राजपुर में कांग्रेस की बढ़ी सिरदर्दी : संजय राम और पंकज राम दोनों के जनाधार से उलझन में पार्टी ..

एक तरफ संजय राम अपनी प्रशासनिक दक्षता और जनसेवा की छवि से जनता के बीच लोकप्रिय हैं, वहीं दूसरी ओर पंकज राम अपने संगठनात्मक अनुभव और शिक्षित छवि से मजबूत उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं. 






                                         


  • दोनों नेताओं का राजपुर में गहरा जनसंपर्क, कांग्रेस में बढ़ी टिकट की दावेदारी.
  • संतोष निराला को कमजोर करने की रणनीति, अब पार्टी के लिए बन रही चुनौती.

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले राजपुर (अनुसूचित जाति) सीट पर कांग्रेस के भीतर समीकरण बेहद दिलचस्प और जटिल हो गए हैं. कांग्रेस ने हाल के दिनों में दो प्रभावशाली नेताओं – संजय राम और पंकज राम – को अपने पाले में शामिल कर राजनीतिक हलचल तेज कर दी है. दोनों ही नेता बसपा और जदयू जैसे दलों से जुड़ चुके हैं और राजपुर क्षेत्र में उनका जनाधार काफी मजबूत माना जाता है. पार्टी की रणनीति थी कि इन दोनों नेताओं के जुड़ने से जदयू के उम्मीदवार और पूर्व मंत्री संतोष निराला के प्रभाव को कमजोर किया जा सके, लेकिन अब यही रणनीति कांग्रेस के लिए सिरदर्द बनती जा रही है.

संजय राम: दो बार मुखिया, 44,800 वोट लाकर बने तीसरी ताकत


संजय राम 48 वर्ष के हैं और जाति से रविदास (अनुसूचित जाति) समुदाय से आते हैं. उन्होंने 2020 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से राजपुर (सु) विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था. सीमित संगठनात्मक समर्थन के बावजूद उन्हें 44,800 वोट प्राप्त हुए थे, जिससे वे क्षेत्र में एक मज़बूत तीसरी ताकत के रूप में उभरे थे. इससे पहले वे देवढ़िया पंचायत के मुखिया के रूप में दो कार्यकाल (2011-2016, 2016-2021) पूरे कर चुके हैं, जिनमें एक कार्यकाल आरक्षित श्रेणी में और दूसरा सामान्य श्रेणी में था.

अपने कार्यकाल के दौरान संजय राम ने पारदर्शी शासन, अनुसूचित जाति कल्याण और ग्रामीण विकास पर विशेष ध्यान दिया. उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में कई जनकल्याणकारी योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू किया. वह एम.ए. पास हैं और सामाजिक न्याय की दिशा में सक्रिय रूप से कार्य करते रहे हैं. उनका प्रभाव केवल अनुसूचित जाति तक सीमित नहीं है, बल्कि कुशवाहा, अन्य अति पिछड़ा वर्ग, पिछड़ा वर्ग और उच्च जातियों तक भी उनका जनसंपर्क मज़बूत माना जाता है. सादगी और अनुशासन के लिए पहचाने जाने वाले संजय राम को कांग्रेस के भीतर एक स्वच्छ छवि वाले उम्मीदवार के रूप में देखा जा रहा है.

पंकज राम: बसपा और जदयू से जुड़ा अनुभव, कांग्रेस में नई भूमिका की उम्मीद


वहीं दूसरी ओर, ठोरी पांडेयपुर निवासी पंकज राम ने हाल ही में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की है. उन्होंने वर्ष 2010 में बसपा के उम्मीदवार के रूप में राजपुर विधानसभा से चुनाव लड़ा था, जिसमें उन्हें करीब 20 हजार वोट प्राप्त हुए थे. उस चुनाव में जदयू के प्रत्याशी और तत्कालीन परिवहन मंत्री संतोष निराला विजयी रहे थे, जबकि छेदीराम दूसरे स्थान पर थे.

राजनीति में पंकज राम का सफर 1998 में बसपा से शुरू हुआ था, जहां वे 2014 तक पार्टी के प्रदेश महासचिव पद पर भी कार्यरत रहे. इसके बाद उन्होंने जदयू का दामन थामा और 2023 तक पार्टी में सक्रिय भूमिका निभाई. पंकज राम एमटेक तक पढ़ाई कर चुके हैं. युवाओं और शिक्षित वर्ग के बीच उनकी लोकप्रियता उन्हें एक सशक्त दावेदार बनाती है.

कांग्रेस में उनके शामिल होने से पार्टी को उम्मीद थी कि वह जदयू और बसपा दोनों के पारंपरिक वोट बैंक को अपनी ओर खींच पाएगी. लेकिन अब जब संजय राम और पंकज राम दोनों ही टिकट के दावेदार बन गए हैं, तो कांग्रेस के भीतर यह सवाल गहराने लगा है कि आखिर टिकट किसे दिया जाए.

कांग्रेस के लिए टिकट चयन बना पेचीदा सवाल


पार्टी सूत्रों का कहना है कि राजपुर सीट से मौजूदा विधायक के टिकट काटने का जोखिम कांग्रेस नहीं लेना चाहती, क्योंकि इससे संगठनात्मक असंतोष बढ़ सकता है. वहीं यदि वर्तमान विधायक का टिकट काटकर नए चेहरों को मौका दिया गया, तो यह जरूरी नहीं कि सारा वोट ट्रांसफर हो जाए. दूसरी तरफ, अगर पार्टी किसी एक को टिकट देती है, तो दूसरे का असंतोष चुनावी समीकरण बिगाड़ सकता है.

राजपुर सीट पर कांग्रेस का लक्ष्य जदयू के उम्मीदवार संतोष निराला को कड़ी टक्कर देना है. लेकिन जिस रणनीति के तहत पार्टी ने संजय राम और पंकज राम जैसे प्रभावशाली नेताओं को जोड़ा था, वही अब दुविधा का कारण बन गई है.

एक तरफ संजय राम अपनी प्रशासनिक दक्षता और जनसेवा की छवि से जनता के बीच लोकप्रिय हैं, वहीं दूसरी ओर पंकज राम अपने संगठनात्मक अनुभव और शिक्षित छवि से मजबूत उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं. यदि पार्टी इन दोनों में से किसी एक को टिकट देती है, तो आंतरिक नाराजगी की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.

राजपुर विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के लिए यह चुनाव अब केवल विरोधी दल से मुकाबला नहीं, बल्कि आंतरिक सामंजस्य की परीक्षा भी साबित होने वाला है. 












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