विश्व प्रसिद्ध अनूठा पंचकोसी मेला आज से शुरु ..

5 से 9 दिसम्बर तक आयोजित मेला का पहला पड़ाव बक्सर के चरित्रवन से एक कोस की दूरी पर मौजूद अहिरौली स्थित अहिल्या स्थान पर होता है. यहां जाने से पहले साधु संतों के साथ श्रद्धालुओ के जत्थे ने रामरेखा घाट में पवित्र गंगा में स्नान की तथा यात्रा की शुरुआत की. मान्यताओं के अनुसार पहले पड़ाव अहिरौली में अहिल्या माता की पूजा आदि के बाद पुआ पकवान का भोग लगाया जाता है. कहते हैं यहां गौतम ऋषि का आश्रम मौजूद था. 


- पांच दिनों तक चलनेवाले मेला में पांच स्थानों पर पांच प्रकार के भोजन ग्रहण की है परम्परा
- हर पड़ाव पर सुरक्षा और सुविधाओं के लिए गए हैं व्यापक प्रबंध

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : बक्सर की पहचान बन चुकी पांच दिवसीय पंचकोसी यात्रा की शनिवार को अहिरौली स्थित पहले पड़ाव से शुरुआत हो गई है. अपने आप में अनूठे इस मेला में पांच दिनों में पांच कोस की यात्रा कर पांच अलग-अलग प्रकार के भोग लगाने की परंपरा है. इस मेले में हर साल उमड़ने वाली लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए जिला प्रशासन द्वारा हर पड़ाव पर सुरक्षा और सुविधाओं के व्यापक प्रबंध किए गए हैं.



       
विश्व मे अन्यत्र आयोजित होने वाले मेलों से हटकर इसकी एक अलग ही पहचान है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बक्सर के चरित्रवन में अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद रवाना होने से पहले प्रभु श्रीराम ने महर्षि विश्वामित्र के आश्रम से पांच कोस के दायरे में रहने वाले पांच ऋषियों से आशीर्वाद ग्रहण किया था. इसके लिए प्रभु राम ने पांचों ऋषियों के यहां एक-एक रात व्यतीत किया था. तब ऋषियों द्वारा प्रभु राम को प्रत्येक दिन ऋषि के आश्रम में अलग-अलग प्रकार के खाद्य पदार्थ भोग लगाने के लिए दिए थे. उसी परम्परा का तब से अनुसरण करते हुए बक्सर में पंचकोसी मेला आयोजित करने की परंपरा चली आ रही है. 5 से 9 दिसम्बर तक आयोजित मेला का पहला पड़ाव बक्सर के चरित्रवन से एक कोस की दूरी पर मौजूद अहिरौली स्थित अहिल्या स्थान पर होता है. यहां जाने से पहले साधु संतों के साथ श्रद्धालुओ के जत्थे ने रामरेखा घाट में पवित्र गंगा में स्नान की तथा यात्रा की शुरुआत की. मान्यताओं के अनुसार पहले पड़ाव अहिरौली में अहिल्या माता की पूजा आदि के बाद पुआ पकवान का भोग लगाया जाता है. कहते हैं यहां गौतम ऋषि का आश्रम मौजूद था. 



दूसरा पड़ाव यहां से एक कोस दूर नदाव स्थित नारद आश्रम पर होता है, जहां नारद ऋषि का आश्रम था. यहां खिचड़ी का प्रसाद ग्रहण किया जाता है. तीसरे दिन नदांव से एक कोस दूर भभुअर में भार्गव सरोवर पर श्रद्धालु पहुंचते हैं. मान्यता है कि यहां भार्गव ऋषि का आश्रम था, जहां प्रभु ने चूड़ा दही का भोग लगाया था. वहीं, चौथा पड़ाव एक कोस दूर नुआंव स्थित सरोवर के तट पर होता है. धर्म शास्त्रों के अनुसार यहां उद्दालक ऋषि का आश्रम था और प्रभु ने यहां सत्तू मूली का भोग ग्रहण किया था. जबकि पांचवा और अंतिम पड़ाव बक्सर के चरित्रवन में महर्षि विश्वामित्र आश्रम के इर्द गिर्द लिट्टी चोखा के भोग के साथ पंचकोसी यात्रा पूर्ण होती है. पांच दिवसीय यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव बक्सर का चरित्रवन होता है. इसमें शामिल होने के लिए न सिर्फ राज्य के कई जिलों बल्कि यूपी और झारखंड से भी प्रति वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर शामिल होते हैं. अंतिम पड़ाव के दिन विधि व्यवस्था बनाए रखना प्रशासन के लिए कड़ी चुनौती के समान होती है, जिसके लिए प्रशासन को अपनी पूरी ताकत झोंक देनी पड़ती है.











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