अधिकारयों की मनमानी से बेसहारा बच्चों का नहीं मिल पा रहा उनका हक ..

19 हज़ार आवेदनों के आलोक में अब तक केवल 464 बच्चों को परवरिश योजना का लाभ मिल पा रहा है. अधिकारियों की कमी के कारण कई इस योजना के लाभ से वंचित रह गए हैं. यही हाल मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना का है. इस योजना के तहत 35 सौ से अधिक आवेदन लंबित पड़े हुए हैं.

- पटना में प्रतिनियुक्ति करा  बक्सर से वेतन उठा रहे हैं अधिकारी
- खस्ताहाली के दौर से गुज़र रही बाल सरंक्षण इकाई, प्रभार के भरोसे चल रहा है विभाग

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: सरकार की ओर से यह प्रयास किया जा रहा है कि बेसहारा बच्चों को मुख्य धारा से जोड़कर उनका विकास किया जाए. हालांकि, सरकार का यह प्रयास धरातल पर नहीं उतर पा रहा है. बताया जा रहा है कि बाल अधिकारों की रक्षा के लिए तैनात अधिकारी  पटना मजे कर रहे हैं और बक्सर से वेतन ले रहे हैं. ऐसे में अनाथ और बेसहारा बच्चों का कोई खेवनहार नहीं है. जिससे कि परेशान मासूमों की सुनवाई नहीं हो रही है.

सरकार द्वारा बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए कई योजनाएं चलाई लेकिन, अधिकारियों व कर्मचारियों की लापरवाही से योजनाओं का लाभ सहित अन्य सुविधाओं से बच्चे वंचित रह जा रहे हैं. इसका उदाहरण अपने जिले में बखूबी देखने को  मिला रहा है. यहां अधिकतर अधिकारी पटना में प्रतिनियुक्ति करा कर राजधानी की आबोहवा का आनन्द ले रहे हैं. वहीं, जरूरतमंद बच्चे इस कोरोना काल में भूखे प्यासे सड़क किनारे खुले आसमान में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं.

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बाल संरक्षण इकाई में अधिकारियों की कमी है. जिन अधिकारियों की पोस्टिंग यहां पर है. उसमें एडीसीपीयू राकेश रंजन, सीपीयू स्वाति संजू, सोशल वर्कर आकांक्षा राय अपनी प्रतिनियुक्ति पटना में करा कर लम्बे समय से वहीं पर रह रहे हैं. इन लोगों को यहां के बच्चों के बारे में कोई चिंता नहीं है. हद तो यह है कि सभी कर्मियों को वेतन जिले से दिया जा रहा है. वहीं, दूसरी ओर 19 हज़ार आवेदनों के आलोक में अब तक केवल 464 बच्चों को परवरिश योजना का लाभ मिल पा रहा है. अधिकारियों की कमी के कारण कई इस योजना के लाभ से वंचित रह गए हैं. यही हाल मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना का है. इस योजना के तहत 35 सौ से अधिक आवेदन लंबित पड़े हुए हैं.

बताया जाता है कि बाल संरक्षण इकाई में तैनात अधिकारी कई विभागों के प्रभार में हैं. बावजूद इसके इन्हें सामाजिक सुरक्षा के कार्यालय तथा बच्चों की सुरक्षा का जिम्मा दिया गया है. ऐसे में लेकिन बच्चों की सुरक्षा की कौन बात करें बच्चों की संख्या का आंकड़ा भी विभाग के पास मौजूद नहीं है कि कितने बालक सरकारी योजनाओं का लाभ पा रहे हैं? यह जानकारी विभाग के प्रभारी पदाधिकारियों के पास नहीं है. इसके अलावे कितने बालक अभी भी ईंट-भट्ठों पर बाल मजदूरी के शिकार हो रहे हैं। आए दिन सड़क किनारे लगने वाले ठेलों पर 14 वर्ष से कम उम्र के मासूम बच्चे काम करते हुए नजर आएंगे। मजे की बात तो यह है कि जिन सड़कों पर यह बच्चे ठेला लेकर निकलते हैं उन सड़कों से प्रतिदिन श्रम से लेकर बाल संरक्षण विभाग के आला अधिकारियों का आना जाना लगा रहता है लेकिन, शायद इन्हें इन बच्चों की पीड़ा से कोई मतलब ही नहीं है।

कहते हैं अधिकारी: 

कर्मियों की कमी के कारण इस तरह की स्थिति उत्पन्न हुई है। हालांकि, जल्द ही इस पर कोई फैसला लिया जाएगा। बच्चों का हित कदापि प्रभावित नहीं होगा।

राजकुमार
निदेशक, समाज कल्याण विभाग,
बिहार












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