वीडियो: निजीकरण के विरोध में दूसरे दिन भी बैंक कर्मियों ने रखा कामकाज ठप, निकाला जुलूस ..

कहा कि 1956 में जब इंदिरा गांधी ने निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था तो इसका यह उद्देश्य था कि जनता के बीच या भरोसा कायम रहे कि उनका पैसा सुरक्षित है लेकिन अब सरकार वही भरोसा तोड़ना चाहती है. दो दिवसीय हड़ताल के बाद भी सरकार यदि मांग नहीं मानती है तो आगे आंदोलन को और भी धार दिया जाएगा.

 




- कहा, मांगे नहीं पूरी होने पर भविष्य में और भी तेज होगा आंदोलन
- बैंक कर्मियों ने निजी करण समेत विभिन्न मांगों को लेकर जताया विरोध
 
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन के आह्वान पर दो दिवसीय हड़ताल के दूसरे दिन भी तमाम बैंकों में काम काज ठप रहा. इस संबंध में अग्रणी बैंक प्रबंधक आनंद कुमार ओझा ने बताया कि दूसरे दिन भी करीब 300 करोड़ का नुकसान हुआ है. दो दिवसीय हड़ताल के समापन पर बैंक कर्मियों ने जुलूस निकाला और निजीकरण के खिलाफ नारेबाजी की.

बैंक इम्प्लाइज एसोसिएशन के जिला सचिव हरीश कुमार ने बताया कि सरकार कुछ बैंकों के निजीकरण की साजिश रच रही है, जिसे किसी भी कीमत पर हमलोग कामयाब नहीं होने देंगे.  यही कारण है कि तमाम बैंक बंद कर कर्मचारी सड़क पर उतर गए हैं. बैंक ऑफ इंडिया झुमरी तलैया शाखा के प्रबंधक आरएच अंसारी ने कहा कि 1956 में जब इंदिरा गांधी ने निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था तो इसका यह उद्देश्य था कि जनता के बीच या भरोसा कायम रहे कि उनका पैसा सुरक्षित है लेकिन अब सरकार वही भरोसा तोड़ना चाहती है. दो दिवसीय हड़ताल के बाद भी सरकार यदि मांग नहीं मानती है तो आगे आंदोलन को और भी धार दिया जाएगा.



इस अवसर पर बैंककर्मियों द्वारा वित्त मंत्री के विरुद्ध नारेबाजी करते हुए शहर में जुलूस भी निकाला गया. वहीं, दूसरी ओर दक्षिण बिहार ग्रामीण बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन की भभुआ इकाई के अध्यक्ष बबन सिंह ने बताया कि हड़ताल के दूसरे दिन भी ग्रामीण बैंक की सभी 53 शाखाओं समेत अन्य बैंकों में कामकाज पूरी तरह ठप्प रहा। जिसके कारण सरकार को भारी व्यवसाय का नुकसान उठाना पड़ा है. हड़ताल के दूसरे दिन भी कर्मचारियों द्वारा बैंक के बाहर खड़े होकर नारेबाजी और प्रदर्शन लगातार जारी रहा. उन्होंने बताया कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, लघु एवं मध्यम उद्योगों समेत देश के विकास में अभूतपूर्व भूमिका निभाई है पर, आज सरकार की गलत नीतियां इसे कमजोर करने की साजिश रचने में लगी है. बैंकों की सबसे बड़ी समस्या एनपीए खाता हैं, बावजूद इसके सरकार बड़े कर्जदारों और कारपोरेट घरानों का ऋण माफ कर अप्रत्यक्ष रूप से उनकी मदद करने में लगी है. एक के बाद एक बैंकों का निजीकरण करते हुए कर्मचारियों की छंटनी की जा रही है. इससे निश्चित तौर पर ग्राहक सेवा प्रभावित होगी तथा बेरोजगारी के साथ सेवा शुल्क में वृद्धि होगी. मौके पर पवन कुमार, रविशंकर कुमार, चंदन कुमार, आशीष आनंद, राजेश कुमार, जयशेंकर चौबे समेत सैकड़ों बैंककर्मी मौजूद रहे

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