श्री राम के साथ निषाद राज की भेंट और उनकी सेवाएं दिखाईं गईं. श्री राम ने निषादराज से बरगद के दूध की मांग की, जिससे उन्होंने अपने बालों की जटा बनाई. मंत्री सुमंत के दुखी होने पर प्रभु श्री राम ने उन्हें धैर्य बंधाया, जबकि सीता के वन जाने के फैसले पर अडिग रहने के बाद राम ने सुमंत को वापस भेज दिया.
राजा दशरथ व कैकयी संवाद का दृश्य |
- श्री रामलीला समिति के तत्वावधान में रामलीला महोत्सव जारी
- केवट प्रसंग और सुदामा चरित्र के भाग-2 ने दर्शकों को किया भावविभोर
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : शुक्रवार को श्री रामलीला समिति द्वारा आयोजित विजयादशमी महोत्सव के दसवें दिन, श्री राम वन गमन और सुदामा चरित्र भाग-2 का मंचन किया गया. इस आयोजन में वृंदावन से आए श्री राधा माधव रासलीला एवं रामलीला मंडल ने भाग लिया. स्वामी श्री सुरेश उपाध्याय "व्यास जी" के निर्देशन में प्रस्तुत किए गए ये प्रसंग दर्शकों के बीच गहरी छाप छोड़ गए.
श्री राम का वन गमन और केवट प्रसंग
रामलीला के मंच पर "श्री राम वन गमन" और "केवट प्रसंग" को जीवंत किया गया. लीला में दिखाया गया कि मंत्री सुमंत, श्री राम, सीता और लक्ष्मण को रथ पर बिठाकर वन की ओर प्रस्थान करते हैं. भगवान का रथ शाम 5 बजे रामलीला मैदान से नगर भ्रमण पर निकलता है, जो स्टेशन रोड स्थित कमलदह सरोवर तक पहुंचता है. वहां कुछ प्रसंगों के मंचन के बाद यह पुनः रामलीला मंच पर लौटता है, जहां केवट प्रसंग का मुख्य मंचन होता है.
इस लीला में श्री राम के साथ निषाद राज की भेंट और उनकी सेवाएं दिखाईं गईं. श्री राम ने निषादराज से बरगद के दूध की मांग की, जिससे उन्होंने अपने बालों की जटा बनाई. मंत्री सुमंत के दुखी होने पर प्रभु श्री राम ने उन्हें धैर्य बंधाया, जबकि सीता के वन जाने के फैसले पर अडिग रहने के बाद राम ने सुमंत को वापस भेज दिया. इसके बाद केवट और श्री राम के बीच संवाद हुआ, जिसमें केवट ने चरण पखारने की शर्त पर भगवान को नदी पार कराया.
सुदामा चरित्र के मंचन का दृश्य |
सुदामा चरित्र का भावनात्मक मंचन
दूसरी तरफ, दिन में कृष्ण लीला के दौरान “सुदामा चरित्र भाग-2" का मंचन किया गया. इसमें सुदामा और श्रीकृष्ण के बीच की मित्रता को दिखाया गया, जहां गुरु संदीपन के आश्रम से लौटने के बाद सुदामा अत्यंत निर्धन हो जाते हैं और श्रीकृष्ण द्वारकापुरी के राजा बन जाते हैं. पत्नी के आग्रह पर सुदामा श्रीकृष्ण से मदद मांगने जाते हैं और उनके लिए पड़ोस से चावल उधार लाते हैं.
द्वारकापुरी के मार्ग में श्रीकृष्ण केवट के भेष में सुदामा को नदी पार कराते हैं. महल पहुंचने पर श्रीकृष्ण अपने मित्र से मिलने के लिए नंगे पांव दौड़कर आते हैं और सुदामा का स्वागत करते हैं. श्रीकृष्ण सुदामा द्वारा लाए चावल को प्रेमपूर्वक ग्रहण करते हैं और सुदामा की गरीबी दूर करते हैं. इस भावनात्मक दृश्य को देखकर दर्शक भावविभोर हो जाते हैं.
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