वीडियो : गुमनामी के अंधेरे में खोता जा रहा रानी कुएं का समृद्ध इतिहास ..

ऐसा कहा जाता है कि यहां रानी स्नान करने के लिए आती थी. रुद्रदेव किले से कुएं तक आने के लिए सुरंगनुमा एक रास्ता बना हुआ था, जिससे रानियां आती और यहां स्नान करने के बाद पुनः किले में चली जाती. वर्तमान में यह कुआं गंगा नदी के तट पर है, जिसे अब रानी घाट कहते हैं.




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- कभी भी गंगा में विलीन हो सकती है ऐतिहासिक विरासत
- रानी कुआं की बदहाल स्थिति को लेकर संवेदनहीन हैं जन प्रतिनिधि

बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : ऐतिहासिक और पौराणिक नगरी बक्सर कई मायनों में विश्व विख्यात है. इस धरती पर त्रेता युग में भगवान श्री राम अपने भ्राता लक्ष्मण के साथ शिक्षा ग्रहण करने पहुंचे थे. यह वही धरती है जहां हुमायूं को अफगानी शासक शेरशाह ने युद्ध में हरा दिया था, जिसके बाद मुगल सम्राट को अपनी जान बचाने के लिए एक भिश्ती का सहारा लेना पड़ा. यही भिश्ती बाद में एक दिन के लिए हिंदुस्तान का शहंशाह बनाया गया और अपने एक दिन के शासन में उसने चमड़े का सिक्का चलवा दिया. बक्सर ही वह धरती है जहां कथकौली के लड़ाई मैदान में 1764 में भारतीय राजाओं की सेनाओं की ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना से हुई हार के बाद भारत में ब्रिटिश प्रभुत्व बढ़ गया था. इस ऐतिहासिक जिले में ऐसे कई धरोहर भी हैं जो अब गुमनामी के अंधेरे में खोते जा रहे हैं. 

जिला मुख्यालय में वर्ष 1054 में राजा भोज के द्वारा बनवाए गए और बाद में राजा रुद्रदेव के द्वारा दोबारा निर्मित कराए गए किले के कुछ ही दूरी पर नाथ बाबा मंदिर के पास रानी कुआं मौजूद है. यह कुआं अब बदहाल स्थिति में है. इसे देखने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि हम किस प्रकार अपने पौराणिक और समृद्ध इतिहास सहेजने को लेकर लापरवाह हैं. यह कुआं आज ऐसी स्थिति में पहुंच गया है कि अब यह कभी भी गंगा में विलीन होकर केवल इतिहास के पन्नों में सिमट सकता है.

किले से कुएं तक था सुरंगनुमा रास्ता : 

रानी कुएं के बारे में ऐसा कहा जाता है कि यहां रानी स्नान करने के लिए आती थी. रुद्रदेव किले से कुएं तक आने के लिए सुरंगनुमा एक रास्ता बना हुआ था, जिससे रानियां आती और यहां स्नान करने के बाद पुनः किले में चली जाती. वर्तमान में यह कुआं गंगा नदी के तट पर है, जिसे अब रानी घाट कहते हैं. आज हालात ऐसे हैं कि गंगा के कटाव में कुएं के नीचे की सारी मिट्टी बह गई हैं लेकिन कुआं एक मीनार की तरह मजबूती से खड़ा है. 

गंगा से दूर था कुआं, फिर भी आता था गंगा जल : 

स्थानीय निवासी कंचन देवी बताती हैं कि यह कुआं पूर्व में गंगा नदी से तकरीबन एक कोस की दूरी पर था लेकिन उस समय का ऐसा मेकैनिज्म था जिससे कि गंगा का पानी सीधे कुएं में आता था. इस कुएं की खासियत यह भी थी कि यहां जब रानी स्नान करने पहुंचती थी तो कुएं से वह बाहर देख सकती थी लेकिन बाहर से कोई भी अंदर नहीं देख पाता था.

बदहाली का दंश झेल रहा ऐतिहासिक धरोहर :

उन्होंने कहा कि यह ऐतिहासिक धरोहर आज बदहाली का दंश झेलने को मजबूर है. कोई भी जनप्रतिनिधि अथवा अधिकारी इसकी सुध लेने वाला नहीं है. जिस तरह से गंगा का कटाव हुआ है, उसे देखने के बाद अब ऐसा प्रतीत होता है कि यह कुआं कभी भी जमींदोज हो सकता है. ऐसे में इस धरोहर को सहेजने की जरूरत है.

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