हरि और हर अभिन्न हैं : आचार्य भारतभूषण

ग्यारह वर्ष की आयु में भगवान श्रीकृष्ण ने बलराम के साथ उज्जयिनी में सान्दीपनी महर्षि के गुरुकुल में प्रवेश कर विद्याध्ययन किया और गुरु के मृत इकलौते पुत्र को यमलोक से वापस लाकर गुरु दक्षिणा चुकाई. 




- शिवपुरी मोहल्ले में आयोजित है  श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ
- आचार्य में बताया भगवान शिव और भगवान विष्णु का संबंध

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : नगर के शिवपुरी मुहल्ले में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह के छठे दिन प्रवचन करते हुए प्रख्यात भागवत वक्ता और श्रीसनातन शक्तिपीठ संस्थानम् के अध्यक्ष आचार्य (डॉ.) भारत भूषण जी महाराज ने कहा कि भगवान शिव और भगवान श्रीकृष्ण एक दूसरे के इष्ट हैं. सामवेद और छान्दोग्योपनिषद् को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि भूर्लोक के देवता भगवान शिव हैं. इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण भी आशेश्वर, रासेश्वर, गोपेश्वर, गोपीश्वर, विश्वेश्वर आदि अनेक रूपों में भगवान शिव का दर्शन और पूजन करते हैं. भगवान विष्णु के हृदय भगवान शिव हैं और शिव के हृदय श्रीविष्णु. दोनों में रंचमात्र भी भेद नहीं है. आचार्य ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण की वंशी भगवान रुद्र हैं और जीव मात्र को कृतार्थ करने के लिए हरि और हर एक साथ लीला करते हैं. इसी प्रकार रासलीला में भी हरिहर दोनों के दर्शन होते हैं और कन्दर्प के दर्प का दलन होता है. 


कामदेव ने श्रीब्रह्माजी को भी जीत लिया था और अत्यंत उद्धत हो गया था. उसका अहंकार आकाश को छू रहा था तब भगवान श्रीकृष्ण ने उसके अहंकार के दलन के लिए आठ वर्ष की आयु में कामविजय की लीला की जिसे रासलीला कहा जाता है. भगवान श्रीकृष्ण ने देवताओं की बुद्धि की आवश्यकतानुसार सुधार की जबकि असुरों अराजक तत्त्वों का उद्धार किया. उन्होंने कहा कि महाशिवरात्रि पर गोपाल लोग नंद बाबा के नेतृत्व में अम्बिका वन में जाकर भगवान पशुपति गौरीशंकर की पूजा - अर्चना और अभिषेक करते हैं. 

भगवान श्रीकृष्ण ने सुदर्शन विद्याधर का अजगर योनि से उद्धार किया. शंखचूड़ यक्ष, केसी, व्योमासुर, अरिष्टासुर,शल,तोशल, चाणूर, मुष्टिक आदि असुरों के साथ भगवान श्रीकृष्ण ने कंस और उसके आसुरी साम्राज्य का समापन किया. भगवान का अवतार व्यासपीठ और राजपीठ में शास्त्रोक्त समन्वय के लिए होता है. भगवान श्रीकृष्ण ने वैदिक सनातन धर्म और वैदिक सनातन साम्राज्य की पुनर्प्रतिष्ठा की. ग्यारह वर्ष की आयु में भगवान श्रीकृष्ण ने बलराम के साथ उज्जयिनी में सान्दीपनी महर्षि के गुरुकुल में प्रवेश कर विद्याध्ययन किया और गुरु के मृत इकलौते पुत्र को यमलोक से वापस लाकर गुरु दक्षिणा चुकाई. 
 
इस अवसर पर यजमान पं नरेंद्र पांडेय उर्फ लालबाबू पांडेय  सहित शताधिक श्रद्धालुओं ने सर्वतोभद्र मण्डल के आवाहित देवताओं का पूजन - अर्चन किया. प्रयागराज से पधारे पं.संजय द्विवेदी ने समस्त कर्मकांड और मूल पाठ पं. ब्रजकिशोर पांडेय ने संपन्न किया.

कथा स्थल पर शिवपुरी मुहल्लेवासियों के अलावे पद्मनाभ चौबे, पूर्व बैंक अधिकारी प्रेम सागर पांडेय, विद्यासागर ओझा, सचिदानंद मिश्र, कृष्णा कांत ओझा, मीरा ओझा, बबन राय, वागीश पांडेय, बाल मुकुंद चौबे, शशिकांत पांडेय, मोहन पांडेय, विश्वजीत पांडेय, प्रभात रंजन, कंचन कुमारी, ममता कुमारीतारकेश्वर पांडेय, मदन मोहन मिश्र, उमाशंकर सिंह, बैद्यनाथ सिंह, ललिता देवी, पप्पू पांडेय, राजकुमारी देवी, गायत्री देवी आदि उपस्थित रहे.















Post a Comment

0 Comments