कहा कि इस भूमि का धार्मिक महत्व अत्यंत उच्च है. कश्यप महात्म्य का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि सभी जीव कश्यप ऋषि की संतान हैं और जिन्हें अपने गोत्र की जानकारी नहीं है, वे अपने को कश्यप गोत्र का मान सकते हैं.
- त्रिदंडी स्वामी जी महाराज ने बताया बक्सर धाम का महत्व
- सिद्धाश्रम की महिमा का किया गुणगान
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : सदर प्रखंड के गंगाधाम, कम्हरिया में चल रहे श्री लक्ष्मीनारायण महायज्ञ के चौथे दिन श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी. बुधवार को दोपहर से ही श्रद्धालु गंगा तट पर आयोजित इस महायज्ञ में पहुंचने लगे. यज्ञ स्थल की परिक्रमा करने के बाद श्रद्धालुओं ने सवा लाख हनुमान चालीसा हरिकीर्तन में भाग लिया. इसके बाद शाम तीन बजे कथा का आयोजन हुआ, जिसमें विश्व प्रसिद्ध संत श्री 1008 गंगापुत्र त्रिदंडी स्वामी महाराज ने बक्सर धाम की महिमा का विस्तार से वर्णन किया.
त्रिदंडी स्वामी जी महाराज ने प्रवचन के दौरान कहा कि राम कथा की शुरुआत बक्सर से ही हुई थी. उन्होंने बताया कि भारत में हर जीव में भगवान का वास है और वृक्ष हमारे भाई-बंधु हैं. उनका संरक्षण हमारा परम कर्तव्य है. बक्सर को वामन अवतार से जोड़ते हुए उन्होंने कहा कि इस भूमि का धार्मिक महत्व अत्यंत उच्च है. कश्यप महात्म्य का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि सभी जीव कश्यप ऋषि की संतान हैं और जिन्हें अपने गोत्र की जानकारी नहीं है, वे अपने को कश्यप गोत्र का मान सकते हैं.
संतों की तपोस्थली रहा है बक्सर
त्रिदंडी स्वामी जी महाराज ने कहा कि बक्सर कभी भी संत विहीन नहीं रहा, बल्कि यह संत-महात्माओं की तपोस्थली रही है. उन्होंने यज्ञ के महत्व को बताते हुए कहा कि संतों का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए. साधु बनना अत्यंत कठिन कार्य है और साधु-महात्मा कभी कुछ नहीं मांगते, लेकिन उनके पास खाली हाथ नहीं जाना चाहिए. उन्होंने श्रद्धालुओं को सलाह दी कि यदि कुछ न हो तो तुलसी पत्र लेकर जाएं और जूते-चप्पल उतारकर साधु-संतों को प्रणाम करें.
सिद्धाश्रम की महिमा का बखान
स्वामी जी ने कहा कि सिद्धाश्रम का नाम लेने मात्र से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. उन्होंने भगवान की भक्ति को सर्वोच्च बताया और कहा कि बक्सर में स्थित श्रीलक्ष्मीनारायण भगवान, मां गंगा और सोहनीपट्टी स्थित गौरीशंकर मंदिर के दर्शन मात्र से पापों का नाश होता है. उन्होंने यह भी कहा कि गंगा को अर्पित किए गए वस्त्रों को घर नहीं लाना चाहिए, क्योंकि उन पर केवट का अधिकार होता है. कथा के समापन के बाद गंगा आरती की गई और श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद वितरित किया गया.
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