भूमि सर्वेक्षण में भ्रष्टाचार का बोलबाला : चकबंदी कार्यालय में घूसखोरी का पर्दाफाश

इसी दौरान घूसखोरी और भ्रष्टाचार के गंभीर मामले सामने आए हैं. सरकारी कर्मचारी और निजी कर्मी, जो इस प्रक्रिया में शामिल हैं, खतियान नकल के लिए अवैध रूप से धन वसूल कर रहे हैं. इस घूसखोरी के कारण सामान्य लोग, विशेषकर किसान और गरीब वर्ग के लोग, पीड़ित हो रहे हैं.







                                            




- कैमरे में कैद हुआ लिपिक द्वारा घूस लेते हुए दृश्य
- निजी कंप्यूटर ऑपरेटर पर पैसे लेकर खतियान नकल निकालने का आरोप

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : जिले में चल रहे भूमि सर्वेक्षण को लेकर जनता में जागरूकता है और प्रशासन भी इस कार्य को शीघ्रता से पूरा कराने के लिए संकल्पित है. जिला पदाधिकारी अंशुल अग्रवाल और अन्य संबंधित अधिकारी पूरी सक्रियता से काम कर रहे हैं. भूमि सर्वेक्षण के दौरान ज़रूरी कागजात, विशेषकर खतियान की नकल निकालने के लिए, चकबंदी कार्यालय में आम जनता का आना-जाना लगा हुआ है. परंतु, इसी दौरान घूसखोरी और भ्रष्टाचार के गंभीर मामले सामने आए हैं. सरकारी कर्मचारी और निजी कर्मी, जो इस प्रक्रिया में शामिल हैं, खतियान नकल के लिए अवैध रूप से धन वसूल कर रहे हैं. इस घूसखोरी के कारण सामान्य लोग, विशेषकर किसान और गरीब वर्ग के लोग, पीड़ित हो रहे हैं.

हमने इस भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ किया. चकबंदी कार्यालय में घूसखोरी के आरोपों की पुष्टि के लिए हमारे संवाददाता ने वहां पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया. संवाददाता ने खुद भू-स्वामी बनकर चकबंदी कार्यालय में नकल निकालने की प्रक्रिया में घूसखोरी की हकीकत को कैमरे में कैद किया. इस दौरान घूसखोर क्लर्क के अलावा चपरासी और एक निजी कंप्यूटर ऑपरेटर की भूमिका भी सामने आई. कैमरे में कैद हुई बातचीत में स्पष्ट देखा गया कि सरकारी प्रक्रिया का दुरुपयोग करते हुए लोगों से पैसों की मांग की जा रही है.

चकबंदी कार्यालय में संवाद : 

हमारी टीम ने समाहरणालय के समीप स्थित राजपुर चकबंदी कार्यालय का दौरा किया. यहां घूसखोरी के पूरे खेल का पर्दाफाश हुआ. संवाददाता ने चकबंदी कार्यालय में एक भू-स्वामी के रूप में जाकर नकल निकालने के लिए लिपिक से बात की. बातचीत के दौरान चपरासी बुधिराम सबसे पहले मिले. उन्होंने कहा कि वह लिपिक की अनुपस्थिति में पैसे लेते हैं. अभी आप लिपिक से बात कर लीजिए. लिपिक ने प्रति नकल 500 रुपये की मांग की. संवाददाता ने मोल-भाव कर 400 रुपये प्रति नकल की बात पक्की की. इसके अलावा, लिपिक ने संवाददाता से 500 रुपये अग्रिम राशि के रूप में लेने की बात कही और शेष राशि काम होने के बाद देने का वादा किया. क्लर्क ने यह भी बताया कि फिलहाल काम कंप्यूटर ऑपरेटर के दिल्ली से लौटने के बाद किया जाएगा, जो अभी अनुपस्थित था.

संवाद का विवरण :

संवाददाता (क्लर्क से) : "आपसे 500 रुपये प्रति नकल की बात हुई थी. क्या इसमें कुछ रियायत हो सकती है?"

क्लर्क : "ऑफिस में खर्च है। कंप्यूटर ऑपरेटर भी 100 रुपये लेता है. जो समझ में आए, वही कर दीजिए."

इसके बाद, संवाददाता ने 400 रुपये प्रति नकल की पेशकश की और 500 रुपये अग्रिम रूप से देने का प्रस्ताव किया, जिसे क्लर्क ने स्वीकार किया. यह मामला यहीं खत्म नहीं हुआ. संवाददाता ने आगे इस पूरे मामले की गहराई में जाकर निजी कंप्यूटर ऑपरेटर से भी बातचीत की, जिसने और भी चौंकाने वाली जानकारियां दीं.

कंप्यूटर ऑपरेटर की भूमिका: 

चकबंदी कार्यालय में कार्यरत निजी कंप्यूटर ऑपरेटर मनीष कुमार की भूमिका भी इस पूरे भ्रष्टाचार में संदिग्ध पाई गई. संवाददाता ने मनीष से फोन पर संपर्क किया और नकल निकालने के एवज में पैसों की बात की. मनीष ने खुलेआम बताया कि वह प्रति नकल 500 रुपये चार्ज करता है और पैसे काम पूरा होने के बाद लेता है.

संवाददाता (मनीष से): "हमने 100 रुपये प्रति नकल के हिसाब से पहले भी पैसे दिए थे, पर काम नहीं हुआ."

मनीष: "पैसे तो मुझे नहीं मिले. नकल का चार्ज 500 रुपये है. अगर आपको काम करवाना है, तो शाम को फोन कर लीजिए."

मनीष ने संवाद के दौरान यह भी पूछा कि नकल किस स्थान का चाहिए- इटाढ़ी का या राजपुर का. संवाददाता ने राजपुर का नकल निकलवाने की बात कही. मनीष ने बताया कि वह शाम को काम शुरू कर सकता है और इस दौरान बाकी रकम लेकर नकल उपलब्ध कराई जाएगी. इस पूरे घटनाक्रम से यह स्पष्ट हुआ कि चकबंदी कार्यालय में भ्रष्टाचार का व्यापक जाल फैला हुआ है, जिसमें कई सरकारी और निजी कर्मचारी शामिल हैं.

चकबंदी कार्यालय में भ्रष्टाचार के कारण आम जनता को हो रही परेशानी : 

चकबंदी कार्यालय में चल रही इस घूसखोरी का शिकार आम जनता हो रही है. नकल निकालने की प्रक्रिया में देरी के कारण, किसान और भू-स्वामी कई महीनों तक कार्यालय का चक्कर काटते रहते हैं. यह मामला केवल घूसखोरी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह किसानों के अधिकारों का हनन भी है. ज़रूरी कागजात न मिलने से भूमि संबंधित समस्याओं का निपटारा नहीं हो पाता और कई बार ज़मीन के छोटे-छोटे हिस्सों पर भी विवाद की स्थिति बनी रहती है.

प्रशासन की प्रतिक्रिया : 

इस भ्रष्टाचार की जांच पड़ताल और कैमरे में कैद सबूतों के बाद, जिला पदाधिकारी अंशुल अग्रवाल से संपर्क किया गया. उन्होंने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा, "अगर किसी भी सरकारी कर्मी या निजी ऑपरेटर ने इस तरह की घूसखोरी में संलिप्तता दिखाई है, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी. भूमि सर्वेक्षण का कार्य जनता की भलाई के लिए हो रहा है, और इस तरह की अवैध गतिविधियां किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं की जाएंगी."

भ्रष्टाचार के प्रति प्रशासन की सख्ती : 

जिला पदाधिकारी ने आगे बताया कि उन्होंने पहले भी अपने अधिकारियों को इस तरह के मामलों पर नजर रखने और जनता की सहायता करने के निर्देश दिए हैं. उन्होंने कहा कि यदि किसी कर्मी द्वारा जनता का शोषण किया जा रहा है, तो वह कानून की पकड़ में आएगा और उस पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी. जिला प्रशासन ने आम जनता से भी अपील की है कि वे किसी भी प्रकार की घूसखोरी का हिस्सा न बनें और ऐसे मामलों की शिकायत सीधे उच्च अधिकारियों से करें.

अवैध वसूली के प्रति जनता में रोष : 

इस मामले के उजागर होने के बाद जिले में एक बड़ा जनाक्रोश देखने को मिला है. विशेष रूप से गरीब किसान वर्ग, जो कि जमीन संबंधी कागजातों के लिए पूरी तरह से चकबंदी कार्यालय पर निर्भर है, अब खुलेआम प्रशासन से न्याय की मांग कर रहा है. चकबंदी कार्यालय में इस प्रकार की गतिविधियों से जनता का विश्वास प्रशासनिक व्यवस्था से उठता जा रहा है.

बहरहाल, भूमि सर्वेक्षण कार्य में पारदर्शिता बनाए रखना प्रशासन की प्राथमिकता होनी चाहिए, ताकि आम जनता को किसी भी प्रकार की कठिनाई का सामना न करना पड़े. इस तरह के भ्रष्टाचार से न केवल सरकार की साख को धक्का लगता है, बल्कि जनता का विश्वास भी टूटता है. चकबंदी कार्यालय में फैले इस भ्रष्टाचार को लेकर प्रशासन द्वारा उचित कार्रवाई की अपेक्षा की जा रही है. अगर इस तरह के मामले पर सख्ती नहीं बरती गई तो भविष्य में भूमि सर्वेक्षण कार्य में और अधिक रुकावटें आ सकती हैं.










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