तारीख दर तारीख होता रहा घोटाला, अधिकारियों के मुँह पर लगा रहा ताला ..

जिसके बाद राशि का मिलान कर उसे बैंक में जमा कराया जाता है लेकिन, रसीद पर  सहायक कर दरोगा तथा कर दरोगा के हस्ताक्षर कर उसे लोगों को दिया जाता रहा तथा पंजी में तो राशि का संधारण किया गया लेकिन, राशि को बैंक में नहीं जमा कराया गया. 

- कार्यपालक सहायक के सिर पर बना रहा अधिकारियों का हाथ
- वर्षों तक होती रही वसूली बैंक में नहीं जमा कराई गई है राशि

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: नगर परिषद में हुए होल्डिंग टैक्स घोटाले में हर दिन नए खुलासे सामने आ रहे हैं. बताया जा रहा है कि नगर परिषद के अधिकारियों तथा कर्मियों की मिलीभगत यह घोटाला वर्षों तक चलता रहा. लेकिन अधिकारियों ने मामले में मुंह खोलना उचित नहीं समझा. नगर परिषद के सूत्रों की माने तो इस घोटाले के प्रमुख कर्ता-धर्ता कार्यपालक सहायक के सिर पर नगर परिषद के अधिकारियों का हाथ बना रहा जिसके कारण साल दर साल घोटाले की कहानी के नए-नए अध्याय लिखे जाते रहे.

बताया जा रहा है कि इस घोटाले की शुरुआत 1 नवंबर 2016 को हुई थी जब कार्यपालक सहायक के यूज़र आईडी से होल्डिंग टैक्स की रसीद कटनी शुरू हुई. बताया जा रहा है कि 30 जून 2018 तक लगातार कार्यपालक सहायक आशुतोष कुमार सिंह के यूजर आईडी से होल्डिंग टैक्स की रसीद काटी जाती रही जिस पर दरोगा तथा सहायक का दारोगा के हस्ताक्षर बनाकर लोगों को दिए जाते रहे.

बताया जा रहा है कि विभागीय नियमों के तहत प्रतिदिन की जमा राशि को पंजी में संधारित करते हुए घर दरोगा के समक्ष प्रस्तुत करना होता है जिसके बाद राशि का मिलान कर उसे बैंक में जमा कराया जाता है लेकिन, रसीद पर  सहायक कर दरोगा तथा कर दरोगा के हस्ताक्षर कर उसे लोगों को दिया जाता रहा तथा पंजी में तो राशि का संधारण किया गया लेकिन, राशि को बैंक में नहीं जमा कराया गया. 

रजिस्टर में दर्ज है राशि लेकिन, खाते में जमा नहीं:

बताया जा रहा है कि त्रिस्तरीय जांच समिति के द्वारा अपनी जांच में यह बताया गया है कि तत्कालीन कर दारोगा (अब स्वर्गीय) मनराज सिंह के रजिस्टर की गणना करने पर कुल राशि 15 लाख 37 हज़ार 874 रुपये,  सहायक कर दारोगा के रजिस्टर में 19 लाख 65 हज़ार 28 रुपये तथा कार्यपालक सहायक के रजिस्टर में 44 लाख 71 हज़ार 483 रुपये की राशि संधारित की गयी है. इसके अलावे तात्कालिक कर दारोगा के द्वारा 25.03.2017 से पहले ली गयी राशि जो विलंब से जमा हुई वह पंजी में 16 लाख 10 हज़ार 203 रुपये दर्ज है. इस प्रकार कुल राशि 60 लाख 81 हज़ार 686 रुपये हुए लेकिन, बैंक खाते में केवल 29 लाख 20 हज़ार 946 रुपये ही जमा किए गए हैं. ऐसे में 31 लाख 60 हज़ार 740 रुपये की राशि का हिसाब नहीं मिल रहा है.

मामला सामने आने के बाद बंद की गयी कार्यपालक सहायक की यूजर आईडी, ठंडा पड़ा मामला तो फिर हुई शुरु:

गबन के इस मामले में केवल निचले स्तर के अधिकारियों नहीं बल्कि बड़े अधिकारियों की भी मिलीभगत स्पष्ट परिलक्षित होती है. बताया जा रहा है कि बड़ी राशि के गबन का मामला सामने आने के बाद 30 जून 2018 को कार्यपालक सहायक आशुतोष कुमार सिंह की यूजर आईडी को बंद कर दिया गया. लेकिन, बाद में संभवत: मैनेजमेंट का खेल पूरा हो जाने के बाद 1 सितंबर 2019 को एक बार पुनः कार्यपालक सहायक की यूजर आईडी को शुरू कर दिया गया तथा उसके द्वारा पुनः अपनी आईडी से होल्डिंग टैक्स लेने का काम शुरू कर दिया गया. बताया जा रहा है कि 1 सितंबर 2019 से 6 जून 2020 तक कुल 12 लाख 84 हज़ार 562 रुपये का होल्डिंग टैक्स वसूला गया था. मुख्य पार्षद के द्वारा ही मामला उजागर किए जाने के बाद सहायक कर दारोगा के द्वारा उक्त राशि को बैंक में जमा करा दिया गया है.

तो क्या अधिकारी कर रहे मामले की लीपापोती का प्रयास?

कार्यपालक पदाधिकारी सुजीत कुमार जांच रिपोर्ट के लीक हो जाने से बेहद आहत दिखाई दे रहे हैं. उनका कहना है कि त्रिस्तरीय समिति की जांच रिपोर्ट के आधार पर ही किसी को दोषी नहीं बनाया जा सकता. उन्होंने कहा कि वह मामले की पुनः जांच करवाएंगे तथा जो बात सामने आएगी उसके आधार पर आगे कोई निर्णय लिया जाएगा. हालांकि, कार्यपालक पदाधिकारी के पुनः जांच कराए जाने के वक्तव्य को स्पष्ट तौर पर मामले में लीपापोती का प्रयास माना जा रहा है.

कहती हैं मुख्य पार्षद:

मामले की शिकायत कार्यपालक पदाधिकारी से की गई थी. उनके स्तर से जांच कराई जा रही है. जो भी जांच रिपोर्ट सामने आती है उसके आलोक में कार्रवाई की जाएगी. किसी भी भ्रष्टाचारी को नहीं बख्शा जाएगा.

माया देवी,
मुख्य पार्षद











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