वीडियो : प्रातः कालीन न्यायालय संचालन की मांग : अधिवक्ता ने कहा - "अंग्रेजों से नफरत है तो आइपीसी बदल दीजिए .."

बताते हैं कि अधिवक्ताओं के बैठने के लिए टीन के शेड अतिरिक्त और कोई व्यवस्था नहीं है. ऐसे में अधिवक्ता गर्मी के इस मौसम में कैसे न्यायालय में अपना कार्य संपन्न कराते हुए यह सवाल है समझने वाली बात है.




- कहा - कार्यावधि में बदलाव से अधिवक्ताओं व वादकारियों को परेशानी 
- अधिवक्ता संघ ने लिफ्ट और प्रतीक्षालय बनाने की रखी मांग

बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : व्यवहार न्यायालय के अधिवक्ताओं ने न्यायालय की कार्य अवधि प्रातः कालीन की जगह दिन में होने पर विरोध जताया है. अधिवक्ताओं ने कहा है कि न्यायालय के कार्य अवधि में बदलाव होने के कारण अधिवक्ताओं और वादकारियों दोनों को परेशानी होती है, जिस प्रकार से तापमान बढ़ता जा रहा है यह भी आशंका है कि कभी मौसम की चपेट में आकर किसी की मौत ना हो जाए. 

वरिष्ठ अधिवक्ता शशिकांत उपाध्याय बताते हैं अंग्रेजो के द्वारा लागू की गई प्रातः कालीन न्यायालय की व्यवस्था काफी सोच-समझकर शुरु की गई थी लेकिन अंग्रेजी राज के नियमों को बदलने के चक्कर में इस तरह के बदलाव किए जा रहे हैं. ऐसे में अगर अंग्रेजों से इतनी नफरत है तो अंग्रेजों द्वारा बनाई गई आइपीसी को ही क्यों नहीं बदल दिया जाता? उन्होंने कहा कि वह पटना उच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीशों से यह अपील करते हैं कि या तो न्यायालय को प्रातः कालीन किया जाए अथवा गर्मी के दिनों में कम से कम एक महीने की छुट्टी हो.

अधिवक्ता रानी कुमारी बताती है कि प्रातः कालीन न्यायालय नहीं होने के कारण दूरदराज से आए वादकारियों को काफी परेशानी होती है. न्यायालय में अगर उनके सीनियर शशिकांत उपाध्याय के द्वारा लगाया गया वाटर प्यूरीफायर छोड़ दिया जाए तो उसके अतिरिक्त पानी पीने की कोई व्यवस्था नहीं है.

वरिष्ठ अधिवक्ता शिवजी राय बताते हैं कि अधिवक्ताओं के बैठने के लिए टीन के शेड अतिरिक्त और कोई व्यवस्था नहीं है. ऐसे में अधिवक्ता गर्मी के इस मौसम में कैसे न्यायालय में अपना कार्य संपन्न कराते हुए यह सवाल है समझने वाली बात है.

संघ ने उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश लिखा पत्र  :

अधिवक्ता संघ के महासचिव विन्देश्वरी प्रसाद पांडेय ने बताया कि वादकारियों की परेशानी को देखते हुए न्यायालय में प्रतीक्षालय बनवाने, लिफ्ट लगवाने तथा अगर संभव हो तो प्रातः कालीन न्यायालय संचालन की व्यवस्था, संभव नहीं हो तो कम से कम एक महीने का ग्रीष्मावकाश देने की मांग के साथ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को पत्र प्रेषित किया गया है. बीसीआई के सेक्रेटरी मनन मिश्रा से बात की गई है.

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