उन्हें यह अधिकार दिया जाना चाहिए कि वे अपने खिलाफ झूठ फैलाने वालों पर मानहानि और आपराधिक साजिश का मुकदमा दायर करें. यदि ऐसा नहीं हुआ, तो राजनीतिक प्रतिशोध की यह प्रवृत्ति आगे भी दोहराई जा सकती है.
- राजनीतिक साजिश का पर्दाफाश, निर्दोषों को मिला न्याय
- अब झूठ गढ़ने वालों की जिम्मेदारी तय करना जरूरी: हो उच्चस्तरीय जांच
बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : मालेगांव ब्लास्ट केस में कोर्ट के हालिया निर्णय को एक ऐतिहासिक क्षण माना जा रहा है. इस फैसले ने न सिर्फ निर्दोषों को न्याय दिलाया है, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया है कि ‘भगवा आतंकवाद’ जैसी अवधारणा पूरी तरह से झूठी और राजनीतिक लाभ के लिए रची गई साजिश थी. यह कहना है पूर्व आइआरएस सह वरिष्ठ भाजपा नेता बिनोद चौबे का. उन्होंने कहा कि यह झूठ कांग्रेस शासनकाल में गढ़ा गया ताकि एक विशेष विचारधारा और समुदाय को बदनाम किया जा सके.
श्री चौबे के मुताबिक इस मामले में वर्षों तक निर्दोषों को मानसिक, सामाजिक और कानूनी यातना झेलनी पड़ी. अब जबकि न्यायालय ने उन्हें दोषमुक्त घोषित कर दिया है, यह आवश्यक हो गया है कि जिन लोगों ने सत्ता के दुरुपयोग से यह फर्जी मुकदमा गढ़ा, उनकी जिम्मेदारी तय की जाए. चाहे वे अधिकारी हों, राजनीतिक नेता हों या मंत्री — सभी को कानून के दायरे में लाकर सजा दी जानी चाहिए.
जनता के बीच अब यह संदेश स्पष्ट हो गया है कि सत्ता की लालसा में कैसे झूठ को सच की तरह पेश किया जा सकता है. यह भी जरूरी है कि सरकार इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय न्यायिक जांच कराए. जिन लोगों ने झूठी कहानी रची, उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हो और साजिश के लिए सजा सुनिश्चित की जाए.
इसके साथ ही निर्दोषों को उचित मुआवजा मिलना चाहिए और उन्हें यह अधिकार दिया जाना चाहिए कि वे अपने खिलाफ झूठ फैलाने वालों पर मानहानि और आपराधिक साजिश का मुकदमा दायर करें. यदि ऐसा नहीं हुआ, तो राजनीतिक प्रतिशोध की यह प्रवृत्ति आगे भी दोहराई जा सकती है.
न्याय तभी पूर्ण होगा जब झूठ फैलाने वाले भी कानून के कटघरे में खड़े किए जाएं और सजा पाएंगे. यह फैसला न केवल कानून के सम्मान की जीत है, बल्कि देश के लोकतंत्र के लिए भी एक चेतावनी है — कि अब जनता पहले से कहीं ज्यादा सजग है.
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