कुर्सियों के बहाने कांग्रेस में आत्ममंथन की लहर दौड़ रही है – लेकिन यह मंथन ऐसा है जिसमें सिर्फ विष निकल रहा है और अमृत भाजपा के हिस्से आ रहा है. कांग्रेस के भीतर अब भी बहस है कि रैली फेल क्यों हुई, और हर गुट दूसरे गुट की सजाई कुर्सियों को दोष दे रहा है.
- सभा खत्म, बहस जारी – कुर्सियों पर अब सियासत की कुर्सी जम गई
- कांग्रेस में आत्ममंथन, भाजपा में आत्मविश्वास – जनता तो खामोश है!
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की उपस्थिति में कांग्रेस की रैली में जो सबसे ज्यादा 'मौजूद' रहा, वो था – ग़ायब होना! कांग्रेस की लाख कोशिशों और पोस्टरबाज़ी के बावजूद जनता न आई, लेकिन कुर्सियाँ आ गईं – और वहीं से शुरू हुई राजनीति की असली स्क्रिप्ट. अब सभा खत्म हो चुकी है, मगर सियासत की फिल्म जारी है – मुख्य भूमिका में हैं खाली कुर्सियाँ और सह-कलाकार बने हैं कांग्रेसी नेता.
कांग्रेस के नेता मान ही नहीं रहे कि जनता नहीं आई. कोई कह रहा है कि लोगों ने पास की छांव में बैठना बेहतर समझा, तो कोई बता रहा है कि कुर्सियाँ भरी थीं, कैमरा वाला ही दोषी है. एक नेता तो यहां तक बोले – “मेरे भाषण के बाद इतनी तालियाँ बजीं कि लोग डरकर भाग गए.” यानी जनता भले न आई हो, नेता अब भी आत्मप्रशंसा के मंच से उतरने को तैयार नहीं.
कुर्सियों के बहाने कांग्रेस में आत्ममंथन की लहर दौड़ रही है – लेकिन यह मंथन ऐसा है जिसमें सिर्फ विष निकल रहा है और अमृत भाजपा के हिस्से आ रहा है. कांग्रेस के भीतर अब भी बहस है कि रैली फेल क्यों हुई, और हर गुट दूसरे गुट की सजाई कुर्सियों को दोष दे रहा है.
उधर भाजपा का 'फील गुड' मूड अब स्थायी भाव बन गया है. एक नेता ने तंज कसते हुए कहा – “बक्सर की सभा ने बता दिया कि कांग्रेस अब भीड़ नहीं, केवल बैनर में जी रही है.” दूसरे बोले – “जनता की अनुपस्थिति में कांग्रेस की मौजूदगी ज़्यादा साफ दिखी – अकेली, असहाय और आत्ममुग्ध.”
भाजपा को अब विश्वास हो चला है कि जनता ने कांग्रेस को एक तरह से ‘रीजन ऑफ डाउट’ से हटा दिया है. कुर्सियों की गिनती से वो नतीजे तक पहुँच चुके हैं.
दरअसल, कांग्रेस की यह सभा नेताओं की भीड़ और जनता की दूरी का ऐसा दृश्य बन गई, जिसे कोई फोटोजेनिक एंगल भी नहीं बचा सका. कुर्सियाँ खाली थीं, मगर बहसों से भर गईं. मीडिया में तस्वीरें वायरल हैं, और भाजपा की सोशल मीडिया टीम इसे पोस्टर ऑफ द ईयर मान चुकी है.
तो अब कांग्रेस सोच में है – अगली बार सभा करें भी या सीधे प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दें? मंच पर भाषण कम, बहाने ज़्यादा बन रहे हैं. और कुर्सियाँ – अब वो भी पूछ रही हैं: “क्या हमें भी नेता बना दिया जाए?”
बक्सर की सभा भले खत्म हो गई, पर उसका खालीपन अब कांग्रेस की राजनीति में गूंज रहा है – और भाजपा उसी गूंज में गुनगुना रही है: "अभी तो शुरुआत है!"
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