शासन, धर्म और समाजनीति में संतुलन ही राष्ट्र का आधार : आचार्य कृष्णानंद शास्त्री

कहा कि जब किसी देश में राजनीति, धर्मनीति और समाजनीति दिशाहीन हो जाती है तो वह देश धीरे-धीरे गुलामी की ओर बढ़ने लगता है. इसका मूल कारण है स्वार्थ की प्रधानता. जब मनुष्य केवल अपने हितों के बारे में सोचने लगता है तो वह मानव नहीं, महादानव बन जाता है.

 

कथा कहते आचार्य










                                           




  • सिद्धाश्रम धाम में 17वें धर्म आयोजन की कथा में उठी चेतना की अलख
  • भारत की पावन धरा ही धर्म का मूल स्रोत, यहां की भक्ति करती है नारायण को भी वश

बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : सर्वजन कल्याण सेवा समिति सिद्धाश्रम धाम बक्सर द्वारा आयोजित 17वें धर्म आयोजन के चतुर्थ दिवस (16 जून 2025) की कथा में प्रख्यात पौराणिक वक्ता आचार्य कृष्णानंद शास्त्री ने कहा कि जब किसी देश में राजनीति, धर्मनीति और समाजनीति दिशाहीन हो जाती है तो वह देश धीरे-धीरे गुलामी की ओर बढ़ने लगता है. इसका मूल कारण है स्वार्थ की प्रधानता. जब मनुष्य केवल अपने हितों के बारे में सोचने लगता है तो वह मानव नहीं, महादानव बन जाता है.

आचार्य शास्त्री ने स्पष्ट किया कि ऐसे समय में राजनीति बिना सिद्धांतों की हो जाती है, धर्म नीति शास्त्रों से दूर हो जाती है और समाज संस्कारों से विहीन हो जाता है. परिणामस्वरूप व्यक्ति की सोच केवल स्वयं तक सीमित रह जाती है, और देश, धर्म एवं समाज के पतन की शुरुआत हो जाती है.

कथा के दौरान श्री मार्कंडेय पुराण का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि भारत कोई साधारण भूमि नहीं बल्कि सनातन धर्म की अखंड भूमि है. यहां के कण-कण में धर्म की उपस्थिति है. इसी कारण गंगा का जल केवल पानी नहीं, तुलसी का पत्ता केवल पत्ता नहीं और शालिग्राम केवल पत्थर नहीं, बल्कि यह तीनों ब्रह्म वस्तुएं हैं जो मुक्ति प्रदान करती हैं.

उन्होंने कहा कि भारत की यह भूमि इतनी पवित्र है कि आज भी किसी भी प्राणी के मरणासन्न अवस्था में उसके मुख में गंगाजल, तुलसी दल और शालिग्राम भगवान का जल दिया जाता है. यही वह धरा है जिसने वराह अवतार में भगवान नारायण की प्रिय पत्नी का रूप लिया और श्रीकृष्ण अवतार में द्वारकाधीश की पत्नी सत्यभामा बनी.

कथा सुनते श्रद्धालु

आचार्य शास्त्री ने बताया कि भारतभूमि पर ही बार-बार नारायण के विभिन्न अवतार हुए हैं. यहीं से संपूर्ण सृष्टि में धर्म की स्थापना होती है और अधर्म का विनाश होता है. ईश्वर यहीं जन्म लेकर मनुष्यों से विभिन्न रिश्तों को जोड़ते हैं और हमें जीवन के मूल्यों का प्रशिक्षण देते हैं.

उन्होंने कहा कि यही वह लोक है जो मनुष्यों के समस्त कर्मों को बैकुंठ तक अर्पित कर देता है. भारत में की गई भक्ति स्वयं नारायण को भी भक्त के अधीन कर देती है. इसलिए यहां के संतों, विद्वानों और धर्माचार्यों की यह विशेष जिम्मेदारी है कि वे समाज को अपने प्रवचनों और जीवन आचरण से धर्म, संस्कार और सिद्धांत की शिक्षा दें ताकि देश, धर्म और समाज की रक्षा की जा सके.

सिद्धाश्रम धाम में जारी यह सात दिवसीय धर्म आयोजन प्रतिदिन श्रद्धालुओं की आध्यात्मिक चेतना को जागृत कर रहा है. सत्संग, कथा और ध्यान से वातावरण दिव्य बना हुआ है. सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु प्रतिदिन इस आयोजन का हिस्सा बनकर धार्मिक लाभ प्राप्त कर रहे हैं.








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