कहा कि संवाद कभी व्यर्थ नहीं जाते. 'सँझवत' संवाद की वही धारा है, जो भोजपुरी साहित्य को ऊर्जा और दिशा प्रदान करेगी. उन्होंने सुझाव दिया कि हर अंक में बक्सर के किसी साहित्यकार पर आलोचनात्मक लेख अवश्य प्रकाशित किया जाए, जिससे नई पीढ़ी को भी मार्गदर्शन मिले.

- बक्सर में हुआ पत्रिका का लोकार्पण, साहित्यकारों ने की मुक्त कंठ से सराहना
- भोजपुरी भाषा को नई दिशा देगा ‘सँझवत’ का यह विशेषांक
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : भोजपुरी भाषा और साहित्य को समर्पित आलोचना प्रधान पत्रिका ‘सँझवत’ का लोकार्पण शनिवार को आर्या एकेडमी में आयोजित एक भव्य समारोह में किया गया. पत्रिका का संपादन वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल ने किया है. समारोह में जुटे देशभर के साहित्यप्रेमियों और आलोचकों ने इस अंक को भोजपुरी साहित्य में एक ऐतिहासिक पहल बताया.
इस अवसर पर भोजपुरी साहित्य मंडल, बक्सर के सचिव डॉ. अरुण मोहन 'भारवि' ने 'सँझवत' की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जब मुख्यधारा की मीडिया में क्षेत्रीय भाषाओं को हाशिए पर रखा जा रहा हो, तब ऐसी पत्रिकाएँ सृजन और संवाद की नई राह खोलती हैं. उन्होंने संपादक डॉ. विमल के प्रति आभार व्यक्त करते हुए उनके योगदान को उल्लेखनीय बताया.
वरिष्ठ आलोचक विष्णुदेव तिवारी ने अपने वक्तव्य में कहा कि संवाद कभी व्यर्थ नहीं जाते. 'सँझवत' संवाद की वही धारा है, जो भोजपुरी साहित्य को ऊर्जा और दिशा प्रदान करेगी. उन्होंने सुझाव दिया कि हर अंक में बक्सर के किसी साहित्यकार पर आलोचनात्मक लेख अवश्य प्रकाशित किया जाए, जिससे नई पीढ़ी को भी मार्गदर्शन मिले. उपस्थित लोगों ने उनके इस प्रस्ताव की सराहना की.
विशिष्ट अतिथि भगवान पांडेय ने पत्रिका के सामग्री चयन, संयोजन और विमर्श को अत्यंत समृद्ध बताते हुए कहा कि यह अंक शोधार्थियों के लिए संदर्भ ग्रंथ की तरह कार्य करेगा. उन्होंने इसे संग्रहणीय साहित्यिक दस्तावेज की संज्ञा दी.
समारोह की अध्यक्षता कर रहे डॉ. रामेश्वर प्रसाद वर्मा ने कहा कि डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल की संपादन शैली में गंभीरता, संवेदना और सामाजिक उत्तरदायित्व की झलक है. ‘सँझवत’ न केवल आलोचना की दृष्टि से सशक्त है, बल्कि यह भोजपुरी भाषा के बौद्धिक विकास की दिशा में भी एक मजबूत कदम है.
कार्यक्रम के अंत में संपादक डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल ने 'सँझवत' के नियमित प्रकाशन की प्रतिबद्धता दुहराई और बक्सर की साहित्यिक आत्मीयता के लिए आभार प्रकट किया. उन्होंने कहा कि साहित्य का यह प्रयास किसी एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि एक समर्पित समुदाय की अभिव्यक्ति है.
इस अवसर पर शिव बहादुर पाण्डेय 'प्रीतम', शशि भूषण मिश्र, रामेश्वर नाथ मिश्र 'विहान', अतुल मोहन प्रसाद, उमेश पाठक 'रवि', कुशध्वज सिंह 'मुन्ना', नागेन्द्र उपाध्याय, भगवान पांडेय, विष्णुदेव तिवारी, डॉ. अरुण मोहन 'भारवि' सहित कई साहित्यप्रेमी उपस्थित रहे.
‘सँझवत’ का यह अंक भोजपुरी साहित्य को आलोचना की परंपरा में एक नई ऊँचाई तक ले जाने की क्षमता रखता है. यह प्रयास आनेवाले समय में भोजपुरी भाषा को विचार और विमर्श के केंद्र में लाने में सहायक सिद्ध होगा.
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