पृथ्वी के उद्धार के लिए श्री हरि ने लिया अवतार : डॉ. सुरेश शास्त्री

नगर  के नया बाजार स्थित श्री सीताराम विवाह महोत्सव आश्रम में पूज्य संत नारायण दास भक्तमाली (मामा जी) महाराज के 13 वें निर्वाण दिवस सह प्रिया- प्रियतम महोत्सव के दौरान भक्तमाल मूल पाठ के सामूहिक गायन से कार्यक्रम के दूसरे दिन की शुरुआत की गई. इस दौरान दोपहर 2:00 बजे  सायं 6:00 बजे तक भागवत कथा व्यास डॉ. सुरेश शास्त्री जी महाराज (वृंदावन) ने वराह अवतार की कथा सुनाई. 




- प्रिया-प्रियतमा महोत्सव के द्वितीय दिवस पर वाराह कथा सुन अभिभूत हुए श्रद्धालु
- दोपहर 2:00 से संध्या 6:00 बजे तक बह रही भागवत कथा रसधार

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: नगर  के नया बाजार स्थित श्री सीताराम विवाह महोत्सव आश्रम में पूज्य संत नारायण दास भक्तमाली (मामा जी) महाराज के 13 वें निर्वाण दिवस सह प्रिया- प्रियतम महोत्सव के दौरान भक्तमाल मूल पाठ के सामूहिक गायन से कार्यक्रम के दूसरे दिन की शुरुआत की गई. इस दौरान दोपहर 2:00 बजे  सायं 6:00 बजे तक भागवत कथा व्यास डॉ. सुरेश शास्त्री जी महाराज (वृंदावन) ने वराह अवतार की कथा सुनाई. 


उन्होंने बताया कि ब्रह्मा से सृष्टि क्रम प्रारंभ करने की आज्ञा पाए हुए स्वयंभू मनु ने पृथ्वी को प्रलय के एकार्णव में डूबी हुई देखकर , उनसे प्रार्थना की कि आप मेरे और प्रजा के रहने के लिए पृथ्वी के उद्धार का प्रयत्न करें, जिससे मैं आपकी आज्ञा का पालन कर सकूं. ब्रह्मा जी इस विचार में पड़कर कि पृथ्वी तो रसातल में चली गई है, इसे कैसे निकाला जाए? वह सर्वशक्तिमान श्रीहरि की शरण में गये, उसी समय विचारमग्न ब्रह्मा जी की नाक से अंगुष्ठप्रमाण एक वराह बाहर निकला और क्षण भर में पर्वताकार विशाल रूप गजेंद्र सरीखा होकर गर्जन करने लगा. सूकर रूप भगवान पहले तो बड़े वेग से आकाश में उछले. उनका शरीर बड़ा कठोर था, त्वचा पर कड़े कड़े बाल थे, सफेद दाढ़ें थी, उनके नेत्रों से तेज निकल रहा था, उनकी दाढ़ी भी अति कर्कश थी, फिर अपने वज्रमय पर्वत के समान कठोर - कलेवर से उन्होंने जल में प्रवेश किया. बाणों के समान पैने खुरों से जल को चीरते हुए वे जल के पार पहुंचे. रसातल में समस्त जीवो की आश्रयभूता पृथ्वी को उन्होंने वहां देखा. पृथ्वी को वे दाढ़ों पर लेकर बाहर आए. जल से बाहर निकलते समय उनके मार्ग में विघ्न डालने के लिए महा पराक्रमी हिरण्याक्ष ने जल के भीतर ही उन पर गदा से प्रहार करते हुए आक्रमण दिया. दोनों का भयंकर युद्ध हुआ, भगवान ने उसे लीला पूर्वक ही मार डाला. श्वेत दाढ़ों पर पृथ्वी को धारण की किए जल से बाहर निकले हुए तमाल वृक्ष के समान नीलवर्ण वराह भगवान को देखकर ब्रह्माजी को निश्चय हो गया यह भगवान ही हैं.



बता दे कि, श्री सीताराम विवाह महोत्सव की विधि तहत 28 फरवरी को मटकोर एवं 1 मार्च को श्री सीताराम विवाह महोत्सव संपन्न होगा. कोरोना काल के मद्देनजर पूज्य मामाजी महाराज की स्मृति में निकलने वाली शोभायात्रा इस बार स्थगित रखी जाएगी वहीं, 2 मार्च को आश्रम परिसर में मामाजी की निर्वाण तिथि पर सविधि पूजन, विग्रहार्चन एवं श्रद्धा सुमन समर्पण के साथ समिष्टि भंडारा का आयोजन करते हुए आयोजन संपन्न किया जाएगा.










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