राजा हरिश्चंद्र की तरह सत्य के लिए सब कुछ त्याग दो, तभी बनेगा भयमुक्त समाज : आचार्य पौराणिक

कहा कि आज दुर्भाग्य से सत्य की ही शवयात्रा निकाली जा रही है. चाहे धार्मिक क्षेत्र हो, राजनीतिक गलियारे हों या सामाजिक मंच – हर स्थान पर असत्य को पोषित किया जा रहा है और सत्य की उपेक्षा हो रही है. यही कारण है कि समाज में शांति, प्रेम और भाईचारे का लोप हो रहा है.










                                           





- सिद्धाश्रम धाम में श्री मार्कंडेय पुराण कथा के छठे दिन सत्य की शक्ति और वर्तमान समाज में उसके ह्रास पर चिंतन
- राजा हरिश्चंद्र ने वचन निभाने के लिए खोया सिंहासन, पत्नी-पुत्र और खुद को बेचा – फिर भी नहीं छोड़ा सत्य का मार्ग

बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : सर्वजन कल्याण सेवा समिति सिद्धाश्रम धाम बक्सर द्वारा आयोजित 17 वें धर्मायोजन में मार्कंडेय पुराण कथा के छठे दिन सत्यमार्ग की महिमा पर विशेष प्रवचन दिया गया. आचार्य कृष्णानंद शास्त्री (पौराणिक जी) ने कहा कि इस अखिल सृष्टि में सत्य ही सर्वोच्च है. सत्य ही संपूर्ण लोक का आधार है. मानव समाज के उद्धार का कोई मार्ग है तो वह केवल सत्य है. सत्य से बड़ा कोई यज्ञ, कोई तप, कोई धर्म और कोई दान नहीं है.

उन्होंने कहा कि आज दुर्भाग्य से सत्य की ही शवयात्रा निकाली जा रही है. चाहे धार्मिक क्षेत्र हो, राजनीतिक गलियारे हों या सामाजिक मंच – हर स्थान पर असत्य को पोषित किया जा रहा है और सत्य की उपेक्षा हो रही है. यही कारण है कि समाज में शांति, प्रेम और भाईचारे का लोप हो रहा है.

आचार्य पौराणिक जी ने श्री मार्कंडेय पुराण में आए प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि एक बार स्वर्ग में वशिष्ठ और विश्वामित्र के बीच यह विवाद हुआ कि मृत्यु लोक में सबसे बड़ा सत्यवादी कौन है. वशिष्ठ ने कहा – राजा हरिश्चंद्र, जबकि विश्वामित्र ने इसे अस्वीकार किया.

विश्वामित्र ने हरिश्चंद्र की सत्यनिष्ठा की परीक्षा लेने का निश्चय किया और ब्राह्मण वेश में उनसे संपूर्ण राज्य दान में ले लिया. जब राजा को ज्ञात हुआ कि यह दान छलपूर्वक लिया गया है, तब भी उन्होंने अपने वचन को तोड़ना उचित नहीं समझा. उन्होंने सत्य की रक्षा के लिए अपना राज्य, पत्नी, पुत्र और स्वयं को डोम को बेच दिया, लेकिन वचन से पीछे नहीं हटे.

इस प्रसंग के माध्यम से आचार्य जी ने कहा कि सत्य के प्रति ऐसी ही निष्ठा की आज समाज को सबसे अधिक आवश्यकता है. आज असत्य को पकड़ लेने से विपत्तियों का अंबार लग गया है, जबकि सत्य को अपनाते ही समस्त सद्गुण स्वयं समाहित हो जाते हैं.

उन्होंने स्पष्ट किया कि असत्य से बड़ा कोई पाप नहीं है और सत्य से बड़ा कोई धर्म नहीं. जो व्यक्ति सत्य का पालन करता है, वही सच्चे अर्थों में महापुरुष है. जो सत्यमय जीवन जीता है, वही समाज को भयमुक्त और प्रेमपूर्ण बना सकता है.

श्री मार्कंडेय पुराण का संदेश है कि असत्य को त्यागें, सत्य को अपनाएं. यही मानवता का सच्चा धर्म है. सिद्धाश्रम धाम का यह आयोजन न केवल कथा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक जागरण की दृष्टि से भी बेहद प्रेरणादायक बन गया है. आयोजन में सैकड़ों श्रद्धालु हर दिन कथा का श्रवण कर आत्मबोध और धर्मबोध प्राप्त कर रहे हैं.









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