यह सामने आता है कि वर्ष 1995 के चुनाव में सबसे अधिक 30 प्रत्याशियों ने अपना भाग्य आजमा आया था. उसी चुनाव में सबसे अधिक 60 फीसदी मतदान हुआ था. अन्य चुनाव में 50 प्रतिशत वोटर बूथ तक नहीं पहुंच पाये है. यह प्रशासन व प्रत्याशी दोनों के लिए चुनौती है.
-1995 के चुनाव में सबसे अधिक 30 प्रत्याशियों थे मैदान में, इसी चुनाव में सबसे अधिक 60 फीसदी हुआ था मतदान.
- पिछले चुनाव में शंभू नाथ यादव ने भारी मतों से दर्ज की थी जीत
बक्सर टाॅप न्यूज, बक्सर: चुनाव रणबिगुल बजने के बाद प्रत्याशियों ने अब अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. ताकी अधिक से अधिक मतदाताओं को अपने पक्ष में कर सके. निर्वाचित होकर विधानसभा में अपनी धमक दिखा सके. ब्रह्मपुर विधानसभा की स्थिति देखी जाये. तो हर प्रत्याशी अपने आप को दूसरे से बेहतर मानते है. हालांकि, कौन बेहतर है इसका निर्णय आगामी 28 अक्टूबर को जनता करेगी. यदि पूर्व के चुनावी आंकड़ों को देखा जाये. तो यह सामने आता है कि वर्ष 1995 के चुनाव में सबसे अधिक 30 प्रत्याशियों ने अपना भाग्य आजमा आया था. उसी चुनाव में सबसे अधिक 60 फीसदी मतदान हुआ था. अन्य चुनाव में 50 प्रतिशत वोटर बूथ तक नहीं पहुंच पाये है. यह प्रशासन व प्रत्याशी दोनों के लिए चुनौती है.
कांग्रेस जीती है पांच बार:
अब तक हुये चुनाव में जनता दल व राजद के प्रत्याशी पांच बार निर्वाचित होने में सफल रहे है. वहीं कांग्रेस के प्रत्याशी भी पांच बार अपना परचम लहराने में कामयाब रहे हैं. दो बार भाजपा, दो बार निर्दलीय व दो बार अन्य पार्टी के उम्मीदवारों को जीत नसीब हुई है. राजद ने अपना दबदबा कायम रखने में सफल है। वहीं कांग्रेस की राजनीति हासिए पर चली गई है.
पांच बार रहा भूमिहारों का कब्जा:
ब्रह्मपुर विधानसभा क्षेत्र भूमिहार बहुल माना जाता है. इसी का परिणाम है कि यहां सबसे अधिक पांच बार भूमिहार जाति के उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है. वर्ष 1967 व 69 में सूर्य नारायण शर्मा, 1977 में रामाकांत ठाकुर, 1990 में स्वामीनाथ तिवारी व 2010 में दिलमणी देवी. तीन बार ब्राह्मणों के कब्जें में यह सीट रही. 1972, 1980 व 1985 में ऋषिकेष तिवारी विजयी रहे थे. 1952 व 57 के चुनाव में राजपुर प्रत्याशी ललन सिंह इस सीट पर विजयी रहे थे. यह राजपुत विरादरी से थे.1962 में बुद्धिनाथ यादव व 2015 में शंभुनाथ यादव के पास यह सीट रही. अतिपिछड़ा विरादरी से संबंध रखने वाले अजीत चौधरी तीन बार इस सीट पर अपना दबदबा बनाये रखा
सिंबल के चक्कर में हुई जीत नसीब:
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि देश की आजादी के बाद उतनी साक्षरता नहीं थी. साथ ही 1967 तक लोकसभा व विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे।. वर्ष 1962 के चुनाव में लोकसभा प्रत्याशी कमल सिंह का चुनाव चिन्ह कमल छाप था. वहीं ब्रह्मपुर विधानसभा के प्रत्याशी बुद्धिनाथ यादव को गुलाब का फूल चुनाव चिन्ह मिला था. जानकारी के अभाव में लोग चिन्ह समझ नहीं पाये. इसका फायदा बुद्धिनाथ यादव को मिला और उन्हें जीत नसीब हुई. हालांकि वर्ष 2015 के चुनाव में शंभुनाथ यादव ने रिकार्ड वोट से जीत हासिल की.
वर्ष कुल मतदाता मतदान प्रतिशत प्रत्याशी
1952 57274 22041 38 10
1957 66972 23666 35 6
1962 94119 38494 40 6
1967 102550 44394 43 10
1969 105924 52546 49 7
1972 114936 57484 50 11
1977 138706 53244 38 10
1980 159006 78428 49 11
1985 171735 86959 50 12
1990 192978 109406 56 17
1995 184079 112435 61 30
2000 190958 112742 59 19
2005 234646 101471 43 14
2005 219505 92061 41 16
2010 263489 125987 47 25
2015 316046 125987 57 13
: नवीन पाठक की रिपोर्ट
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