पिछले वर्ष भी सरकार तक पहुंची थी डीडीसी के भ्रष्टाचार की गूंज, स्थानीय अधिकारियों ने मामले को दबाया ..

ऐसा हो ना सका और जांच का जिम्मा अपर समाहर्ता चंद्रशेखर झा एवं बक्सर के तत्कालीन मुख्यालय डीएसपी अरुण कुमार को मिला बताया जा रहा है कि बाद में व्यापक पैमाने पर मैनेजमेंट का खेल चला और जांच ठंडे बस्ते में चली गई. आज तक इस जांच की रिपोर्ट सामने नहीं आ सकी है.
डीआरडीए कार्यालय में पसरा सन्नाटा

 

- तकनीकी सहायकों तथा कनीय अभियंताओं ने अवर सचिव सदय कुमार सिन्हा को पत्र लिख कर दी थी मामले की जानकारी
- अपर समाहर्ता चंद्रशेखर झा तथा तत्कालीन मुख्यालय डीएसपी ने की थी मामले की जांच
- सूत्रों ने कहा, खुन्नस में पुराने सेवक ने डीडीसी के नए सेवक को फंसाने की रची शाजिश


बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर: मनरेगा से जुड़े मामले की लीपापोती करने तथा जांच के नाम पर भयादोहन करने का यह खेल जो बुधवार की रात उजागर हुआ यह कोई नया मामला नहीं है. बल्कि, पहले भी मनरेगा में भ्रष्टाचार के मामले सामने आए हैं. पिछले ही वर्ष नवंबर माह में तकनीकी सहायक तथा कनीय अभियंताओं ने डीडीसी के नाम पर वसूली करने का आरोप एक लेखापाल मुकेश कुमार पर लगाते हुए अवर सचिव सदय सिन्हा को पत्र लिखकर मामले में हस्तक्षेप करने की बात कही थी. उन्होंने यह भी कहा था कि उन्हें डर है कि उनकी नौकरी पर कोई खतरा ना हो जाए. उन्होंने कहा था कि इस मामले की जांच विजिलेंस से कराई जाए. किसी भी स्थानीय अधिकारी को जांच का जिम्मा नहीं दिया जाए हालांकि, ऐसा हो ना सका और जांच का जिम्मा अपर समाहर्ता चंद्रशेखर झा एवं बक्सर के तत्कालीन मुख्यालय डीएसपी अरुण कुमार को मिला बताया जा रहा है कि बाद में व्यापक पैमाने पर मैनेजमेंट का खेल चला और जांच ठंडे बस्ते में चली गई. आज तक इस जांच की रिपोर्ट सामने नहीं आ सकी है.


अपने शिकायती पत्र में कनीय अभियंता तथा सहायकों ने बताया था कि  नियमित रूप से  भ्रष्टाचार में फंसाने की धमकी देकर उनसे डीडीसी के नाम पर रुपयों की वसूली की जाती रही है. बताया जा रहा है कि यह वसूली  उप विकास आयुक्त के नजदीकी रहे ग्रामीण विकास अभिकरण में पदस्थापित लेखापाल मुकेश कुमार के द्वारा की जाती रही है. कनीय अभियंता और पंचायत तकनीकी सहायकों ने सीधे ने बिहार सरकार के अवर सचिव सदय कुमार सिन्हा को इस मामले से अवगत कराया था जिसके आलोक में उन्होंने तत्कालीन जिलाधिकारी राघवेन्द्र सिंह को मामले की जांच करा प्रतिवेदन उपलब्ध कराने का निर्देश दिया.

स्थानीय पदाधिकारियों से जताया था डर, फिर भी दी गयी उन्ही को जिम्मेदारी:

अवर सचिव के द्वारा जांच के निर्देश दिए जाने के बाद जांच की जिम्मेवारी अपर समाहर्ता एवं डीएसपी मुख्यालय को सौंपी गई. हालांकि, कनीय अभियंता और पंचायत तकनीकी सहायकों ने को स्थानीय पदाधिकारियों से डर तथा मामले में लीपापोती होने की आशंका व्यक्त की थी. इसलिए उन्होंने सीधे विजिलेंस से इसकी जांच कराने की मांग की थी. 

बताया था कैसे दी जाती है धमकी:

कनीय अभियंता और पंचायत तकनीकी सहायकों ने अवर सचिव को लिखा था कि वसूली करने वाले कर्मी मुकेश के द्वारा कहा जाता है कि मैं उप विकास आयुक्त की छत्रछाया में हूं. मैं उनका रिश्तेदार हूं, रुपये समय पर दो नहीं तो उप विकास आयुक्त के द्वारा योजना जांच कर गलत प्रतिवेदन लिखकर बर्खास्त करा दिया जाएगा. कर्मियों ने यह भी बताया था कि उनके द्वारा ऐसा कराया भी गया है और गलत जांच प्रतिवेदन के आधार पर उन सभी से अनेक बार राशि की उगाही की गई है.
बंद पड़ा डीडीसी का कार्यालय


डीडीसी पर पहले भी लगे हैं कई आरोप:

डीडीसी पर भ्रष्टाचार के पहले भी कई आरोप लग चुके हैं. हालांकि, कई कारणों से वह खुल कर सामने नहीं आ पाते. सूत्रों की माने तो जिले के कई ठेकेदारों से भी वसूली के किस्से भी सदैव चर्चा में रहते हैं. नाम ना छापने की शर्त पर एक अधिकारी ने बताया कि, सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाजल जीवन हरियाली के प्रचार प्रसार के लिए नियमों को ताक पर रखते हुए इन्होंने अपने किसी चहेते एनजीओ संचालक को ठीका दे दिया था, जिसकी शिकायत जिलाधिकारी तक पहुंचने पर जिलाधिकारी ने इन्हें फटकार लगाई थी.

इंडियन बैंक के पीछे आवास था वसूली का अड्डा, बाद में धर्मेंद्र को मिल गई जिम्मेदारी:

कनीय अभियंता और पंचायत तकनीकी सहायकों ने कहा था कि, उन सभी से यह अवैध राशि मुकेश कुमार के द्वारा इंडियन बैंक के पीछे स्थित आवास पर की जाती है. कहा जाता है कि कार्यालय आने पर जिलाधिकारी देख लेंगे. सूत्रों के द्वारा बताया जा रहा है कि बाद में मुकेश का नाम सार्वजनिक होने पर अब वसूली की जिम्मेदारी धर्मेंद्र कुमार को मिल गई. संभवतः इसी बात की खुन्नस ने धर्मेंद्र कुमार को विजिलेंस के हाथों चढ़ा दिया सूत्रों के अनुसार किसी ने धर्मेंद्र कुमार के विरुद्ध ताना-बाना बुन दिया.

ऑडिट के समय होती है 20-20 हजार की वसूली

कनीय अभियंता और पंचायत तकनीकी सहायकों ने कहा है कि जब ऑडिट के लिए राज्य सरकार से टीम आती है तो उस समय भी डीडीसी के इस सेवक द्वारा द्वारा डरा-धमकाकर प्रति पंचायत रोजगार सेवक तथा मुखिया से 20-20 हजार रुपये की वसूली की जाती है और कहा जाता है कि ये सभी राशि ऑडिट टीम तथा उप विकास आयुक्त को मिलेगी. 

वसूली के पैसों से खरीदी गई है 80 लाख रुपये की जमीन:

कनीय अभियंता और पंचायत तकनीकी सहायकों ने बताया था कि, वसूली के पैसों से समाहरणालय के समीप ही 80 लाख रुपयों की कीमत की जमीन खरीदी गई है. विश्वस्त सूत्रों के द्वारा बताया जा रहा है कि यह जमीन मुकेश ने अपनी पत्नी के नाम पर खरीदी है तथा यह बताया है कि, बाद में वह इसे बेचकर डीडीसी को पैसे दे देगा. किसी बड़े पद प्रशासनिक पदाधिकारी और भ्रष्टाचार के इस तरह के आरोप लगने के बाद प्रशासनिक महकमे में तो हड़कंप मच ही गया था. बाद में मामले में मुकेश कुमार ने या जवाब दिया था कि यह जमीन तथा मकान उसने 10 लाख में खरीदा है. जिसमें उसने अपने भाई तथा बहनों से सहयोग लिया है. हालांकि, समाहरणालय के निकट 10 लाख रुपये में जमीन मिलना कहीं से भी पचने लायक बात नहीं है.















Post a Comment

0 Comments