विजयादशमी महोत्सव का दिव्य रंगमंच : श्री कृष्ण जन्म और नारद मोह लीला ..

इन दोनों लीलाओं का निर्देशन श्री सुरेश उपाध्याय "व्यास जी" ने किया, जिनकी कुशलता से दर्शक दिन में श्रीकृष्ण के जन्म की भावुकता में डूब गए, और रात्रि में नारद मोह लीला के रोमांचकारी प्रसंगों से रोमांचित हो उठे.

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  • -दिन में कृष्ण जन्म की लीला से मंत्रमुग्ध हुए दर्शक
  • रात्रि में नारद मोह लीला के दौरान देवताओं का मोहक मंचन

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : श्री रामलीला समिति के तत्वाधान में चल रहे 21 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव के दूसरे दिन का आयोजन गुरुवार को बड़े धूमधाम से किया गया. वृंदावन से पधारे प्रसिद्ध रामलीला मंडल, श्री राधा माधव रासलीला एवं रामलीला संस्थान के कलाकारों ने इस मौके पर दो प्रमुख लीलाओं—श्री कृष्ण जन्म लीला और नारद मोह लीला का मंचन किया. इन दोनों लीलाओं का निर्देशन श्री सुरेश उपाध्याय "व्यास जी" ने किया, जिनकी कुशलता से दर्शक दिन में श्रीकृष्ण के जन्म की भावुकता में डूब गए, और रात्रि में नारद मोह लीला के रोमांचकारी प्रसंगों से रोमांचित हो उठे.

कृष्ण जन्म लीला: कंस की आकाशवाणी और कृष्ण का जन्म :

दिन के समय मंचित की गई कृष्ण जन्म लीला ने दर्शकों को भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से जुड़ी अद्भुत कथा में डुबो दिया. लीला का प्रारंभ मथुरा के राजा कंस द्वारा अपनी बहन देवकी का विवाह वासुदेव से कराने के प्रसंग से होता है. विवाह के पश्चात जब कंस अपनी बहन को विदा कर रहा होता है, तभी आकाशवाणी होती है कि देवकी का आठवां पुत्र कंस का विनाश करेगा. इस भविष्यवाणी से विचलित होकर कंस देवकी और वासुदेव को कारागार में डाल देता है और उनके बच्चों को एक-एक करके मार डालता है.

कथा के अनुसार, जब देवकी का आठवां पुत्र श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लेता है, तो वासुदेव उसे यमुना पार कर गोकुल में नंद-यशोदा के यहां सुरक्षित पहुंचा देते हैं. इस पूरे दृश्य का जीवंत मंचन करते हुए कलाकारों ने दर्शकों के मन को भाव-विभोर कर दिया. यमुना के पार जाने और कृष्ण के बाल रूप को गोकुल पहुंचाने का दृश्य इतना सजीव था कि उपस्थित जनसमूह कृष्ण के बाल रूप के दर्शन में खो गया.

नारद मोह लीला: देवताओं और कामदेव की कथा का मनोरंजक मंचन :

रात्रि के समय नारद मोह लीला के मंचन ने दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया. इस लीला में नारद जी की तपस्या को दिखाया गया, जो हिमालय की कंदराओं में साधनारत रहते हैं. उनकी कठोर तपस्या से देवराज इंद्र का सिंहासन डोल जाता है और वह चिंतित हो उठते हैं. इंद्र देवताओं के राजा होने के नाते कामदेव को नारद जी की तपस्या भंग करने के लिए भेजते हैं, लेकिन तमाम प्रयासों के बाद भी कामदेव असफल रहते हैं और नारद जी के चरणों में शरण लेते हैं.

इस घटना के बाद नारद जी को अभिमान हो जाता है कि उन्होंने काम और क्रोध दोनों को जीत लिया है. वह ब्रह्मा, शिव, और अंत में विष्णु के पास जाकर अपनी विजय का बखान करते हैं. भगवान विष्णु नारद के अभिमान को देखते हुए उन्हें माया नगरी का अनुभव कराते हैं. माया के प्रभाव में नारद जी विश्व मोहिनी नामक सुंदर स्त्री से विवाह की इच्छा करते हैं और विष्णु से सुंदर रूप की याचना करते हैं, परंतु नारायण उन्हें बंदर का रूप दे देते हैं. यह दृश्य दर्शकों को हंसा-हंसा कर लोटपोट कर देता है. अंत में नारद क्रोधित होकर विष्णु को पृथ्वी पर जन्म लेने का श्राप देते हैं.

इस रोमांचक और मनोरंजक मंचन के दौरान रामलीला समिति के अध्यक्ष रामावतार पांडेय, सचिव बैकुंठ नाथ शर्मा, कृष्णा वर्मा सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे.










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