अधिकारियों की सुविधाएं पहले – जनता की सुरक्षा बाद में! शिक्षा पदाधिकारी का चैंबर बन रहा चकाचक, लेकिन खुला गड्ढा दे रहा हादसे का न्योता ..

इससे भी बड़ा सवाल नागरिकों की सुरक्षा का है. कार्यालय परिसर में बने शौचालय की टंकी का ढक्कन लंबे समय से गायब है, जिसमें गिरकर किसी भी व्यक्ति के दुर्घटनाग्रस्त होने की पूरी आशंका बनी हुई है. खुले गड्ढे के कारण लोग रोजाना खतरे के बिल्कुल पास आ-जा रहे हैं.





                                         



  • चैंबर की साज-सज्जा जोरों पर, PVC इंटीरियर से बनाया जा रहा सुकून वाला ऑफिस
  • इसी परिसर में खुला गड्ढा दुर्घटना को बुलावा, बच्चों और नागरिकों के लिए बना खतरा

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर. शिक्षा विभाग में अनुकंपा नियुक्ति की फ़ाइलें वर्षों तक धूल फांकती रहें तो कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन अधिकारियों की सुविधाओं के मामले में स्पीड गियर तुरंत लग जाता है. इसका ताज़ा उदाहरण जिला शिक्षा पदाधिकारी संदीप रंजन के चैंबर में चल रहा इंटीरियर वर्क है, जो इन दिनों पूरे जोश के साथ कराया जा रहा है. अंदर PVC इंटीरियर डेकोरेशन लग रहा है, ताकि साहब को ऑफिस में बिल्कुल सुकून वाला माहौल मिल सके और काम आराम से निपट सके.

इधर डीईओ के चैंबर की आकर्षक सजावट पर कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है, वहीं दूसरी तरफ कर्मचारियों के बैठने वाली जगह जस की तस पड़ी है. और इससे भी बड़ा सवाल नागरिकों की सुरक्षा का है. कार्यालय परिसर में बने शौचालय की टंकी का ढक्कन लंबे समय से गायब है, जिसमें गिरकर किसी भी व्यक्ति के दुर्घटनाग्रस्त होने की पूरी आशंका बनी हुई है. खुले गड्ढे के कारण लोग रोजाना खतरे के बिल्कुल पास आ-जा रहे हैं.

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इसी परिसर में एक बुनियादी विद्यालय भी स्थित है. यानी छोटे-छोटे बच्चों के लिए भी यह गड्ढा जानलेवा साबित हो सकता है. इसके बावजूद सुरक्षा को दरकिनार कर सबसे पहले डीईओ चैंबर को दुरुस्त और शानदार बनाने पर जोर दिया जा रहा है.

इस मामले में जब जिला शिक्षा पदाधिकारी संदीप रंजन से बात की गई तो उन्होंने कहा कि यह कोई खबर थोड़े ही है. कोई भी व्यक्ति अपना चैंबर बनवा ही सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि वह अपना चैंबर अपने खर्च पर बनवा रहे हैं.

अब सवाल यह उठता है कि चैंबर निजी खर्च पर बन रहा है या सरकारी बजट से — इससे ज्यादा जरूरी यह है कि जनता और बच्चों की सुरक्षा प्राथमिकता में क्यों नहीं है. बक्सर में चर्चा यही है कि अगर शिक्षा विभाग की बाकी व्यवस्थाओं पर भी इसी तरह का ध्यान दिया जाता तो तस्वीर बिल्कुल अलग होती.










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