वीडियो : श्रीमद्भागवत में भरी है भक्ति रूपी मिठास : आचार्य

बताया कि अगर कोई भी व्यक्ति भागवत जी का एक श्लोक या उसका आधा श्लोक भी गाता है तो इस श्लोक के प्रति भगवान का इतना आकर्षण है कि स्वयं भगवान श्री कृष्ण चंद्र श्री राधा रानी का हाथ पकड़ कर दौड़ते हुए उसे श्लोक गाने वाले के पास उपस्थित होकर उसके स्वर में स्वर मिलते हुए अपनी वंशी की मधुर तान छेड़ने लग जाते हैं.
कथा कहते आचार्य उमेश चंद्र ओझा




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- नगर के सती घाट पर आयोजित है भागवत कथा
- आचार्य उमेश चंद्र ओझा करा रहे हैं कथा रसपान


बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : "वेद स्वरूपी कल्पवृक्ष का परिपक्व फल श्रीमद् भागवत जी है. यह सभी वेदों एवं पुराणों में तिलक अर्थात मुकुट मणि है. वेद रूपी वृक्ष की शाखा में लगे हुए भागवत रूपी फल में भी सुकदेव जी जैसे तोते ने अपने मुख(चोंच/ठोर) लगा दिया है हमारे समाज में ऐसी कहावत है कि जिस फल में तोता अपना मुख लगा दे वह फल मीठा हो जाता है किंतु यहां ऐसी बात नहीं है, बल्कि तोता उसी फल में अपनी चोंच मारता है जो फल पहले से मीठा हो. सभी शास्त्रों-ग्रन्थों को छोड़कर सुकदेव जी ने मात्र भागवत का ही गान किया क्योंकि इसमें भगवान की भक्ति रूपी मिठास भरी हुई है. यह कहना है आचार्य उमेश चंद्र ओझा का. वह नगर के मध्य में स्थित सती घाट के समीप गंगा नदी के तट पर लाल बाबा आश्रम में महंत सुरेंद्र जी महाराज की देखरेख में आयोजित भागवत कथा में श्रद्धालु भक्तों को श्रीमद्भागवत कथा का रसपान करा रहे थे.


उन्होंने कहा कि भागवत में चार अक्षर हैं जिनका क्रमशः अर्थ है भा- "भाष्यते सर्वे वेदेषु" अर्थात जो भागवत जी हैं जिनका प्रकाश चारों वेदों में फैला हुआ है. ग-"गीयन्ते नारदादिनी" अर्थात जिनका गुणगान नारद जी, सुकदेव जी एवं वेदव्यास जैसे भक्त कवियों ने गाया है. व- "वदंती त्रिषु लोकेषु" अर्थात जिसका गुणगान तीनों लोकों अर्थात ब्रह्मलोक में ब्रह्मा जी सप्ताह की विधि से, विष्णु जी विष्णु लोक में एक महीने एवं माता लक्ष्मी जी दो महीने की विधि से जबकि शिवलोक में शिवजी एक वर्ष का अनुष्ठान लेकर निरंतर कथा गाते रहते हैं. त - "तरन्ती भवसागर अर्थात भागवत जी भवसागर में डूबते हुए व्यक्ति का उद्धार कर देती है. जन्म मरण के चक्र एवं सभी विकार अर्थात - काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ, मत्सर से श्रीमद् भागवत जी महाराज रक्षा करते हैं.

आचार्य ने बताया कि केवल भागवत जी के महात्म्य की कथा सुन लें तो चारों मुक्ति अर्थात (i) साधुजन्य - आत्मा का परमात्मा में विलीन हो जाना. (ii) सालोक्य - भगवान के समान लोक मिल जाना. (iii) सारूप्य - भगवान के समान रूप मिल जाना. (iv) सामीप्य - भगवान के धाम ने उनके समीप में निवास करने का सौभाग्य प्राप्त होता है. 

उन्होंने बताया कि अगर कोई भी व्यक्ति भागवत जी का एक श्लोक या उसका आधा श्लोक भी गाता है तो इस श्लोक के प्रति भगवान का इतना आकर्षण है कि स्वयं भगवान श्री कृष्ण चंद्र श्री राधा रानी का हाथ पकड़ कर दौड़ते हुए उसे श्लोक गाने वाले के पास उपस्थित होकर उसके स्वर में स्वर मिलते हुए अपनी वंशी की मधुर तान छेड़ने लग जाते हैं.

जर्जर अचेतावस्था में पड़े हुए ज्ञान-वैराग्य के कान में नारद जी वेद-वेदांत एवं गीता जी का बार-बार पाठ करते रहे, फिर भी ना तो वह होश में आ पाए और ना ही उनका बुढ़ापा दूर हो पाया. किंतु ज्यो ही उनके नाम पर संकल्प लेकर भागवत कथा का आयोजन किया तो भागवत जी की केवल महात्म्य की कथा से ही वह होश में आ गए. उनका बुढ़ापा  दूर हो गया. वह तरुणावस्था को प्राप्त कर अपनी मां भक्ति महारानी के साथ नाचते हुए "श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी" का कीर्तन गाते हुए कथा मंडप में भागवत कथा सुनने पहुंच गए .
कथा का श्रवण करते नर-नारी

भागवत जी धुंधकारी जैसे पतित प्रेत आत्मा का उद्धार करने वाले हैं. धुंधकारी जब अपने पिता का कटु वचनों से अनादर करने लगा तो वह दुखी होकर रोने लगे. तब गोकर्ण जी ने इन्हें उपदेश दिया कि घर की ममता को त्याग कर वन में जाकर वहां भजन कर अपना परलोक सवार ले. किंतु ध्यान रखना भजन में बाधा देने वाला दो अवगुण हैं. (i) किसी व्यक्ति का दोष एवं गुण देखना. - आप ना तो किसी का दोस्त देखना और ना ही किसी का गुण दोष देखने से उसे व्यक्ति के प्रति ईर्ष्या होगी जो भजन का बाधक बन जाएगी एवं किसी का गुण देखने से उसमें आपकी आसक्ति हो जाएगी यह भी आपके भजन में विघ्न कर डालेगी. 

स्कंद पुराण में वर्णित है कि साक्षात नंद-नंदन कन्हैया ही श्री शुभ रूप में प्रकट होकर नित्य गोलोक धाम में (जो वृंदावन है)  नित्य निकुंज में बैठी हुई श्री राधा रानी की हथेली पर बैठकर गा रहे थे. श्री राधा रानी कृष्ण नाम गाने के लिए शुभ को समझाती एवं श्याम सुंदर राधा नाम गाने के लिए कहते. जबकि शुभ राधा-कृष्ण नाम गाते हुए वेदव्यास जी की पत्नी विटिका के उधर से सुकदेव जी के रूप में प्रकट हुए.

महंत सुरेंद्र जी महाराज ने बताया कि सती घाट पर स्थित लाल बाबा आश्रम नगर के मध्य में है मध्य स्थान शिव का होता है और यह श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन होना परम सौभाग्य है. लाल बाबा आश्रम में वर्ष में दो बार कथा का आयोजन किया जाता है. एक बार श्री राम कथा और एक बार श्रीमद् भागवत कथा. बीते वर्ष दिसंबर माह में आचार्य गुप्तेश्वर महाराज जी ने राम कथा कही थी और इस बार आचार्य उमेश चंद्र ओझा जी श्रीमद् भागवत कथा कह रहे हैं. ऐसे में सभी श्रद्धालु भक्तों से अनुरोध है कि वह यहां पहुंचे और भागवत कथा का का श्रवण कर अपना जीवन धन्य करें. उन्होंने बताया कि यह कथा 14 जुलाई से प्रारंभ है 20 जुलाई को कथा का समापन होगा और 21 जुलाई को भव्य भंडारे के साथ आयोजन संपन्न हो जाएगा. दिन में 3:00 बजे से शाम 7:00 बजे तक आचार्य उमेश चंद्र ओझा जी श्रीमद् भागवत कथा का रसपान कराते हैं. कथा सुनने के लिए दूर दराज से श्रद्धालु भक्त पहुंच रहे हैं.
महंत सुरेंद्र जी महाराज

आयोजन को सफल बनाने में सुरेंद्र वर्मा, बबलू तिवारी, रणधीर श्रीवास्तव, रंजीत राय, दमरी राय, लल्लू वर्मा, मोहन तिवारी, चंदन गुप्ता, सत्रुघ्न जायसवाल, पंचानंद वर्मा, अनंत वर्मा, रवि मिश्रा, आजाद सिंह राठौड़, विजय राजभर, छोटू उपाध्याय समेत तमाम नगरवासियों का योगदान मिल रहा है.

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वीडियो : महंत ने दी पूरी जानकारी : 








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