जीवन का आधार है भागवत, श्रवण से निर्मल होता हृदय: आचार्य बद्रीनाथ वनमाली ..

कलिकाल में कल्मश हरण की क्षमता अगर कहीं है तो वह केवल भागवत में ही है. ये बातें श्री लक्ष्मी प्रपन्न जियर स्वामी जी महाराज के शिष्य श्रीमद जगद्गुरु रामानुजाचार्य बद्रीनाथ वनमाली स्वामी ने कही. स्वामी जी श्री लक्ष्मी नरसिंह मंदिर काशी से पधारे हुए हैं जिन के श्री मुख से श्रीमद् भागवत कथा श्री त्रिदंडी स्वामी जी महाराज समाधी स्थल मंदिर चरित्रवन में प्रतिदिन 2:00 बजे से 5:00 बजे शाम को हो रही है. 





- त्रिदंडी स्वामी के समाधि स्थल पर आयोजित हुआ है अनुष्ठान व कथा का कार्यक्रम 
- कहा, भागवत है भगवान का स्वरूप लोगों के हृदय में संस्कार का करता है संचार
 
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: जीवन का आधार ही भागवत है. भागवत भक्तों का चरित्र है. भागवत भगवान के गुणों की चर्चा है, भगवान की आराधना है, भगवान का स्वरूप है, साक्षात भगवान की वांग्मयी विग्रह हैं. कलिकाल में कल्मश हरण की क्षमता अगर कहीं है तो वह केवल भागवत में ही है. ये बातें श्री लक्ष्मी प्रपन्न जियर स्वामी जी महाराज के शिष्य श्रीमद जगद्गुरु रामानुजाचार्य बद्रीनाथ वनमाली स्वामी ने कही. स्वामी जी श्री लक्ष्मी नरसिंह मंदिर काशी से पधारे हुए हैं जिन के श्री मुख से श्रीमद् भागवत कथा श्री त्रिदंडी स्वामी जी महाराज समाधी स्थल मंदिर चरित्रवन में प्रतिदिन 2:00 बजे से 5:00 बजे शाम को हो रही है. 





अपनी कथा में उन्होंने कहा कि, भागवत संपूर्ण कल्मश का हरण कर मनुष्य के पास एक स्वच्छ हृदय प्रदान करती हैं और स्वच्छ हृदय से संस्कार संगठित होते हैं संस्कारों के संगठित होने से विचारों का प्रवाह शुभ होता है विचारों के शुभ प्रभाव से संकल्पों में शक्ति आती है और संकल्पों की शक्ति से परमात्म पथ सुगम हो जाता है. मनुष्य समाज के लिए देश के लिए स्वयं के लिए सदैव शुभ ही सोचता है और शुभ करता भी है. संस्कार भक्तों के चरित्र अवगाहन से आता है और भक्तों का चरित्र ही भागवत है. भक्तों के चरित्र के श्रवण से बुद्धि निर्मल होती है, पथ का ज्ञान होता है, मन में आद्रता आती है और मनुष्य क्रियाशील हो जाता है. वह सदैव परमात्मा की तरफ अपने प्रत्येक पग को अग्रसारित करने का प्रयास करता है. उन्होंने कहा कि, संस्कार एक बीज की भांति है अगर गुप्त भी पड़ी हुई है तो समय आने पर या उसे शुभ समय प्राप्त होने पर अनुकूल आद्रता प्राप्त होने पर तुरंत अंकुरित होकर के बाहर आए और उस व्यक्ति को शुभ पथ पर अग्रसर करा दें. जैसे आत्म देव जी के अंदर शुभ संस्कार रहे तो गोकर्ण जी के उपदेशों से अभी सिंचित होकर परमात्म पथ पर निकल गए लेकिन, धुंधली के अंदर संस्कार के बीज नहीं थे उसने कभी साधु संग नहीं किया, कभी संतों का समागम नहीं किया भक्तों के चरित्र का अवगाहन नहीं किया तो अंततः उसे अंधकूप प्राप्त हुआ. संस्कार का आधान बच्चों में होना ही चाहिए कभी हो सकता है संभवत कोई गलत रास्ते पर चला जाए गलत विचारों के गिरफ्त में आ जाए फिर भी अगर उसके अंदर संस्कारों का आधान किया गया है तो उचित व्यक्ति से, संत से, महात्मा से कभी भी समागम होने पर उसके अंदर के संस्कार जग जाएंगे और व्यक्ति शुभ पथ पर अग्रसर हो जाएगा. इसलिए संस्कार ही समाज की नींव है.

यह आयोजन श्री त्रिदंडी स्वामी जी महाराज की पुण्यतिथि के शुभ अवसर पर किया गया है जिसमें यज्ञ अनुष्ठान और कथा का आयोजन किया गया है. कार्यक्रम के आयोजक श्रीमद जगद्गुरु रामानुजाचार्य अयोध्या नाथ स्वामी जी महाराज हैं. उक्त अवसर पर अन्य महात्मा गण पधारे हुए हैं. जिसमें प्रयाग से मुक्तिनाथ स्वामी, हरिद्वार से वैकुंठनाथ स्वामी तथा वृंदावन से चतुर्भुज स्वामी के अतिरिक्त देश के अन्य भागों से भी साधु- महात्मा गण पधारे हुए हैं.











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