शिवजी सिर काटते हैं. माता के कोप से बचने के लिए हाथी का सिर जोड़ा जाता है. हाथी का सिर बड़ा होता है लेकिन आंखें छोटी होती हैं. यह सूक्ष्म दृष्टि का प्रतीक है. हमारी दृष्टि सूक्ष्म होनी चाहिए. कान सूप के जैसे मानो फालतू बात गणेश नहीं सुनते. एक दांत अर्थात जो बात कह दिया उसमें अटल रहते हैं और लम्बी नाक होना प्रतिष्ठा का प्रतीक है.



आचार्य श्री ने कहा कि जहां पर सूक्ष्म दृष्टि होती है. वहां विघ्न नहीं होता है और जहां विघ्न बाधा न हो तो वहीं ऋद्धि-सिद्धि और शुभ लाभ का सदैव आगमन होता है.

आचार्य श्री ने आगे बताया कि शिव पुराण में अनेक ऐसी कथाएं हैं जिसमें अहंकार व्यक्ति का सर्वनाश का कारण बनती है.  यक्ष प्रजापति को पद का  अहंकार हुआ गर्दन काटना पड़ा, सती को ज्ञान का अहंकार हुआ जलना पड़ा, नारद जी को इंद्रजीत का अहांकार अपमानित होना पड़ा. यह प्रसंग हमें यह संदेश देता है कि किसी तरह का अहंकार रूप का, ज्ञान का, धन का,जन का, बल का. मैं तो कहता हूं भक्ति का अहंकार भी ठीक नही है.

















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