मंदिर समिति द्वारा आकर्षक सजावट की गई थी. दिन चढ़ने के साथ-साथ श्रद्धालुओं की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई, जिससे मंदिर परिसर में अपार जनसैलाब उमड़ पड़ा. भीड़ को व्यवस्थित रखने के लिए समिति ने 100 स्वयंसेवकों को तैनात किया था, वहीं पुलिस भी बाहर सड़कों पर ट्रैफिक व्यवस्था संभालती दिखी.
- जेष्ठ शुक्ल चतुर्दशी को हुई मां काली की पंचित पूजा, अहले सुबह से देर शाम तक लगा भक्तों का तांता
- महिलाओं ने गेहूं के आटे की सात लवंग वाली रोटी चढ़ा मां को मनाया, 100 स्वयंसेवकों और पुलिस की रही मुस्तैदी
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : नगर के बायपास रोड स्थित ऐतिहासिक बुढ़िया काली मंदिर में सोमवार को मां काली का पंचित पूजा सह वार्षिक पूजन उत्सव श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया गया. जेष्ठ मास की शुक्ल पक्ष चतुर्दशी पर हुए इस विशेष आयोजन में सुबह चार बजे से ही मंदिर परिसर में धार्मिक वातावरण बन गया था. पंचित पूजा के लिए मंदिर के कपाट सुबह 4 बजे खोले गए, जहां से 7 बजे तक विशेष पूजा संपन्न हुई. इसके बाद भक्तों के लिए दर्शन के लिए मंदिर खोल दिया गया, जिसके साथ ही मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी.
पूजा में भाग लेने के लिए सुबह से ही महिलाएं व पुरुष कतारबद्ध होकर मंदिर पहुंचने लगे. मंदिर समिति द्वारा आकर्षक सजावट की गई थी. दिन चढ़ने के साथ-साथ श्रद्धालुओं की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई, जिससे मंदिर परिसर में अपार जनसैलाब उमड़ पड़ा. भीड़ को व्यवस्थित रखने के लिए समिति ने 100 स्वयंसेवकों को तैनात किया था, वहीं पुलिस भी बाहर सड़कों पर ट्रैफिक व्यवस्था संभालती दिखी.
इस पूजा की एक खास परंपरा यह रही कि नगर की महिलाएं गेहूं के आटे को गूंथकर उस पर सात लवंग डालकर रोटी बनाती हैं और इसे मां काली को प्रसाद रूप में चढ़ाती हैं. यह माना जाता है कि इस प्रसाद से मां काली प्रसन्न होती हैं और घर में सुख-शांति व समृद्धि प्रदान करती हैं. दोपहर तक भव्य श्रृंगार और पूजन का सिलसिला चलता रहा, जो लगभग तीन बजे तक चला.
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दर्शन को पहुंचे डॉ राजेश मिश्रा |
मां काली के दरबार में गूंजे वैदिक मंत्र
मंदिर परिसर दिन भर भक्तों से खचाखच भरा रहा. वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच सुबह, दोपहर और शाम को मां काली की आरती की गई. लोग श्रद्धा पूर्वक माथा टेकते हुए अपनी मुरादें मांगते नजर आए. श्रद्धालुओं ने बताया कि यह मंदिर 'नागर वाली काली' के रूप में विख्यात है और मान्यता है कि यहां की पूजा से मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती हैं.
पुरानी परंपराओं से जुड़ा है मंदिर का इतिहास
मंदिर के सदस्य बसंत कुमार ने बताया कि जब बक्सर नगर का विकास नहीं हुआ था, तब एक नीम के पेड़ के नीचे पिंड रूप में देवी की पूजा होती थी. समय के साथ इसे मंदिर का रूप दिया गया. माना जाता है कि एक बार नगर में महामारी फैली थी और तब लोगों ने बुढ़िया काली से प्रार्थना की थी, जिसके बाद नगर को उस विपदा से मुक्ति मिली. इस कारण यह मंदिर नगर माता के रूप में भी प्रसिद्ध है.
श्रृंगार और प्रसाद की दुकानों से सजी गलियां
पूजा के मौके पर मंदिर के चारों ओर श्रृंगार, पूजा सामग्री, नाश्ते व चाट-गोलगप्पों की दर्जनों दुकानें सजी थीं, जहां श्रद्धालु विशेष रूप से महिलाएं खूब खरीदारी करती दिखीं. मंदिर समिति की ओर से जूता-चप्पल रखने की विशेष व्यवस्था की गई थी.
पूरे दिन व्यवस्थाओं में लगे रहे समिति सदस्य
पूरे कार्यक्रम के सफल संचालन में मंदिर समिति के अध्यक्ष प्रदीप राय सहित अशोक सर्राफ, शिव कुमार खेमका, बबलू उपाध्याय, चीकू बाबा, बिट्टू केशरी, राम जी अग्रवाल, संजय चौधरी, दीपक जायसवाल, मनोज कुमार, सुनील कुमार, गोपी वर्मा, अमन वर्मा, अनूप वर्मा, अनिल पटवा, रवि वर्मा, राजा वर्मा, पिंटू केशरी, अनूप गुप्ता, सत्यंम, मुन्ना केशरी समेत दर्जनों सदस्य पूरी तत्परता के साथ व्यवस्था में लगे रहे. श्रद्धालुओं ने भी समिति की व्यवस्थाओं की प्रशंसा की.
यह पूजा नगरवासियों की आस्था और परंपराओं को जीवंत करता है. हर वर्ष की तरह इस बार भी मां काली के दरबार में आस्था की भीड़ उमड़ी और भक्त अपने जीवन में सुख-समृद्धि की कामना के साथ लौटे.
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