जब तक हमारे ह्रदय में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म नहीं होगा, तब तक आध्यात्मिक विकास संभव नहीं है. उन्होंने कहा कि भागवत कथा केवल कथा नहीं बल्कि आत्मा का शुद्धिकरण है.
- कथा के चौथे दिन हुआ भगवान श्रीकृष्ण जन्म का आध्यात्मिक वर्णन. श्रद्धालुओं ने जन्मोत्सव की तरह मनाया भावनात्मक क्षण
- जब तक ह्रदय में नहीं होगा भगवान का अवतरण, तब तक जीवन में नहीं आएगी आध्यात्मिक क्रांति– आचार्य रणधीर ओझा
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : नगर के शिवपुरी स्थित काली मंदिर परिसर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन कथा व्यास आचार्य रणधीर ओझा ने भगवान श्रीकृष्ण के जन्म प्रसंग का दिव्य वर्णन किया. इस दौरान श्रद्धालुओं ने भावविभोर होकर कथा के उस क्षण को जन्मोत्सव की तरह हर्षोल्लास से मनाया.
आचार्य रणधीर ओझा ने कहा कि मथुरा, वृंदावन, काशी सहित अन्य तीर्थ स्थलों पर हर वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है. लेकिन जब तक हमारे ह्रदय में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म नहीं होगा, तब तक आध्यात्मिक विकास संभव नहीं है. उन्होंने कहा कि भागवत कथा केवल कथा नहीं बल्कि आत्मा का शुद्धिकरण है.
कथा विस्तार में उन्होंने बताया कि जब पृथ्वी असुरों के अत्याचार से पीड़ित हुई, तो वह संतों के माध्यम से ब्रह्मा के पास गई. ब्रह्मा जी देवताओं के साथ भगवान के पास गए और अवतरण की प्रार्थना की. तब भगवान श्रीकृष्ण रूप में पृथ्वी पर प्रकट हुए.
आचार्य ओझा ने कहा कि मानव का हृदय भी पृथ्वी के समान है. यहां काम, क्रोध, मोह, लोभ, ईर्ष्या जैसे विचार उत्पन्न होते हैं जो जीवन में कंस जैसे विघ्न खड़े करते हैं. इनसे मुक्ति केवल भक्ति और परमात्मा की प्रार्थना से ही संभव है.
उन्होंने देवकी और वासुदेव के प्रसंग का उल्लेख करते हुए कहा कि कंस ने उन्हें जेल में डाल दिया. उनके छह पुत्रों की हत्या कर दी, फिर भी उन्होंने ईश्वर में विश्वास नहीं छोड़ा. अंततः उन्हीं के घर स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया. यह दर्शाता है कि निष्काम भक्ति, तप और समर्पण से ही ईश्वर की प्राप्ति संभव है.
जन्म प्रसंग का वर्णन करते हुए उन्होंने बताया कि जैसे ही श्रीकृष्ण का प्रादुर्भाव हुआ, ब्रह्मांड में सकारात्मक ऊर्जा फैल गई. देवता, पशु-पक्षी, साधु-संत, किन्नर सभी नृत्य करने लगे. स्वर्ग से फूलों की वर्षा हुई और संपूर्ण सृष्टि हर्षित हो उठी.
मंदिर परिसर में उपस्थित श्रद्धालु इस प्रसंग को सुनकर इतने भावविभोर हुए कि उन्होंने कथा के उस पल को वास्तविक जन्मोत्सव की तरह उत्सव के रूप में मना लिया. कथा का यह भावपूर्ण दृश्य श्रद्धालुओं के मन में गहरी छाप छोड़ गया.
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