शक्ति के बिना शक्तिमान असंभव : मार्कंडेय पुराण में देवी के त्रिरूपों की महिमा का वर्णन ..

महाकाली संहार की देवी हैं, जिन्होंने मधु-कैटभ जैसे दैत्यों का अंत किया. महालक्ष्मी पालन की अधिष्ठात्री हैं, जिन्होंने महिषासुर का वध किया. वहीं, महा सरस्वती सृष्टि की देवी हैं, जिन्होंने शुंभ-निशुंभ समेत अनेकों असुरों का विनाश कर सृष्टि की रक्षा की.










                                           





  • महाकाली, महालक्ष्मी और महा सरस्वती के रूपों से राक्षसी शक्तियों का विनाश और सृष्टि का संचालन होता है.
  • सिद्धाश्रम धाम में सप्तम दिवस की कथा में आचार्य शास्त्री ने बताया – देवी शक्ति ही सृष्टि, पालन और संहार की अधिष्ठात्री हैं.


बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : सर्वजन कल्याण सेवा समिति सिद्धाश्रम धाम बक्सर द्वारा आयोजित 17वें धर्म आयोजन के सप्तम दिवस श्री मार्कंडेय पुराण कथा में आचार्य कृष्णानंद शास्त्री (पौराणिक जी) ने देवी शक्ति के तीन स्वरूपों की महिमा का विस्तृत वर्णन किया. उन्होंने बताया कि मार्कंडेय पुराण के अनुसार देवी शक्ति ने स्वयं को तीन रूपों में विभक्त किया – महाकाली, महालक्ष्मी और महा सरस्वती.

तीनों ही रूपों का विशिष्ट कार्य है. महाकाली संहार की देवी हैं, जिन्होंने मधु-कैटभ जैसे दैत्यों का अंत किया. महालक्ष्मी पालन की अधिष्ठात्री हैं, जिन्होंने महिषासुर का वध किया. वहीं, महा सरस्वती सृष्टि की देवी हैं, जिन्होंने शुंभ-निशुंभ समेत अनेकों असुरों का विनाश कर सृष्टि की रक्षा की.

आचार्य शास्त्री ने कहा कि जब-जब सृष्टि, पालन या विलयन में राक्षसी शक्तियां बाधा डालती हैं, तब-तब यही त्रिदेवी अपने-अपने रूपों में अवतरित होकर इनका संहार करती हैं. यही शक्ति त्रिदेवों के पास जीवन संगिनी के रूप में भी विद्यमान रहती हैं.

उन्होंने बताया कि लक्ष्मी जी भगवान विष्णु के साथ वैष्णवी रूप में संसार का पालन करती हैं. उनके हाथों में कमल होता है और वे धन की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं. वहीं, सरस्वती देवी भगवान ब्रह्मा के साथ सृष्टि करती हैं. वे वीणा बजाती हैं, श्वेत वस्त्र धारण करती हैं और बुद्धि, विद्या की अधिष्ठात्री हैं.

संहार की प्रक्रिया को महाकाली नियंत्रित करती हैं, जो भगवान शिव के साथ महागौरी पार्वती के रूप में निवास करती हैं. जब राक्षसी शक्तियां अत्यधिक बढ़ती हैं, तब वे भयानक रूप धारण कर संहार करती हैं.

उन्होंने कहा कि यह एक ही पराशक्ति है, जो परा और अपरा रूपों में विभाजित होकर तीन महाशक्तियों का रूप लेती है. यही कारण है कि हमारे सनातन धर्म में स्त्री शक्ति को सर्वोपरि माना गया है.

सीता-राम, राधा-कृष्ण, गौरी-शंकर और लक्ष्मी-नारायण जैसे युगलों में नारी शक्ति की प्रधानता स्पष्ट है. भारतवर्ष को भी ‘भारत माता’ कहकर संबोधित किया जाता है.

कथा के समापन पर आचार्य शास्त्री ने कहा कि जैसे धन के बिना धनवान, विद्या के बिना विद्वान असंभव है, वैसे ही शक्ति के बिना शक्तिमान होना असंभव है. यही कारण है कि मार्कंडेय पुराण शक्ति का स्तवन करता है और सम्पूर्ण जगत को देवीमय बताता है.

सिद्धाश्रम धाम में श्रद्धालुओं की उपस्थिति में यह कथा अत्यंत भक्तिमय वातावरण में संपन्न हुई.










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