भक्ति योग से बढ़कर मानव जीवन के कल्याण का दूसरा श्रेष्ठ साधन कोई नहीं: जीयर स्वामी

शुकदेवजी महाराज ने परिक्षित को बताया कि संसार में भगवान की प्राप्ति के लिए, व्यक्ति के कल्याण के लिए, उद्धार के लिए  अलग अलग साधन बताए गए हैं इसके लिए भक्ति योग बताया गया है. भक्ति योग सबसे श्रेष्ठ है, सबके लिए है, सबके लिए सहज, सरल, सुलभ भी है. इससे बढ़ करके कोई श्रेष्ठ साधन नही है. भगवान के प्रति प्रेम रखना, होना ही भक्ति योग है. यह कहना है त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के शिष्य जीयर स्वामी जी महाराज का. 


 





- त्रिदंडी स्वामी के कृपा पात्र शिष्य जीवन स्वामी के द्वारा हो रहा प्रवचन
- बताया, जीवन के कल्याण के लिए हैं कई अलग-अलग साधन

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: शुकदेवजी महाराज ने परिक्षित को बताया कि संसार में भगवान की प्राप्ति के लिए, व्यक्ति के कल्याण के लिए, उद्धार के लिए  अलग अलग साधन बताए गए हैं इसके लिए भक्ति योग बताया गया है. भक्ति योग सबसे श्रेष्ठ है, सबके लिए है, सबके लिए सहज, सरल, सुलभ भी है. इससे बढ़ करके कोई श्रेष्ठ साधन नही है. भगवान के प्रति प्रेम रखना, होना ही भक्ति योग है. यह कहना है त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के शिष्य जीयर स्वामी जी महाराज का. वह समाधि स्थल पर आयोजित कथा पाठ के दौरान श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे. इस दौरान उनके शिष्य आचार्य बद्रीनाथ वनमाली जी महाराज ने भी भागवत कथा का पाठ किया



जीयर स्वामी जी ने कहा कि, हमारे भीतर जो चिंगारी है, हमारे भीतर जो प्रकाश है, हमारे भीतर जो ज्ञान है, वैराग्य है उन ज्ञान का वैराग्य का प्रेम का तेज का जगत में प्रैक्टिकल करना अपने जीवन को शांतिमय जीते हुए हर परिस्थिति में अपने दिल को, अपने दिमाग को, उन परमात्मा में लगाए रखना यहीं श्रेष्ठ है. परमात्मा का ध्यान करना ही भक्ति योग है. यहीं सबसे श्रेष्ठ है.

अपनी मर्यादा का नहीं करें त्याग:

जीयर स्वामी ने अपने प्रवचन के दौरान बताया कि, शुकदेवजी महाराज परीक्षित से कहते हैं कि संसार में जितनी वस्तुएं हैं वह वस्तु प्रकृति के अधीन है. वह प्रकृति प्रकृति पुरूष के अधीन है. जिसको हम लोग परमात्मा कहते हैं. यदि परमात्मा का वरण करते हैं,अच्छे आचरण से रहते हैं तो बिना प्रयास के ही  हमें प्रकृति की व्यवस्था प्राप्त ही हो जाएगी. नही भी प्रयास करने से प्राप्त हो जाएगी. जैसे हमें नही भी प्रयास करने से रोग हमें घेर लेता है उसी प्रकार हम नही भी प्रयास करेंगे तो हमे सुख प्राप्त होगा. इसलिए हमें अपनी मर्यादा, अपनी संस्कृति,अपने सदव्यवहार का त्याग नही करना चाहिए. अनीति, अन्याय, बेईमानी पूर्वक लोग धन कमाते हैं सुख शांति के लिए पर कितने लोगों को मिलता है पर ठीक उसके विपरीत ही हो रहा है.











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